कराहते समय में संवेदना की रेत पर बिखर रहा है प्रेम …. उषारानी राव

जैसे थामती है हवा
सफेद बादलों की
कतार में..
नीले सागर के
गर्भ में ..
पतझड़ के पत्तों के
मर्मर में ..
चेतन के अचेतन में ..
थामते हैं तुम्हारे हाथ
मुझे
जैसे थामती है
हवा फूलों को !
तुम्हारा
आलोकमय स्पर्श
जीवित रखते हैं
मुझे
अनंत तक!
दिखते हो तुम
आँखें बंद करने पर …
दिखते हो तुम ..केवल
तुम !
मेरी हर स्पंदन से जुड़ कर …
ले ..चलते हो
मुझे ..मुक्त सीमांत तक
जहाँ प्रणय प्रकाशित है !
चलने का विभोर आनंद
सारी विषमताओं की
दीवार फाँदकर …
अज्ञात के भीतर खींचकर
ले जाता है ..
अजस्त्र स्रोत है वहाँ
मेरी कविताओं के शब्दों का
अर्थों का ,भावों का !
एक उजला सपना ..
एक अकाल में दरकीमिट्टी ..
एक बाढ़ में उजड़ी
फसल ..
एक विद्रोही का स्वर ..
एक निर्दोष की मौत ..
पहाड़ से लेकर बिंदू
तक …
रखते हैं आच्छन्न मुझे !
तुम जिसे अभेद कहते हो
वही मेरा जीवंत निःश्वास है
जीवन के बोध के लिए ..
मृत्यु का बोध ..
और..
मृत्यु के बोध के लिए
निविड़ ..
अंतरंगता के साथ प्रेम!
निर्बाध प्रेम
भादों की नदी-सी बहती ..
हृदय की
प्यास है प्रेम .
भावना का उफान
मात्र नहीं!
अनुभूति की सच्चाई से भरी…
पानी में
नमक के एकाकार -सा …
स्वाति के बूंदों की
बेकली से प्रतीक्षा
चातक का
हठ है प्रेम !
विरह के बिना उपजता
नहीं यह
सभी विकारों को
भस्म कर देने में सक्षम
आग के
समान है प्रेम !
कराहते समय में
संवेदना की रेत पर बिखर रहा है
प्रेम ….
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