खदान के विरोध में आदिवासियों का जिला मुख्यालय कूच

जल-जंगल और जमीन को भारी नुकसान से बचाने के लिए आदिवासी प्रदर्शन कर रहे

नारायणपुर: जिले में सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. नारायणपुर जिले के आमादई खदान को लीज पर सरकार ने दिया है. इसे लकेर ग्रामीण प्रदर्शन कर रहे हैं. ग्रामीणों के आंदोलन को देखते हुए पुलिस-प्रशासन अलर्ट है. ग्रामीणों का नेतृत्व कर रहे लोगों पर विशेष निगरानी रखी जा रही है. ग्रामीण पहले भी इसके विरोध में प्रदर्शन कर चुके हैं.

दरअसल आमदई खदान की लीज को रद्द करने की मांग को लेकर बस्तर संभाग के हजारों ग्रामीण जिला मुख्यालय में विरोध-प्रदर्शन करने को तैयार हैं. इसमें बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल हैं. इससे पहले बस्तर संभाग के 7 जिलों के हजारों ग्रामीणों ने धौड़ाई गांव में 5 दिनों तक आंदोलन किया था. इस आंदोलन के पांचवें दिन हजारों ग्रामीणों की उपस्थिति में कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा था. इसके लिए 15 दिनों का अल्टीमेटम जिला प्रशासन को दिया था. जिला प्रशासन से मिले आश्वासन के बाद ग्रामीण अपने घरों की ओर रवाना हुए थे. 15 दिन बीत जाने के बाद भी इस ओर कोई कार्रवाई नहीं की गई. जिसके बाद ग्रामीणों ने रविवार को अबूझमाड़ में चक्कजाम किया था. चक्काजाम की वजह से कई घंटों तक यातायात प्रभावित रहा.

नए थाना और कैंपों का विरोध.अंदरूनी इलाकों में पुलिस के सर्च अभियान को बंद करने की मांग.जेल भेजे गए ग्रामीणों की रिहाई की मांग.आमदई खदान को बंद करने की मांग रविवार को हजारों की संख्या में ग्रामीणों ने कड़ी ठंड में खुले आसमान के नीचे प्रदर्शन किया और सोमवार की सुबह मुख्यालय के लिए निकल गए. ग्रामीणों को रोकने के लिए जगह-जगह बैरिकेड्स लगाए गए हैं. सभी ग्रामीणों को फरसगांव थाने के 200 मीटर आगे रोका गया है. ग्रामीणों का कहना है कि करियामेटा, छोटेडोंगर और धौड़ाई में हम पहले भी अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर चुके हैं, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ है. ग्रामीणों का कहना है कि जब तक उनकी बात नहीं सुनी जाती, तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा.

आमदई खदान को लेकर ग्रामीणों ने जिला प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए और कहा कि निको कंपनी के साथ जिला प्रशासन ने फर्जी जनसुनवाई कर दलाली की है. खदान की शुरुआत होने पर पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचेगा. साथ ही 84 परगना के जो देवी-देवता इस आमदई खदान में हैं, जिनकी पूजा-अर्चना वे हजारों सालों से करते आ रहे हैं, वो भी नहीं कर पाएंगे. कलेक्टर ने ग्रामीणों को बताया कि निको खदान को लीज वर्ष 2005 में ही मिल गया था, जिसके लिए ज सुनवाई हुई थी, जिसमें आप लोगों के ही बीच के लोगों ने आकर अपनी सहमति प्रदान की थी. इसके बाद ही निको कंपनी को खदान के लिए लीज मिली थी. कलेक्टर ने बताया कि इसके लिए पर्यावरण का सर्वे भी किया गया था, जिसमें वैज्ञानिकों ने जानकारी दी है कि इसकी खुदाई शुरू होने से आसपास किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचेगा. कलेक्टर ने आंदोलनकारियों को आश्वस्त किया कि उनकी मांगों का ज्ञापन राज्य सरकार को सौंपा जाएगा.

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