थैंक्यू, मि. एडिसन

डॉ. सुधीर सक्सेना

पिछले कुछ महिनों से विज्ञान की दुनिया में विचर रहा हूं। देश-विदेश के वैज्ञानिकों का जीवन-वृत्त, उनकी साहसिक खोजों की कथा और दुनिया का उनके साथ अजब-गजब सलूक। उन पर कविताएं और कथाएं लिखने का सिलसिला मुसलसल चल रहा है। नतीजा यह है कि विज्ञान कविताओं का डेढ़ सौ पेजी संकलन तैयार हो गया है। इसके लिए कृतज्ञता तमाम लोगों के साथ-साथ थॉमस अल्वा एडिसन के प्रति भी, जिसकी बदौलत दिन-रात कभी भी काम करना मुमकिन हुआ। आज हमारे घरों-दफ्तरों में बिजली की दूधिया रोशनी है और वे अनूठे उपकरण हैं, जिनके बिना हम जीने और सभ्यता-संस्कृति के इस मुकाम पर आने की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।

कौन था थॉमस अल्वा एडिसन? वह सचमुच जादूगर था, साइंस का जादूगर। उसका मस्तिष्क अविष्कारों में खोया रहता था। उठते-बैठते, खाते-पीते, सोते-जागते एक ही लौ। एक ही लगन। नतीजा यह निकला कि समय ने उसकी कमीज पर विज्ञान के इतिहास में सर्वाधिक अविष्कारों का सुनहरा तमगा टांक दिया। उसने लंबी उम्र पाई, लेकिन उसकी जिंदगी बड़ी जिंदगी थी : सार्थक और उनके अपने अविष्कारों से रोशन। 11 फरवरी, 1847 को जब वह अमेरिका में मिलान (ओहियो) में पैदा हुए तो दुनिया में कहीं भी बिजली न थी लेकिन सन् 1931 में 84 वर्ष की आयु में जब उसकी मृत्यु हुई, सारी दुनिया बिजली की रोशनी में जगमगा रही थी। दुनिया को विद्युत प्रकाश उसी की देन है।
थॉमस अल्वा एडिसन को मेनलो पार्क का जादूगर यूं ही नहीं कहा जाता। ‘लाइफ’ पत्रिका ने सहस्राब्दि के अग्रणी व्यक्तियों में उन्हें अव्वल यूंही नहीं माना। एडिसन को एक हजार से अधिक अमेरिकी पेटेंट हासिल करने का अनूठा गौरव प्राप्त है। कुल 1093 पेटेंट से वह पहली पायदान पर खड़े एकमात्र वैज्ञानिक हैं, जिसे सन् 1868 से सन् 1935 के दरम्यान लगातार 65 वर्षों तक प्रति वर्ष पेटेंट प्राप्त हुआ। उनके अविष्कारों में तापदीप्त विद्युत प्रकाश, बल्ब, फोनोग्राफ, मोशन पिक्चर, प्रोजेक्टर, स्वचलित मल्टीप्लेक्स टेलीग्राफ, कार्बन टेलीफोन ट्रांसमीटर और अल्केलाइन स्टोरेज बैटरी आदि शामिल है। सिनेमा, टेलीफोन, रिकार्ड और सीडी के सृजन में उनकी भूमिका रही। वे 20-20 घंटे काम के अभ्यस्त थे। वे लगभग बधिर (बहरे) थे। दस प्रतिशत श्रवण शक्ति के साथ। उनका पहला पेटेंट था इलेक्ट्रिकल वोट रिकार्डर। उनका स्टॉक प्रिंटर कुछ सौ डॉलर की उम्मीद के विपरीत 40,000 डॉलर में बिका। हुआ यह कि एडिसन अपने अविष्कारों को लेकर सशंक थे। उन्होंने स्टॉक प्रिंटर व अन्य संबंधित उपकरण गोल्ड व स्टॉक टेलीग्राफ कंपनी के मुखिया जनरल लेफटर््स को बेचे। उनका अनुमान था कि इनकी कीमत 5000 डॉलर है, लेकिन सौदा कहीं हाथ से फिसल न जाए, वे उसे 300 डॉलर में बेचने को तैयार थे। लेफटर््स ने कहा-‘40 हजार डॉलर में सौदा कैसा रहेगा?’ तो वह गश खाकर गिरते-गिरते बचे। इसी रकम से एडिसन ने नेवार्क में छोटी प्रयोगशाला और निर्माण ईकाई खोली। टिन फाइल फोनोग्राफ उनकी महान ईजाद था, जो ध्वनि को रिकार्ड कर पुन: उत्पादित करता था। इसके बाद उन्होंने तापदीप्त विद्युत प्रकाश की चुनौती हाथ में ली और सफल हुए। उन्होंने कार्बनीकृत धागे से तंतुयुक्त तापदीप्त लैंप ही तैयार नहीं किया, वरन विद्युत प्रकाश प्रणाली को भी विकसित किया। इसका पहला सार्वजनिक प्रदर्शन सन् 1873 में उन्होंने मेनलो पार्क परिसर को प्रकाशित कर किया। एडिसन ब्यौरों के हिमायती थे। सिर्फ गैस प्रदीप्त पर उन्होंने 200 कापियां यानी 40,000 पेज भर डाले थे। तंतु (फिलामेंट) की तलाश में उन्होंने लोगों को जापान व अमेजन के जंगलों में भेजा, 40,000 डॉलर फूंके। उन्होंने 1200 से ज्यादा प्रयोग किए। उन्होंने कहा था-‘‘प्रतिभाशाली एक प्रतिशत अंत:प्रेरणा और 99 प्रतिशत पसीने से तैयार होते हैं।’’
