छत्तीसगढ़ भाजपा: मैं चाहे ये करूँ, मैं चाहे वो करूँ, मेरी मर्जी

कोरबा में दिखी अनुशासनहीनता की पराकाष्ठा, पार्टी को अब तक की सबसे बड़ी चुनौती
कोरबा। आप सबने कभी ना कभी एक लोकप्रिय फिल्मी गीत जरूर सुना होगा। गीत के बोल हैं- “मैं चाहे ये करूँ, मैं चाहे वो करूँ, मेरी मर्जी!” इन दिनों छत्तीसगढ़ भाजपा में यही हो रहा है। कोरबा में तो इतिहास ही रच दिया गया है। नगर पालिक निगम के सभापति चुनाव में पार्टी से खुला घात के बाद गठित जांच समिति को भी अंगूठा दिखा दिया गया है।
दरअसल, नगर पालिक निगम कोरबा के सभापति के चुनाव में 68 में 46 वोट होते हुए भी भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा। भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़कर आये एक बागी पार्षद को सभापति चुन लिया गया। भाजपा पार्षदों के सामूहिक क्रॉस वोटिंग को सामूहिक बगावत बताया गया। लेकिन इसे, साजिश भी कहा गया। पार्टी ने इसे गंभीरता से लिया। बागी सभापति को 6 वर्षों के लिए पार्टी से निकाल दिया गया। कैबिनेट मंत्री लखनलाल देवांगन को शो- काज नोटिस जारी कर दिया। फिर मामले की जांच के लिए तीन सदस्यों की एक समिति गठित की गई।
मतदाताओं की ओर से दी गई दो तिहाई बहुमत के बावजूद पार्टी की शर्मनाक हार और पार्षदों की सामूहिक बगावत अथवा साजिश की जांच के लिए गठित भारतीय जनता पार्टी की तीन सदस्यीय समिति ने मंगलवार को कोरबा पहुंचकर छानबीन की। समिति के सामने भी पार्षदों का बागी तेवर बरकरार रहा और उन्होंने, समिति के सदस्यों से वन टू वन मिलने से इनकार कर दिया।
वरिष्ठ भाजपा नेता और छत्तीसगढ़ विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल और दो अन्य सदस्य पूर्व विधायक रजनेश सिंह एवं प्रदेश मंत्री श्रीनिवास राव मद्दी ने कोरबा पहुंचकर सबसे पहले जिला कोर कमेटी की बैठक ली। इसके बाद पार्षदों की सामूहिक बैठक ली गई। अंत में समिति के सदस्यों ने पूर्व गृह मंत्री ननकी राम कंवर सहित कोर कमेटी के सदस्यों से वन टू वन चर्चा की। जबकि पार्षदों ने वन टू वन अपनी बात रखने से इनकार कर दिया और साफ शब्दों ने कहा कि वे जो भी बात करेंगे, सामूहिक रूप से करेंगे। समिति ने दो बार पार्षदों को अकेले- अकेले मिलने के लिए बुलाया, मगर कोई पार्षद सहमत नहीं हुआ।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सामूहिक बैठक में पार्षदों ने सभापति प्रत्याशी को लेकर संगठन के निर्णय के प्रति असहमति जाहिर की। समिति को बताया गया कि पार्षदों की राय के कुछ बिन्दू थे, जिन पर विचार किया जाना था। मसलन, महापौर कोरबा नगर से चुना गया तो हसदेव नदी के दूसरे तट, कोरबा पश्चिम से किसी को सभापति बनाया जाना चाहिए था। महापौर सामान्य वर्ग से है तो ओबीसी को सभापति का दायित्व दिया जाना चाहिए था। उन्होंने प्रत्याशी को लेकर भ्रम की स्थिति निर्मित होने की भी जानकारी समिति को दी। पार्षदों और कोर कमेटी के सदस्यों की सामूहिक बैठक में जमकर चीख चिल्लाहट हुई, जो बंद सभागृह से बाहर तक सुनाई दे रही थी। सूत्रों के अनुसार, मंगलवार की संपूर्ण घटनाक्रम की प्रारंभिक जानकारी मिलने के बाद रायपुर से लेकर दिल्ली तक भाजपा में हलचल पैदा हो गई है। संगठन ने इसे गंभीरता से लिया है। पार्टी नेता आश्चर्यचकित है कि अपनी सुचिता और अनुशासन के लिए विख्यात भाजपा के पार्षद किसकी शह पर पार्टी को खुली चुनौती दे रहे हैं?
इस घटनाक्रम की कोरबा में भी सरगर्म में चर्चा है। लोग कह रहे हैं कि जिस पार्टी में वसुंधरा राजे सिंधिया, शिवराज सिंह चौहान और डॉक्टर रमन सिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं की जगह एक झटके में नए मुख्यमंत्री बना दिए गए और कहीं विरोध नहीं हुआ। व्यापक जनाधार के बावजूद कद्दावर मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को लोकसभा भेज दिया गया और पार्टी के निर्णय को उन्होंने बिना विरोध किये स्वीकार कर लिया, उस पार्टी में ऐसा शक्तिशाली कौन नेता है, जिससे संरक्षण पाकर कोरबा के पार्टी पार्षद बागी हो गए हैं?
सूत्रों के अनुसार गौरीशंकर अग्रवाल जांच समिति, अगले तीन दिनों के भीतर अपनी जांच रिपोर्ट प्रदेश संगठन को सौंप देगी। पार्टी के प्रदेश प्रभारी नितिन नवीन, 22 मार्च को रायपुर आ रहे हैं। प्रदेश संगठन, इस दिन जांच रिपोर्ट उन्हें सौंपेगा। बताया जा रहा है कि मंगलवार के घटनाक्रम के बाद प्रदेश भाजपा का रूख और सख्त हो गया है। संगठन को विश्वास हो गया है कि कोरबा के पार्षदों की बगावत एक बड़ी साजिश का परिणाम है। अब इस बात की भी जांच की तैयारी की जा रही है कि इस षड्यंत्र के पीछे कौन-कौन लोग सक्रिय हैं और उन्हें पार्टी के किन प्रभावशाली नेताओं का संरक्षण प्राप्त है? पार्टी का मानना है कि कोरबा की बगावत को नियंत्रित नहीं किया गया तो जगह-जगह छत्रप पैदा हो जाएंगे और पार्टी का अनुशासन भंग हो जाएगा। बहरहाल, पार्टी को अभूतपूर्व असहज स्थिति में पहुँचा देने वाले इस इस मामले में पार्टी के निर्णय पर सबकी निगाह टिकी हुई है।