बिरतराई गांव में स्वाधीनता के 7 दशक बीतने के बाद भी मूलभूत सुविधाएं नही, खाट के भरोसे हैं मरीज
कोरबा 11 जुलाई। भारत सरकार के द्वारा निर्धारित आकांक्षी जिलों की सूची में छत्तीसगढ़ के कोरबा को शामिल करने के साथ कई बिंदुओं पर काम किया जा रहा है। राज्य सरकार भी प्राथमिकताओं पर जोर देने में पीछे नहीं है। इन सबके बावजूद आदिवासी बाहुल्य और बीमारियों के मामले में संवेदनशील श्रेणी के विकासखंड पोड़ी उपरोड़ा के बिरतराई गांव के मरीज अब भी खाट के भरोसे हैं। बीमारी पडऩे पर अस्पताल पहुंचाने के लिए उन्हें खाट ही सहारा बनती है। लगातार इस प्रकार के मामले सामने आ रहे हैं जो व्यवस्था पर सवाल खड़े करते हैं।
बिरतराई गांव में स्वाधीनता के 7 दशक बीतने के बाद भी मूलभूत सुविधाएं नहीं हो सकी है। इसके पीछे कारण चाहे जो हो लेकिन मौजूदा कमियों के चक्कर में ग्रामीण आबादी बेहद परेशान है और अपने आपको अभिशापित महसूस कर रही है। जब कभी उनके सामने समस्याएं पेश आती है तो वे सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि आगे क्या होगा। गायत्री बाई के साथ भी ऐसा हुआ। अपने घर पर कुर्सी से गिरने के कारण उसका पैर फ्रैक्चर हो गया। समस्या थी उसे अस्पताल पहुंचाने की। भला हो कि मौके से टेलीकॉम कंपनी के भरोसे परिजनों ने स्वास्थ्य सेवा पर संपर्क किया। कुछ देर के बाद उनके गांव तक 108 संजीवनी पहुंच गई लेकिन महिला के घर तक उसकी पहुंच संभव नहीं हो सकी। बारिश में कच्चे रास्ते पर उसकी पहुंच असंभव थी। जबकि दूरी भी बहुत ज्यादा थी। ऐसे में एकमात्र विकल्प था खाट का। संजीवनी के कर्मियों ने ग्रामीणों की मदद ली। खाट पर पीडि़ता को बैठाने के साथ उसे एंबुलेंस तक पहुंचाया गया और फिर वहां से मेडिकल कॉलेज हास्पिटल की दूरी तय की गई। हालांकि इस तरह का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी ऐसे उदाहरण बिरतराई में पेश आ चुके हैं और पहुंचविहिन ग्रामों में बिरतराई जैसे कई नाम शामिल हैं जहां इस तरह के हालात लंबे समय से बने हैं। नेतृत्व और प्रशासन तंत्र की कमजोरी कहा जाए जिसके कारण इस तरह के इलाके को साधन संपन्न श्रेणी में शामिल नहीं किया जा सका है।
पगडंडी के सफर पर चुनौतियां खबर के मुताबिक बिरतराई में जहां तक एंबुलेंस की पहुंच हुई वहां से गायत्री बाई के मकान तक पहुंचने का रास्ता पगडंडी जैसा है। उपर से बारिश के मौसम में समस्याएं ढेरों हैं। पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग के साथ सरकार की कई योजनाओं के क्रियान्वयन के बावजूद अब तक यहां पक्की सड़क का सपना पूरा नहीं हो सका। इन कारणों से भी गायत्री की हालत बिगडऩे पर 108 संजीवनी की टीम को चुनौतियों का सामना करना पड़ा। बताया जाता है कि इस टीम में उन्हीं कर्मियों को रखा गया है जो किसी भी तरह के टॉस्क पर काम कर सकने में सक्षम हैं। हालांकि उन्हें संवेदनशीलता से काम करने के लिए भी कहा गया है।