एसईसीएल की तीन मेगा प्रोजेक्ट में कोयला उत्पादन कम, बिजली संयंत्रों में पड़ रहा असर

कोरबा 12 अक्टूबर। साउथ इस्टर्न कोलफिल्ड्स लिमिटेड एसईसीएल के दो मेगा प्रोजेक्ट गेवरा व कुसमुंडा में कोयला उत्पादन की स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है। निर्धारित लक्ष्य से आधे से भी कम उत्पादन हो रहा है। अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक सीएमडी एपी पंडा रविवार की रात कुसमुंडा पहुंचे और अधिकारियों की बैठक ली।

गेवरा में प्रतिदिन 1.40 लाख टन की जगह 40 से 45 हजार, कुसमुंडा में 1.20 लाख टन की जगह 45 हजार व दीपका में एक लाख टन की जगह 35 हजार टन कोयले का उत्पादन हो रहा। इसका असर राज्य के बिजली संयंत्रों पर पड़ रहा। छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत कंपनी के मड़वा प्रोजेक्ट की पांच सौ व हसदेव ताप विद्युत संयंत्र एचटीपीपी की 210 मेगावाट क्षमता की इकाइयां दो दिन से कोयले की कमी की वजह से बंद हैं। राज्य में बिजली संकट से निपटने से सेंट्रल सेक्टर से एक हजार से अधिक मेगावाट बिजली लेना पड़ रहा। कोयला उत्पादन बढ़ाने एसईसीएल पर लगातार दबाव बन रहा। यही वजह है कि सीएमडी पंडा दो दिन के प्रवास पर पहुंचे और कोरबा के तीनों बड़े खदान गेवरा, दीपका व कुसमुंडा का जायजा लिया। उम्मीद जताई जा रही है कि पिछले एक सप्ताह से बारिश नहीं होने की वजह से खदानों में ओव्हरबर्डन ओबी का काम जल्द ही गति पकड़ने लगेगा। कुसमुंडा खदान में जमीन की कमी की वजह से फेस कम है, इसलिए यहां उत्पादन की स्थिति सामान्य होने में तीन माह से अधिक का समय लग सकता है। वहीं दीपका और गेवरा में एक माह के बाद ही उत्पादन पटरी में आने की संभावना व्यक्त की जा रही। इस बीच विद्युत संयंत्रों को कोयला संकट से जूझना होगा।

कोयले की किल्लत के बीच भू-विस्थापितों का आंदोलन एसईसीएल प्रबंधन पर भारी पड़ रहा। दीपका के मलगांव ओबी फेस में अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे भू-विस्थापित अब गेवरा के नराईबोध ओबी फेस में आंदोलन शुरू कर दिए हैं। चरणबद्ध ढंग से आंदोलन का विस्तार किया जा रहा। अभी हाल ही में दीपका खदान में हैवी ब्लास्टिंग से नाराज होकर आंदोलनकारियों ने सावेल मिट्टी निकालने की मशीन के सामने विरोध प्रदर्शन करते हुए पूरे दिन काम बंद रखा था।

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