हांगकांग में दमन के आसार बढ़े

विश्व-विमर्श
हांगकांग में दमन के आसार बढ़े
डॉ. सुधीर सक्सेना

हांगकांग में दमन के आसार बढ़ गये हैं। यद्यपि हालात पहले से विषम थे, लेकिन हांगकांग के सीईओ के पद पर जॉन ली के निर्वाचन के उपरांत स्पष्ट हो गया है कि बीजिंग हांगकांग में लोहे के दस्ताने उतारने के मूड में कतई नहीं है और वहां लोकतंत्र समर्थकों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की मुश्कें कसने और उन्हें सबक सिखाने का दौर जारी रहेगा।
समृद्धि की मिसाल के तौर पर वर्णित हांगकांग के ब्रिटेन से चीन के ताबे में आये पाव सदी बीत गयी। हांगकांग का विगत करीब पौने दो सौ वर्षों का इतिहास चीन और ब्रिटेन के मध्य झड़पों और संंधियों से गुंथा हुआ है। ब्रिटेन के यहां अधिपत्य का क्रम जनवरी, सन् 1841 से शुरू होता है। अगले ही साल 29 अगस्त को नानकिंग की संधि हुई और 24 अक्टूबर, 1860 को पीकिंग सम्मेलन। अंतत: सन् 1898 में चीन के सम्राट ने इसे ब्रिटेन को 99 साल के पट्टे परदे दिया। फलत: ब्रिटेन ने 1 जुलाई, सन् 1997 को इसे वापस चीन को सौंप दिया। 1 जुलाई का दिन प्रतिवर्ष हांगकांग में उत्सव के रूप में मनाया जाता है। प्रसंगवश उल्लेखनीय है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दरम्यान 25 दिसंबर, 1941 से 30 अगस्त, 1945 तक हांगकांग पर जापान का कब्जा रहा। यहां की लगभग 75 लाख की आबादी में 92 प्रतिशत लोग चीन हान कुल के हैं। करीब ढाई फीसद और दो फीसद फिलिपींस और इंडोनेशिया के हैं। भारतीयों और नेपालियों की जनसंख्या क्रमश: .5 प्रतिशत और .3 प्रतिशत है। अधिकारिक तौर पर हांगकांग चीन का विशेष प्रशासनिक क्षेत्र है और सीईओ को वृहद अधिकार व शक्तियां प्राप्त हैं।
हांगकांग वैश्विक महानगर और महत्वपूर्ण वाणिज्यिक केन्द्र है। वहां का वैभनव आकर्षित करता है। जब वहां जाने का अवसर मिला, तब वापसी की उलटी गिनती का दौर जारी था। हांगकांग में आजादी और खुलेपन को लेकर आशंकाओं का दौर था। पट्टे की शर्तों के अनुरूप हांगकांग चीन के कब्जे में आया, वहां एख देश, दो प्रणाली की व्यवस्था भी लागू हुई। लेकिन ‘हजार फूलों को खिलने दो’ के विपरीत कलियों को मसलने का दौर देखने को मिला। वहां न तो मानवाधिकार आंदोलन पनप सका और न ही जम्हूरियत – पसन्द ताकतें। बीजिंग ने हांगकांग में कोई ढिलाई नहीं बरती और प्रतिरोध पर जब-तब उसका कहर टूटता रहा। हांगकांग के सीईओ पद पर जॉन ली के निर्वाचन को इन्हीं संदर्भों में देखना चाहिए। एक जुलाई को जश्नो-जुलूस के बीच चीन के प्रधानमंत्री शी जिनपिंग के उन्हें शपथ दिलाने के साथ ही ली हांगकांग के आधिकारिक शासक हो गये।
चीन के प्रधानमंत्री शी ढाई साल बाद हांगकांग आये और यह कहने से नहीं चूके कि एक देश दो प्रणाली की नीति अधिकारिक रूप से सफल रही है, अत: उसे कायम रहना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हांगकांग की सुरक्षा और संप्रभुता वरीय है और विदेशी हस्तक्षेप व देशद्रोह बीजिंग के लिए नाकाबिले बर्दाश्त है। जहां तक जॉन ली की बात है, वह ये पाठ पहले ही रट चुके हैं। चीन के शीर्ष नेतृत्व का उनकी पीठ पर हाथ है। 7 दिसंबर, सन् 1957 को कोवलून में जनमे और वाह्यान कॉलेज में शिक्षित ली प्रशिक्षित पुलिस अफसर हैं। उन्होंने अगस्त, 1977 को रॉयल हांगकांग पुलिस बल ज्वाइन किया था और सन् 2012 में उपायुक्त पद से निवृत्त हुए। अप्रैल, 2022 में उन्होंने चुनाव लड़ने का फैसला किया। यद्यपि वह निर्विरोध चुने गये और कोई प्रतिद्वंद्वी चुनाव नहीं लड़ सका। अलबत्ता यह दर्शाया गया कि उन्हें 1500 सदस्यों की निर्वाचन समिति ने चुना है। दिलचस्प बात है कि समिति के अनेक मेंबरों से उनके बेटों-गिल्बर्ट और जैकी के कारोबारी रिश्ते हैं। यही नहीं, उनकी पत्नी जैनेट लैम और बेटों के पास ब्रिटिश नागरिकता भी है। ट्रंप प्रशासन ने उन पर पाबंदी लगाई थी, लेकिन योरोपियन यूनियन परीक्षण कर रहा है कि क्या मैग्नित्स्की एक्ट के तहत उन पर पाबंदी लगाई जाए। बहरहाल, ली सख्त मिजाज प्रशासक हैं। नेशनल सिक्योरिटी लॉ में उनकी अहम भूमिका थी। गत वर्ष 53 लोकतंत्र समर्थकों की गिरफ्तारी को उन्होंने जायज ठहराया और डेमोक्रेट नेता टेड हुई के खाते को फ्रीज करने का समर्थन किया। उनके आने से हांगकांग में दरोदीवार पर आशंकाओं के नये सब्जे उग आए हैं।

( डॉ. सुधीर सक्सेना देश की बहुचर्चित मासिक पत्रिका ” दुनिया इन दिनों” के सम्पादक, देश के विख्यात पत्रकार और हिन्दी के लोकप्रिय कवि- साहित्यकार हैं। )

@ डॉ. सुधीर सक्सेना, सम्पर्क- 09711123909

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