 पहले नेवार्क और फिर न्यूयार्क से 40 किमी दूर उन्होंने बेहतरीन प्रयोगशाला खोली। साझेदारी में स्थापित उनकी कंपनी बाद में जनरल इलेक्ट्रिक कंपनी (जीई) हो गयी। उन्हें श्रद्धांजलिस्वरूप 21 अक्टूबर, 1931 को अमेरिका में विद्युत प्रकाश एक मिनट के लिए मद्धिम कर दिये गये थे। मेरा खयाल है कि मुझे ही नहीं, हम सबको धुन के पक्के विज्ञान के इस जादूगर का कृतज्ञ होना चाहिए। चलते-चलते एक बात और यह कि हमारी सहस्राब्दी का यह नायक शेक्सपियर, चार्ल्स डिकेंस और एडवर्ड गिबंस के लेखन का मुरीद था। उसे ‘मंदबुद्धि’ कहकर स्कूल से निकाल दिया गया था, 13 वर्ष की वय में उसने बतौर न्यूज ब्वॉय की नौकरी शुरू की और पोर्ट ह्यूरान से डेट्रायट के बीच रेलपांत के आसपास टॉफियां और अखबार बेचने लगे। एकदा उन्होंने रेलवे लाइन पर टहल रहे स्टेशन मास्टर जेयू मैकेंजी के तीन वर्षीय बेटे जिमी की प्राणरक्षा क्या की, कृतज्ञतास्वरूप मैकेंजी ने उन्हें टेलीग्राफ का प्रशिक्षण दे डाला। बस इससे उनकी जिंदगी बदल गयी।
उन्होंने 1862 से 1868 के दरम्यान अमेरिका के मध्य-पश्चिमी राज्यों और कनाडा में बतौर टेलीफोन आॅपरेटर कार्य किया। इस अवधि में वे लगातार अध्ययन और प्रयोगों में रत रहे। सन् 1868 में बोस्टन पहुंचने के बाद वे टेलीग्राफर से अविष्कारक हो गये। वे दिन-रात काम करते थे। वे ऐसी बेतार मशीन बनाने में जुटे रहे, जिसमें एक तार पर एक ही समय में अनेक मैसेज भेजे जा सके। उन्होंने एक मित्र से उधार लिया, नौकरी छोड़ी और प्रयोगों में जुट गये। अगले वर्ष वे न्यूयार्क आ गये। नौकरी थी नहीं और जेब खाली। एक मित्र की कृपा से वाल स्ट्रीट में नीचे भूतल-कार्यालय में सोने का ठौर मिला। इसी दौरान उन्हें गोल्ड एक्स्चेंज में नये टेलीग्राफिक गोल्डप्राइस इंडीकेटर की आपात मरम्मत का न्यौता मिला। उन्होंने यह काम इतना बेहतर किया कि उन्हें नये बेहतर इंडीकेटर के निर्माण का आॅब्जर्वर बना दिया गया। उन्होंने नया माडल बनाया तो उन्हें अन्य उपकरणों को सुधारने का जिम्मा भी मिला। उनके कौशल और अथक श्रम ने सफलता-दर-सफलता के दरवाजे खोल दिये। वस्तुत:, विज्ञान उनका प्रिय शगल था और इसमें वे अपना दिल उड़ेल देते थे। उनके बारे में हेनरी फोर्ड (1893-1947)  ने कहा था-‘‘वह पैसा बनाने वाले व्यक्ति नहीं थे। उन्होंने दुनिया के लिए जितना धन सृजित किया, उसकी तुलना में उनके अपने हिस्से में कुछ खास नहीं था।’’
सन् 1956 में अमेरिका के राष्ट्रपति आइजनहॉवर ने वेस्ट आरेंज, न्यू जर्सी में स्थित रिसर्च लैब को राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया। इसी क्रम में सन् 1962 में एडिसन के आवास और वेस्ट आॅरेंज लैब का नाम बदलकर एडिसन राष्ट्रीय ऐतिहासिक स्थल कर दिया गया। यह एक महान वैज्ञानिक के प्रति एक महान राष्ट्र की कृतज्ञता का ज्ञापन था।
आइये हम भी कहें : थैंक्यू मिस्टर एडिसन।

( डॉ. सुधीर सक्सेना देश की बहुचर्चित मासिक पत्रिका ” दुनिया इन दिनों” के सम्पादक, देश के विख्यात पत्रकार और हिन्दी के लोकप्रिय कवि- साहित्यकार हैं। )

@ डॉ. सुधीर सक्सेना, सम्पर्क- 09711123909

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