चार बैंकों के प्रस्तावित निजीकरण को रोकने बैंकों में दो दिन की हड़ताल शुरू

कोरबा 15 मार्च। आज और कल राष्ट्रीयकृत के साथ-साथ निजी बैंक हड़ताल पर हैं। सरकारी की नीतियों को लेकर बैंक अधिकारियों और कर्मचारियों ने विरोध जताया। कहा जा रहा है कि सरकारी योजनाओं की सफलता में सर्वाधिक भूमिका राष्ट्रीयकृत बैंकों की है। इनके जरिए कुल मिलाकर सरकार की साख राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत हो रही है। इस स्थिति में एक बार फिर कुछ बैंकों को निजीकरण की ओर धकेलना समझ से परे और अव्यवहारिक है।

ऑल इंडिया बैंकिंग एम्प्लाइज एसोसिएशन ने हड़ताल का आह्वान किया। सोमवार और मंगलवार को देश के सभी बैंकों में तालाबंदी की स्थिति रहेगी। कोरबा जिले में भी हड़ताल पूरी तरह प्रभावी रही। देशव्यापी आह्वान पर बैंकों में बंदी की स्थिति के बीच कर्मियों ने प्रदर्शन किया। जिले में राष्ट्रीयकृत और निजी बैंकों की 100 से अधिक शाखाएं संचालित हैं जिनमें 48 घंटे तक कोई काम नहीं होना है। पहले ही इस बारे में सर्व सामान्य को सूचनाएं जारी कर दी गई थी और उन्हें अपनी जरूरत पूरी करने को कहा गया था। इसलिए हड़ताल दिवस को पूर्व की तुलना में लोगों को बैंकों के आसपास भटकते नहीं देखा गया। इधर ट्रंासपोर्ट नगर और निहारिका क्षेत्र में बैंक कर्मचारियों ने एकत्र होकर अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन किया। बताया गया कि दो दिवसीय हड़ताल कुल मिलाकर चार बैंकों को एक अप्रैल से निजी क्षेत्र में किये जाने से को लेकर विरोध का हिस्सा है। इन बैंकों में सेंट्रल बैंक, ऑफ इंडिया, महाराष्ट्र बैंक, बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन ओवरसीज बैंक शामिल हैं। इनके निजीकरण का हर स्तर पर विरोध किया जा रहा है। एसोसिएशन का दावा है कि दो दिन तक बैंकों के बंद रहने से अकेले कोरबा जिले में ही करोड़ों का लेनदेन सीधे तौर पर प्रभावित होगा। हालांकि ग्राहकों को इस अवधि में किसी तरह की परेशानी ना होने पाए इसके लिए नगर, उपनगरीय क्षेत्रों सहित विभिन्न क्षेत्रों में स्थित एटीएम में पर्याप्त कैश की व्यवस्था की गई है।

बैंकिंग एसोसिएशन के अनुसार सरकार के द्वारा जन सामान्य के लिए चलाई जा रही अधिकांश आर्थिक योजनाओं की सफलता कुल मिलाकर राष्ट्रीयकृत बैंकों के आधार पर ही तय हो रही है। प्रधानमंत्री जनधन योजना में 97 फीसदी खाते इन्हीं बैंकों ने खोले जबकि 3 फीसदी खाते खोलने का काम निजी बैंक कर सके। प्रधानमंत्री मुद्रा लोन के मामले में राष्ट्रीयकृत बैंकों ने 90 फीसदी की सहभागिता दर्ज कराई। इसी तरह प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के साथ-साथ उज्ज्वला योजना के अंतर्गत हितग्राहियों को दी गई राशि से लेकर उनके वितरण का काम कोरोना के जोखिम के बीच मुख्य रूप से राष्ट्रीयकृत बैंकों ने किया।

कहा जा रहा है कि बैंकों से जुड़ी समस्याओं को समझने के साथ ठीक करने की जरूरत ज्यादा है ना कि उन्हें निजी हाथों में सौंपने की। एक समय गलत नीतियों के कारण यस बैंक डूबने की स्थिति में पहुंच गया था। आखिरकार स्टेट बैंक ने उसे भली-भांति उबारा और संवारने का काम किया। इस तरह तकनीकी पेंच समन्वय के आधार पर सुलझा, जा सकते हैं। मुद्दों की समझ कैसे हो, इस बारे में गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। चार बैंकों के प्रस्तावित निजीकरण को लेकर किये जा रहे प्रदर्शन के बारे में बैंकिंग एसोसिएशन का मानना है कि लड़ाई इसलिए है कि चार राष्ट्रीयकृत बैंकों को मूल स्वरूप में बचाया जा सके। धीरे-धीरे समस्या बढ़ेगी। कुल मिलाकर निजीकरण के खतरों से आम जनता को परेशान होना पड़ेगा। रोजगार समाप्त होंगे सो अलग। इसलिए एसोसिएशन की लड़ाई नागरिकों के आर्थिक हितों के संरक्षण से जुड़ी हुई है।

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