मार्कफेड के एक आदेश से राईस मिलर्स में मच गया हड़कंप
न्यूज एक्शन। छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी विपणन संघ (मार्कफेड) के संचालक पी. अम्बलगन ने प्रदेश के सभी राईस मिलों के भौतिक सत्यापन का आदेश जारी किया है। इस आदेश के बाद जिले के राईस मिल संचालकों में हड़कंप मच गया है। जिले में अनेक राईस मिल मालिक फर्जी मिलिंग क्षमता बताकर वर्षों से शासन से अनुचित आर्थिक लाभ लेते आ रहे हैं। ईमानदारी से भौतिक सत्यापन करने पर करोड़ों रुपयों का घोटाला उजागर हो सकता है।
मिली जानकारी के अनुसार मार्कफेड के आदेश के तहत सभी राईस मिलों में सहकारी समितियों से उठाए गए धान और कस्टम मिलिंग के बाद का चावल का स्टॉक नागरिक आपूर्ति निगम में चावल जमा की मात्रा आदि का भौतिक सत्यापन किया जाना है। दरअसल इससे पहले के वर्षों में अनेक राईस मिल मालिक धान उठाने के बाद चावल जमा नहीं करते थे और शासन का करोड़ों रुपए हड़प लेते थे। मार्कफेड के इस आदेश के बाद धान का उठाव और चावल जमा करने में होने वाली गड़बड़ी पर रोक लगेगी, लेकिन राईस मिल मालिकों में हड़कंप का असली कारण कुछ और है। जिले में अधिकांश राईस मिल मालिकों ने अपने मिल की क्षमता बढ़ाकर बता रखा है। हालत यह है कि दो टन क्षमता का मिल चलाने वाला भी अपनी मिलिंग क्षमता 6 से 8 टन दर्ज करा रखे हैं। इसी अनुपात में उन्हें कोरबा जिले की सहकारी समितियों से धान का डीओ जारी किया जा रहा है और उनके द्वारा कथित रूप से नागरिक आपूर्ति निगम में चावल जमा किया जाता है। बताया जाता है कि राईस मिल मालिक अपने मिल की बढ़ी हुई क्षमता पंजीयन कराने के लिए उद्योग विभाग और खाद्य विभाग के अधिकारियों का अनुचित लाभ लेकर प्रमाणित करते हैं। कहना अनुचित नहीं होगा कि मिल मालिक उद्योग विभाग और खाद्य विभाग की मिलीभगत से जारी इस खेल से शासन को लाखों रुपए की आर्थिक क्षति पहुंच रही है। इतना ही नहीं राईस मिल की क्षमता विस्तार के नाम पर उद्योग विभाग के माध्यम से कई राईस मिल मालिकों ने शासन से करोड़ों रुपयों का अनुदान भी हासिल कर लिया है। मार्कफेड संचालक के आदेश के अनुसार भौतिक सत्यापन के दौरान राईस मिल की संख्या और मिलिंग क्षमता की ईमानदारी से जांच की जाए तो करोड़ों रुपयों के घोटाले का पर्दाफाश हो सकता है।
ईमानदारी पूर्ण जांच की जरूरत
मार्कफेड के संचालक के आदेश के तहत राईस मिलों का भौतिक सत्यापन किया जाएगा, लेकिन सवाल उठता है कि इस जांच की निगरानी कौन करेगा? यह आरोप भी लगते रहे हैं कि वर्षों से उद्योग और खाद्य विभाग के अफसरों से सांठगांठ कर राईस मिलर्स शासन को लाखों रुपए की आर्थिक क्षति पहुंचाते रहे हैं। ऐसे में अगर संबंधित विभाग के अफसरों को ही जांच का जिम्मा दे दिया जाए तो फिर ईमानदारी पूर्ण जांच पर सवालिया निशान लग जाएगा। ऐसे में कहा तो यह जा रहा है कि जांच के लिए जिला स्तर के बजाए दीगर जिले व प्रदेश के अधिकारियों की तैनाती की जाए। ताकि किसी प्रकार की गड़बड़ी की संभावना न हो।
सरकार का हो जाएगा भला
इस आदेश के बाद कथित तौर से क्षमता से अधिक मिलिंग बताने वाले मिलर्स में हड़कंप मचा हुआ है। वर्षों से की गई गड़बड़ी जांच में उजागर होने का खतरा मंडरा रहा है। ईमानदारी पूर्ण जांच में कोरबा जिला ही नहीं वरन् पूरे प्रदेश में व्यापक पैमाने पर फर्जीवाड़ा उजागर हो सकता है। इस जांच के बाद कथित फर्जी मिल संचालकों के मिल में ताला तो लग ही जाएगा, शासन को पहुंचने वाली भारी आर्थिक क्षति भी रूकेगी। जांच में फर्जीवाड़ा पाए जाने पर शासन चाहे तो रिकवरी का कदम भी उठा सकती है। अगर ऐसा हुआ तो प्रदेश सरकार का भला तो होगा ही प्रदेश की जनता को भी इस फंड से विकास की सौगात मिलेगी।
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