कविता @ गेंदलाल शुक्ल
युद्ध
युद्ध
कभी- कभी बहुत जरूरी हो जाता है
जैसे,
शेर की मांद में झोंक दिये गये
आदमी के लिए जरूरी हो जाती है-आत्मरक्षा
युद्ध से,
कभी, किसी का भला नहीं हुआ
उजाड. हो जाते हैं-गांव के गांव
मैदानों में बदल जाते हैं खेत-खलिहान
नदियां अपना रास्ता बदल देती हैं
कारखानों की धडकनें रूक जाती हैं
और ठहर जाते हैं विकास के पांव
युद्ध का कोई तरफदार नहीं है
फिर भी होते हैं-युद्ध
जब शक्ति का संतुलन बिगड. जाता है,
किसी एक हाथ मेें जकड. जाती है- दुर्गा
जब मानव का अहंकार सिर उठाता है,
जब कोई देखता है-हिटलरी सपना
और फौजी बूट कदम-ताल करते हैं
तब बहुत जरूरी हो जाता है युद्ध
स्वत्व की सुरक्षा के लिए
आप्त-जनों की रक्षा के लिए
जब शान्ति कपोतों की देह
संगीनों की भंेट चढ.ा दी जाती हैं
बंद हो जाते हैं स्कूलों के पट,
मासूम कन्धों से उतार लिए जाते हैं – बस्ते
नवजवानों के हाथों में थमा दी जाती हैं- बंदूकें
हवा में घुल-मिल जाती हैं बारूदी सड़ान्ध
तब बहुत जरूरी हो जाता है युद्ध इस युद्ध को कोई टाल नहीं सकता