तीन कृषि कानूनों का सच और किसान आन्दोलन, आइये तथ्यों से रूबरू हों

“जिन तीन कृषि संबंधी कानूनों का इतना विरोध हो रहा है उनके बारे में जब भी और जितना भी सोचता हूँ तो मुझे बरबस फ़ैज की यह पंक्तियाँ याद आ जाती हैं-

“वो बात सारे फसाने में जिसका जिक्र न था
वो बात उनको बहुत नागवार गुजरी है ।।”

मेरी बात शायद आपको अजीब लगे । तो आइये आपको इन विधेयकों की मुख्य बातों से अवगत करा दूँ।

सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि जून 2020 में 3 अध्यादेशों के माध्यम से सरकार ने कृषि क्षेत्र में सुधार की मंशा स्पष्ट कर दी थी और सितंबर 2020 में इन्हीं सुधारों को कानूनी जामा पहनाया गया ।

इनमें पहला कानून है- The Farmers’ Produce Trade and Commerce(Promotion&Facilitation)Act 2020।इसका परिभाषित उद्देश्य एक ऐसी वैकल्पिक व्यवस्था का सृजन है जिसके माध्यम से किसान और व्यापारी पारदर्शी तरीके से लाभकारी मूल्य पर क्रय-विक्रय कर सकें। इसी दृष्टि से पूरे देश में कृषि उपज का निर्बाध परिवहन और इलेक्ट्रॉनिक व्यापार पद्धति भी प्रारंभ की जायेगी ।
इसकी प्रमुख बातें निम्न हैं-
1.कृषि उपज को देश में कहीं भी बेचा-खरीदा जा सकता है। 2. व्यापारी के लिये PAN Card अनिवार्य है।
3.किसान को उपज का मूल्य 3 दिन में भुगतान अवश्य किया जायेगा।
4.इस बिक्री और खरीद पर कोई मंडी शुल्क या कर नहीं लगेगा।
5.विवाद का निस्तारण SDM द्वारा गठित समिति करेगी जिसमें दोनों पक्ष एक-एक सदस्य नामित करेंगे और अध्यक्ष SDM द्वारा नामित अधिकारी होगा । यदि समिति असफल होती है तो SDMनिर्णय देंगे। अपील DM सुनेंगे।
6.राज्य सरकार द्वारा नामित अधिकारी पूरे तंत्र का पर्यवेक्षण करेगा।
7.व्यापारी द्वारा समय पर किसान का भुगतान न करने पर उसे अर्थदंड दिया जायेगा और लाइसेंस निरस्त किया जायेगा।

दूसरा अधिनियम है- The Farmers'(Empowerment & Protection)Agreement on Price Assurance & Farm Services Act2020 इसका परिभाषित उद्देश्य कृषि उपज और सेवाओं के लिए पूरे देश में एक जैसी व्यवस्था बनाना है।
इसकी मुख्य बातें निम्न हैं-
1.किसान अपनी उपज की बिक्री और कृषि संबंधित सेवाओं के लिए Agreement कर सकता है। इस समझौते में उपज की बिक्री का समय, गुणवत्ता,मानक कीमत का अंकन होगा।
विधिक प्रक्रियाओं का पालन क्रेता/ सेवा प्रदाता करेगा।
2.बंटाईदार के हित के विपरीत कोई समझौता नहीं किया जा सकता ।
3.समझौता एक फसल या अधिकतम 5 वर्ष के लिये किया जा सकता है।
4.उपज की गुणवत्ता केन्द्र/राज्य सरकार द्वारा नियत मानक के अनुसार होगी।एक निश्चित मूल्य के साथ ही बाजार -भाव पर आधारित बोनस या प्रीमियम की गणना भी की जायेगी ताकि बाजार भाव बढ़ने का लाभ किसान को भी मिल सके। सभी गणनाओं का विवरण समझौते के साथ संलग्न किया जायेगा।
5.किसान के घर, खेत से उपज सही समय पर उठाने का दायित्व क्रेता का होगा । यदि किसान उपज को क्रेता तक पहुँचाने की जिम्मेदारी लेता है तो उपज को समय पर लेने की जिम्मेदारी क्रेता की होगी।
6.उपज के मूल्य का भुगतान तुरंत करना होगा।
बीज के लिये मूल्य के 2/3 का भुगतान तुरंत और शेष भुगतान 30 दिन में किया जायेगा। 7. राज्य का मंडी संबंधित कोई कानून इस क्रय-विक्रय पर लागू नहीं होगा और भंडारण की कोई सीमा नहीं होगी।
8.किसान के भूमि संबंधी अधिकार को प्रभावित करने का कोई समझौता नहीं किया जा सकता। 9. सेवा प्रदाता या क्रेता द्वारा कोई स्थायी निर्माण नहीं कराया जायेगा। 10. किसान से सेवा का मूल्य या अग्रिम ही वसूला जा सकता है। लेकिन उसकी भूमि पर कोई अधिभार नहीं डाला जा सकेगा। क्रेता से उपज के मूल्य के अतिरिक्त मूल्य का डेढ़ गुना दंड के रूप में वसूला जाएगा।

तीसरा अधिनियम आवश्यक वस्तु अधिनियम को संशोधित करता है और भंडारण की सभी सीमायें समाप्त करता है। यह सीमा किसी आपदा में पुनः लागू की जा सकेगी।
इन तीनों कानूनों में कहीं भी MSP समाप्त करने की बात नहीं है । किसान के भूमि संबंधी अधिकार को अप्रभावित रखने के लिए स्पष्ट प्रावधान किये गये हैं।
तो फिर आपत्ति क्या है ?

और सबसे ऊपर ……यह केवल एक विकल्प देता है। यह बाध्यकारी नहीं है ।
तो फिर …?

सच्चाई यह है कि वर्तमान मंडी व्यवस्था अत्यंत अक्षम और भ्रष्ट है। छोटे और मंझोले किसान की उपज आढ़ती, बड़े किसान, राजनेता औने-पौने दाम पर खरीद लेते हैं और भारी लाभ कमाते हैं । सरकार इसी तंत्र को नष्ट कर देना चाहती है। अगर किसान की उपज उसके खेत से ही बिक जाये और तुरंत दाम भी मिल जाये तो वह इन्हें सस्ते में क्यों बेचेगा ? गेहूँ की फसल आनेवाली है। पंजाब में ही सबसे अधिक खरीद होती है। अगर एक बार यह हाथ से निकल गया तो फिर वापस नहीं आयेगा । इसी लिये पंजाब में इतनी बौखलाहट है। हर पैंतरा आजमाया जा रहा है- खालिस्तानी, पाकिस्तानी,नक्सली, देशी- विदेशी सब। 30,000 करोड़ से अधिक का मामला है। कानूनों के निरस्त होने से कम कुछ भी मान्य नहीं है। मूल आपत्ति बस यही है।
जहाँ तक contract farming की बात है वह अधिकतर राज्यों में पहले से है और पंजाब में तो किसान को शर्तों के उल्लंघन पर गिरफ्तार भी किया जाता है । केन्द्रीय कानून तो किसान के हित में है ।
तो फिर …?”

श्री मनोज कुमार, रिटायर्ड वरिष्ठ आई.पी.एस. अधिकारी उ.प्र. की फेसबुक वाल से साभार-

Spread the word