टायर फैक्ट्री में जल रहे नियम, पर्यावरण विभाग से है सेटिंग

न्यूज एक्शन। जिले में पुराने टायरों को जलाकर काला तेल निकालने का प्लांट पर्यावरण विभाग के रहमोकरम पर चल रहा है। टायरों को जलाने से निकलने वाली जहरीले धुएं से गंभीर बीमारियों के होने का खतरा है। पर्यावरण भी व्यापक पैमाने पर प्रदूषित हो रहा है। इन्हीें दुष्परिणामों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट भी ऐसे टायर प्लांटों को बंद करने की बात कह चुकी है। परंतु इसके बाद भी पहले से ही प्रदूषित औद्योगिक नगरी कोरबा में पर्यावरण संरक्षण मंडल के अधिकारियों की सांठगांठ के कारण टायर जलाने वाले प्लांट चल रहे हैं। चर्चा तो इस बात की है कि जिम्मेदार अधिकारियों से मासिक 25 लाख की सेटिंग से यह प्लांट जिले की आबोहवा में जहर घोल रहा है।
जानकार बताते हैं कि पुराने टायरों को जलाकर उससे काला तेल निकाला जाता है। इस तेल की कीमत डीजल से लगभग 12 से 13 रुपए ही कम होती है। बाजार में कई कामों के लिए इस टायर तेल की काफी डिमांड है। टायर जलने के बाद तेल तो मिलता ही है। उससे टायर का तार भी मिलता है। जो विभिन्न निर्माण कार्यों में उपयोग लाया जाता है। लिहाजा इस टायर तार की डिमांड भी बाजार में बनी रहती है। इस धंधे में भारी मुनाफा को देखते हुए प्रतिबंधों को दरकिनार कर बदूस्तर टायर जलाने वाली फैक्ट्री संचालित हो रही हैं। टायर जलाने से काला एवं जहरीला धुआं निकलता है। जिस क्षेत्र में लगातार टायर जलाया जाता है उस क्षेत्र के लोगों में टायर का काला धुआं काफी नुकसानदेय साबित हो रहा है। लगातार इसके संपर्क में रहने से शरीर की विभिन्न नलियों में भी कालापन जम जाता है। इस प्लांट के आसपास रहने वाले लोगों की जिंदगी औसत उम्र से कम हो जाती है। वहीं इसमें काम करने वाले कर्मचारियों का तो और भी बुरा हाल है। टायर जलाने से भारी प्रदूषण फैलता है। जिसके दुष्प्रभाव को देखते हुए टायर जलाने के प्लांटों को संचालन की अनुमति नहीं दी जाती। इसके बाद भी कोरबा में यह प्लांट संचालित हो रहे हैं। इस दिशा में पर्यावरण संरक्षण विभाग के अफसरों की भूमिका संदेह के दायरे में है। विभागीय अधिकारियों से लंबी चौड़ी सेटिंग कर ली गई है। इस सेटिंग के कारण यह प्लांट संचालित हो रहे हैं।

वैसे भी पर्यावरण विभाग के क्षेत्रीय कार्यालय में पदस्थ अधिकारी आरपी शिंदे लंबे समय से जिले में जमे हुए हैं। प्रदूषण फैलाने के अधिकांश मामलों में उनकी ओर से केवल कागजी कार्रवाई ही नजर आती है। प्रदूषण फैलाने वालों पर कभी भी सख्ती नहीं दिखाई जाती। जो उनके संदेहास्पद रवैय्ये को दर्शाता है। उन पर सांठगांठ के आरोप भी लोग दबी जुबां से लगाते रहे हैं, लेकिन इसके बाद भी जिले की आबोहवा को खतरे में डालने वालों के खिलाफ कोई भी बड़ा एक्शन न तो केंद्र और न ही प्रदेश स्तर पर लिया गया है।

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