चेहरा तो वही लेकिन बदल गए सुर-ताल

न्यूज एक्शन। सियासत भी क्या चीज है। सत्ता का प्रभाव ऐसा है कि बेगाने भी अपने होने लगते हैं। सत्ता के केंद्र बिंदुओं का चाल चरित्र और स्वभाव आकर्षित करने लगता है। सूरत और सिरत की मंत्र मुग्धता का राग अलाप कर अपनों को बेगाना और गैरों को अपना बना लेने का इतिहास काफी पुराना है। कोरबा की सियासत में भी कुछ इसी तरह का घट रहा है। कोरबा के एक नेता कांग्रेस के राज में तो कांग्रेसी बने रहे। जैसे ही सत्ता पलटी प्रदेश में भाजपा सरकार बनी, वैसे ही नेता ने मुख्यमंत्री के व्यक्तित्व की तारीफ करते हुए भाजपा का दामन थाम लिया। नेता ने मुख्यमंत्री की तारीफों के खूब कसिदे पढ़े। डेढ़ दशक बाद अब सत्ता पलट होने के बाद इस नेता ने अचानक पार्टी को अलविदा कह दिया है। क्या सत्ता बदलते ही नेताजी के सुर-ताल बदल गए हैं। क्या अब उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री के व्यक्तित्व में वह आकर्षता नजर नहीं आती? क्या नेताजी ने एक बार फिर गुलाटी मारने की सोच ली है? ताकि फिर सत्तापक्ष के बूते उनकी राजनीति की दाल गलती रहे। नेताजी को लेकर सियासी गलियारे में जमकर चर्चाएं हैं। जो उनके इस उठापटक को जानते और समझते हैं वे अपने-अपने तरीके से आंकलन भी कर रहे हैं।

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