रेलवे का दायित्व केवल कोयला ढुलाई तक सीमित, यात्री सुविधाओं से कोई मतलब नहीं

उपेक्षा की जंजीर में जकड़ा कोरबा, कब मिटेगा रेलवे का अभिशाप?

कोरबा 03 अपै्रल। अमृत काल में भले ही रेलवे देश के दूसरे हिस्सों को कनेक्टिविटी देने और लोगों को सहूलियत देने के मामले में उदारता दिखा रहा है लेकिन अधिक राजस्व की प्राप्ति जिस कोरबा से हो रही है उसे एक तरह से अभिशप्त बना दिया गया है। नाम के लिए कोरबा स्टेशन को मॉडल बनाने की तैयारी है और दूसरी जरूरतों पर काम किया जा रहा है लेकिन यह बात हैरान करती है कि राजधानी और जोन मुख्यालय बिलासपुर से कोरबा के लिए पूरे आठ घंटे कोई ट्रेन नहीं है। कई बार इस बारे में ध्यान आकर्षित कराने पर रेल प्रबंधन मौन है।

कोरबा से बिलासपुर, रायपुर और अन्य हिस्सों के लिए गिनती की ट्रेन चलाई जा रही है। ऐसा करने के साथ यह दिखाया जा रहा है कि कोरबा रेलवे की नजर में कितना महत्वपूर्ण है और क्षेत्र के नागरिकों को किस हद तक सुविधाएं दी जानी चाहिए। स्थिति यह है कि कोविड के बाद से कई नियमित ट्रेनों को बंद कर दिया गया। कोरबा जिले में ही स्थित गेवरारोड स्टेशन से गाडियां बंद कर दी गई ताकि झंझट ही खत्म हो जाए। 50 हजार से भी ज्यादा की आबादी इस वजह से परेशान है। यात्री ट्रेनों का कनेक्शन उन्हें पहले गेवरारोड से मिल जाता था अब उसके लिए कोरबा आना पड़ रहा है या फिर दूसरे विकल्पों का सहारा लेना पड़ रहा है।

लंबे समय से रेल सुविधाओं की बेहतरी के लिए काम कर रही रेल संघर्ष समिति ने हैरानी जताई है कि रेल प्रबंधन कोरबा को लेकर पहले से ही नकारात्मक रहा है और अभी भी इस रवैये में कोई सुधार नहीं हो सका है। समिति के पदाधिकारी रामकिशन अग्रवाल और अंकित सावलानी ने बताया कि अनेक अवसर पर यात्री सुविधाओं को नजरअंदाज करने को लेकर उच्चाधिकारियों से पत्राचार किया गया और स्थिति ठीक करने की बात कही गई। हालात ऐसे हैं कि रायपुर और बिलासपुर से कोरबा के लिए सुबह 10 से शाम 6 बजे तक कोई ट्रेन नहीं है। इस वजह से इस मार्ग पर यात्रियों की परेशानी बढ़ी हुई है। ऐसा महसूस किया जा रहा है कि भले ही रेलवे नेटवर्क में कोरबा का नाम शामिल है लेकिन एसईसीआर जोन ऐसा नहीं मानता है।

नवरात्र पर ट्रेन की मांग भी ठुकराई रेलवे ने
पिछले कई महीनों से यह मांग होती रही है कि चौत्र नवरात्र पर्व नजदीक है और इस बात को ध्यान में रखते हुए औद्योगिक नगर कोरबा से छत्तीसगढ़ की धार्मिक नगरी डोंगरगढ़ के लिए स्पेशल ट्रेन चलाई जाए। इस ट्रेन के संचालन से कोरबा, जांजगीर-चांपा सहित बड़े हिस्से के लोगों को सुविधा मिलती। वे कम समय में देवी दर्शन करने के साथ अपने स्थान वापस हो सकते हैं। उपयुक्त सुझाव और राजस्व की दृष्टि से महत्वपूर्ण योजना को रेलवे ने उपेक्षित किया। ऐसी स्थिति में कहा जा रहा है कि रेलवे के लिए कोरबा का महत्व केवल कोयला ढुलाई तक ही सीमित हो गया है और उसे यात्री सुविधाओं से कोई मतलब नहीं रह गया है।

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