डॉ. सुधीर सक्सेना

बात तो यद्यपि पिछली बार भी उठी थी, अलबत्ता सिरे नहीं चढ़ सकी थी। राष्ट्रपति पद के लिये द्रौपदी मुर्मू का नाम सुर्खियों में उभरा जरूर था। अलबत्ता वह आखिरी दौर तलक टिक नहीं सका था। तब वह झारखण्ड की राज्यपाल थीं : प्रथम महिला गवर्नर। दिलचस्प तौर पर इस दफ़ा किसी को भनक भी न लगी और बीजेपी के शिखर नेतृत्व ने देश के 15वें राष्ट्रपति पद के लिए उनका नाम फाइनल कर दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा की ‘त्रयी’ ने विभिन्न नामों पर गहन विचार-विमर्श के बाद सुश्री द्रौपदी मुर्मू के नाम पर मोहर लगा दी। इस प्रकार एक आदिवासी महिला के लिए देश के सर्वोच्च पद तक पहुंचने का पथ प्रशस्त हो गया।
सुश्री मुर्मू आदिवासी हैं और संताल समुदाय से ताल्लुक रखती हैं। वे पढ़ी-लिखी हैं और पढ़ा भी चुकी हैं। वे मयूरभंज में जनमी ग्राम बाला हैं, लेकिन अब रायरंगपुर उनका गृहनगर है। यही मुख्य मार्ग पर उनका घर है, पक्का, लेकिन साधारण मकान। कोई आडंबर नहीं। साधारण कुर्सी-मेज और दरोदीवार। रायरंगपुर प्रवास के दरम्यान इसी मकान में उनसे दो बार मुलाकात हुई। तब वह झारखंड की राज्यपाल थीं। आदिवासी बहुल राज्य की पहली आदिवासी राज्यपाल। पहली भेंट में उनसे लंबी अनौपचारिक बातचीत हुई थी। आदिवासी समाज की सामाजिक-सांस्कृतिक दशा और उनकी आर्थिक दुरावस्था पर। आदिवासी अस्मिता को लेकर वे चिंतित थीं और उसके सर्वांगीण विकास को लेकर व्याकुल।
सन् 1958 में जनमी सुश्री द्रौपदी मुर्मू के पिता का नाम विरंचि नारायण टूडू था। पिता और पितामह ग्राम पंचायत के मुखिया थे। पुत्री ने पिता की परंपरा को आगे बढ़ाया। वे रमादेवी महिला विश्वविद्यालय से स्नातक के बाद अध्यापन से जुड़ गयीं। लेकिन राजनीति उनकी नियति थी और समाज सेवा ध्येय।
राजनीति में आने से पेश्तर उन्होंने ही अरबिन्दो इंटीग्रल एजुकेशन एण्ड रिसर्च रायरंगपुर में मानद सहायक शिक्षक के रूप में काम किया। वे सिंचाई विभाग में कुछ अर्सा कनिष्ठ सहायक भी रहीं। वे मयूरभंज की भाजपा ईकाई की कई साल अध्यक्ष रहीं।
सन् 1997 में वह रायरंगपुर नगर की पार्षद चुनी गयीं। यह लंबे राजनीतिक सफर का पहला कदम था। सन् 2000 में वह पहले पहल ओडिशा विधानसभा की सदस्य चुनी गयी। अगले चुनाव में वह पुन: जीतीं। चुनावी सफलता उनके लिए नेमतें लेकर आयी। सन् 2000 से सन् 2004 तक वे नवीन पटनाक के नेतृत्व में साझा सरकार में मंत्री रहीं। प्रथम दो वर्ष वाणिज्य मंत्री और परवर्ती दो वर्ष मत्स्य एवं पशुपालन मंत्री। दोनों ही दायित्वों का निर्वाह उन्होंने सफलता पूर्वक किया। पार्टी में उनकी निष्ठा अविचलित और अडिग रही। इसका पुरस्कार उन्हें सन् 2015 में झारखंड राज्य के गवर्नर के रूप में मिला।
सुश्री मुर्मू ने राजनीति की बारहखड़ी भारतीय जनता पार्टी के मंडप तले सीखी है। वे बीजेपी के जनजाति मोर्चे की उपाध्यक्ष रहीं। अपनी अटूट निष्ठा और समर्पण से पार्टी की नजरों में उभरीं। ओडिशा विधानसभा में सर्वश्रेष्ठ एमएलए का नीलकंठ अवार्ड वे जीत चुकी हैं। अध्ययनशील और शालीन शख्सियत की सुश्री द्रौपदी मुर्मू के सरोकारों का दायरा बड़ा है। वे अपने दो बेटों को खो चुकी हैं। उनकी एक पुत्री है : इतिश्री। उनके नाम की घोषणा से रायरंगपुर में उत्सव का माहौल है। गत 20 जून को उनका जन्मदिन था। ठेठ आदिवासी नाक नक्श की श्यामल-बरन सुश्री मुर्मू के चेहरे में गजब की चमक है और यह चमक है उनके आत्मविश्वास की। इस महादेश के 15वें राष्ट्रपति पद के लिए उनका चयन वृहत्तर आदिवासी समुदाय समेत आधी दुनिया के लिए गर्व का विषय है। उन्होंने अपना सफर सधे हुए कदमों से पूरा किया है।
बेटी इतिश्री के अनुसार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फोन पर द्रौपदी को यह सूचना दी तो हर्षातिरेक से उनकी आंखों में अश्रु छलछला आये और वह सिर्फ ‘धन्यवाद’ कह सकीं। यकीनन रामनाथ कोविंद के बाद एक आदिवासी के राष्ट्रपति पद के लिए चयन से बीजेपी ने मुकाबले से पहले ही बाजी मार ली है।

( डॉ. सुधीर सक्सेना देश की बहुचर्चित मासिक पत्रिका ” दुनिया इन दिनों” के सम्पादक, देश के विख्यात पत्रकार और हिन्दी के लोकप्रिय कवि- साहित्यकार हैं। )

@ डॉ. सुधीर सक्सेना, सम्पर्क- 09711123909

Spread the word