कोल डिस्पेच नहीं रोक सका अप्रेंटिस संघ

कोरबा 8 मार्च। अल्टीमेटम देने के बाद आगे का काम अखिल भारतीय अप्रेंटिस संघ के लोग चाहकर भी नहीं कर सके। सीआईएसएफ ने उन्हें गेवरा में रोकने के साथ यहां से खदेड़ दिया। उनकी मंशा एसईसीएल का कोल डिस्पेच रोकने की थी। इसके लिए पहले से सुरक्षा कर्मियों को अलर्ट मोड पर रखा गया था।

एसईसीएल में रोजगार देने, विभिन्न खाली पदों को भरने के साथ कई मांगों को लेकर अप्रेंटिस संघ ने पिछले दिनों सभी सीजीएम कार्यालय के सामने प्रदर्शन किया था। इसके साथ अपने इरादे बताए थे। कहा गया था कि एसईसीएल में ही बड़ी संख्या में अधिकारी और कर्मचारी रिटायर हो चुके हैं। नए पदों पर भर्ती नहीं की गई है, इससे कामकाज बाधित हो रहा है। तकनीकी प्रशिक्षण पाने और इसके आगे की औपचारिकताओं को पूरा करने वाले अप्रेंटिस छत्तीसगढ़ में ही बड़ी संख्या में हैं। एसईसीएल के स्तर पर रेगुलाइस किये जाने की मांग अरसे पुरानी है। कई बार इसे लेकर प्रशासन और प्रबंधन को पत्र दिए गए हैं। हर बार आश्वासन जरूर प्राप्त हुआ लेकिन अगली कार्रवाई नहीं हुई। इसी को लेकर अप्रेंटिस संघ ने आज गेवरा क्षेत्र के श्रमिक चौक पर रोड सेल व्यवस्था से संबंधित कोयला डिस्पेच को रोकने की घोषणा की थी। संघ के आह्वान पर पर्याप्त संख्या में अप्रेंटिस यहां पहुंचे। इससे पहले कि वे आगे बढ़ पाते और कामकाज पर असर डालते, इससे पहले ही सीआईएसएफ ने उन्हें चौक के पास रोक लिया। मौके पर दूसरा अमला भी मौजूद था जो स्थिति पर नजर रखे हुए था। सीआईएसएफ के हावी होने से प्रदर्शनकर्ताओं को आगे जाने का कोई अवसर नहीं मिल सका। समझाईश देने के साथ प्रदर्शनकर्ताओं को वापस जाने को कह दिया गया।

अप्रेंटिस संघ को मौके पर प्रदर्शन करने से रोकने के लिए सीआईएसएफ के जवानों ने आज दमदारी दिखाई और एक तरह से एसईसीएल प्रबंधन को राहत देने का काम किया। इस मामले को लेकर कहा जा रहा है कि सीआईएसएफ को इतनी ही दमदारी के साथ एसईसीएल के उन क्षेत्रों में काम करना चाहिए जहां उसकी ड्यूटी लगाई जाती है। आए दिन यहां.वहां चोरी की घटनाएं हो रही है। इसमें प्रबंधन को चूना लग रहा है। एसईसीएल के सभी क्षेत्रों को 31 मार्च तक वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए कंपनी द्वारा दिया गया उत्पादन लक्ष्य हर हाल में पूरा करना है। हाल में ही खबर आई कि कई कारणों से गेवरा ने 8 मिलियन टन कोयला का प्रोडक्शन कम कर दिया है। जबकि दीपका क्षेत्र लक्ष्य से 10 मिलियन टन पीछे है। देश की सकल उर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कोल इंडिया पर भारी दबाव है। इसे मैनेज करने के लिए उन कंपनियों पर विशेष नजर है जहां से सर्वाधिक उत्पादन होता है।

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