छत्तीसगढ़ में आदिवासियों का सुनियोजित शोषणः जल-जंगल-जमीन लूटने की साजिश के खिलाफ आदिवासी समाज का हुंकार

कोरबा 24 मार्च। छत्तीसगढ़ में सरकार चाहे कांग्रेस की रही हो या बीजेपी की, दोनों ने आदिवासियों के उत्थान की बड़ी-बड़ी बातें कीं, लेकिन हकीकत यह है कि आदिवासियों का शोषण लगातार जारी है। जल-जंगल-जमीन से बेदखल कर उन्हें विस्थापन की पीड़ा दी जा रही है। कोरबा में आयोजित छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के शपथ ग्रहण समारोह में प्रदेशभर से जुटे आदिवासी नेताओं ने इस अन्याय के खिलाफ हुंकार भरी और सरकारों को चेतावनी दी कि यदि जल-जंगल-जमीन की लूट बंद नहीं हुई, तो सड़क से संसद तक उग्र आंदोलन किया जाएगा।
आदिवासियों को लूटने की साजिश अब नहीं चलेगी”-शिशुपाल सोरी
पूर्व विधायक और पूर्व एएसआई अधिकारी शिशुपाल सोरी ने कहा कि छत्तीसगढ़ के आदिवासी अलग-अलग समस्याओं से जूझ रहे हैंकृखनन क्षेत्र में विस्थापन, वन बहुल क्षेत्र में वनाधिकार की लूट, और मैदानी क्षेत्र में जमीन की जबरन हड़प। सरकारें सिर्फ खनन माफियाओं की दलाल बन गई हैं, जबकि आदिवासी अपने ही घरों से बेघर किए जा रहे हैं। अब यह अन्याय बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, हर स्तर पर लड़ाई लड़ी जाएगी।
सरकारों के खिलाफ आर-पार की लड़ाई होगी” -राजेंद्र कुमार राय
छत्तीसगढ़ आदिवासी समाज के कार्यकारी अध्यक्ष राजेंद्र कुमार राय ने साफ शब्दों में कहा कि सरकारें आदिवासियों के अस्तित्व को मिटाने पर तुली हुई हैं। छत्तीसगढ़ के 33 में से 26 जिलों में आदिवासी समाज को एकजुट किया जा चुका है, और अब यह लड़ाई निर्णायक मोड़ पर है। उन्होंने कोरबा जिले के केंदई गांव का उदाहरण दिया, जहां 40 गांवों की जमीन धंस रही है, लेकिन सरकार कान में तेल डालकर बैठी है। अगर सरकार नहीं जागी, तो आदिवासी समाज अपने हक के लिए बड़ा आंदोलन छेड़ेगा।
खनन के नाम पर आदिवासियों का नरसंहार!-बोधराम कंवर
कटघोरा के पूर्व विधायक और वरिष्ठ आदिवासी नेता बोधराम कंवर ने कहा कि सरकारें आदिवासियों के जल-जंगल-जमीन को खनन कंपनियों को बेच रही हैं। कोरबा जिले में तीन बड़ी कोयला खदानों के चलते हजारों हेक्टेयर जंगल उजड़ चुका है। जंगल कट रहे हैं, जीव-जंतु मर रहे हैं, और आदिवासी भूखों मरने को मजबूर हैं। सरकार को खदानों से मिलने वाले करोड़ों रुपये दिखते हैं, लेकिन आदिवासियों की तबाही नहीं दिखती।
खनन कंपनियों ने जल-संकट पैदा किया, सरकार मूकदर्शक!”- मोहिंदर सिंह कंवर
रिटायर्ड पुलिस अधिकारी और युवा आदिवासी नेता मोहिंदर सिंह कंवर ने बताया कि एसईसीएल की रानी अटारी, विजयपुर वेस्ट खदान के कारण हजारों आदिवासी परिवार जल संकट से जूझ रहे हैं। गांवों का अधिग्रहण कर लिया गया, लेकिन विस्थापितों को पीने तक का पानी नहीं दिया जा रहा! जंगल कट रहे हैं, जमीन धंस रही है, और सरकार खदान माफियाओं की दलाली कर रही है। अब आदिवासी समाज चुप नहीं बैठेगा, सरकार को इसका जवाब देना होगा।
सीएसआर फंड का पैसा कहां जा रहा? आदिवासियों को नहीं मिल रहा हक!”-बृजलाल पंडो
पंडो जनजाति समाज के अध्यक्ष बृजलाल पंडो ने खुलासा किया कि रानी अटारी खदान के 8 किलोमीटर के दायरे में 48 गांव आते हैं, लेकिन सीएसआर फंड का एक भी पैसा उन पर खर्च नहीं किया गया। सरकार सिर्फ धरती माता का कलेजा काटकर कोयला निकाल रही है और मुनाफा खा रही है, लेकिन आदिवासियों को मरने के लिए छोड़ दिया गया है। उन्होंने मांग की कि अब मुआवजा नहीं, विस्थापितों को जमीन दी जाए, वरना आदिवासी समाज उग्र आंदोलन करेगा।
“छत्तीसगढ़ धान का कटोरा नहीं, बालू और कोयले का कब्रिस्तान बन गया!”-मुरली दास संत
एकता परिषद के नेता मुरली दास संत ने कहा कि सरकारें झूठे वादे कर आदिवासियों को ठग रही हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर सरकार नहीं चेती, तो आदिवासी समाज कानूनी और आंदोलन दोनों स्तरों पर आर-पार की लड़ाई लड़ेगा।
कोयला निकालो, लेकिन जंगल मत उजाड़ो!”-ननकीराम कंवर
छत्तीसगढ़ के पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर ने कहा कि सरकार को पर्यावरण और आदिवासियों की परवाह करनी चाहिए। अगर कोयला निकालना जरूरी है, तो जंगलों का संरक्षण भी जरूरी है। उन्होंने सरकार को चेतावनी दी कि अब आदिवासी समाज गुमराह नहीं होगा, वह अपने अधिकारों के लिए लड़ेगा।
आंदोलन की सुगबुगाहट !
कोरबा में हुए इस आयोजन में प्रदेशभर के आदिवासी नेताओं ने एकजुट होकर सरकार को स्पष्ट संदेश दियाकृअगर जल-जंगल-जमीन की लूट बंद नहीं हुई, तो सड़क से संसद तक आदिवासी समाज निर्णायक संघर्ष करेगा। सरकारें आदिवासियों को सिर्फ वोट बैंक समझती हैं, लेकिन अब आदिवासी समाज जाग गया है। यह लड़ाई सिर्फ खदानों या जंगलों की नहीं, बल्कि आदिवासी अस्तित्व की लड़ाई है। अगर सरकारें नहीं चेतीं, तो छत्तीसगढ़ की धरती पर इतिहास का सबसे बड़ा आंदोलन खड़ा होगा।