खुली खदानों में कोयला मंत्रालय ढूंढ रहा भूमिगत का विकल्प
कोरबा 11 दिसम्बर। कोल इंडिया ने अब खुली खदानों (ओपन कास्ट) की जगह भूमिगत खदानों पर ध्यान केंद्रित कर दिया है। इससे पर्यावरण संरक्षण में और अधिक मदद मिलेगी। साथ ही हरे-भरे पेड़ों की कटाई और जमीन अधिग्रहण को लेकर पेंच नहीं फंसेगा। पहले ही पर्यावरण, वन मंत्रालय व राज्य सरकार की अनुशंसा पर छत्तीसगढ़ के लगभग 10 प्रतिशत आरक्षित क्षेत्र वाले नए कोल ब्लाकों को कमर्शियल माइनिंग की नीलामी सूची से हटा दिया गया है।
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सुझावों की अनदेखी कर कोयला मंत्रालय, कामर्शियल माइनिंग करने के पक्ष में नहीं है। यही वजह है कि छत्तीसगढ़ के घने जंगल क्षेत्र में आने वाले 40 नए कोल ब्लाकों को नीलामी के अगले दौर के लिए बाहर कर दिया गया है। इसमें हसदेव अरण्य व लेमरू अभयारण्य के कोल ब्लाक अधिक हैं। गैर अधिसूचित किए गए क्षेत्रों में अब निजी सेक्टर के माध्यम से खानों के प्रचालन में भूमिगत खनन में रुचि आकर्षित करने के लिए प्रोत्साहन प्रविधानों पर भी विचार किया जा रहा है। यहां बताना होगा कि कोयला मंत्रालय के प्रयासों के परिणामस्वरूप, पिछले पांच वर्षों के दौरान कोयले की कुल खपत में आयात का हिस्सा 26 प्रतिशत से घटकर 21 प्रतिशत हो गया। फिर भी, भारत भारी विदेशी मुद्रा खर्च करके सालाना 2000 लाख टन से अधिक कोयले का आयात कर रहा है। पिछले साल भारत ने कोयले के आयात बिल पर 3.85 लाख करोड़ रुपये से अधिक व्यय किए। भारत में कोयले का चौथा सबसे बड़ा भंडार है। इसलिए घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा, ताकि आयात पर निर्भरता में कमी लाई जा सके। यही वजह है कि पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से निरस्त किए गए खदानों में हरित उत्खनन की संभावनाएं तलाशी जा रही।
कोयला मंत्रालय ने देशभर की भूमिगत खदानों से वर्ष 2028 तक 300 लाख टन व वर्ष 2030 तक 1,000 लाख टन कोयला उत्पादन का रोड मैप तैयार किया है। ओपनकास्ट की तुलना में भूमिगत खदान से कोयला उत्पादन करने में लागत अधिक आती है। इन दिनों अत्याधुनिक कंटीव्यूनर्स कोल कटर मशीन से न केवल भूमिगत खदानों में उत्पादन आसान हो गया है, बल्कि श्रमबल की आवश्यकता भी कम पड़ती थी। एसईसीएल की खदानों को भी निजी सेक्टरों को दिए जाने की संस्कृति शुरू हो चुकी है।
साऊथ ईस्टर्न कोलफिल्डस लिमिटेड (एसईसीएल) के जनसंपर्क अधिकारी डा सनीष चंद्र ने बताया कि छत्तीसगढ़ के कोयलांचल में हरित आवरण को बढ़ावा देने के लिए कंपनी एक नयी पहल करने जा रही है। पहली बार जापानी पद्धति मियावाकी की मदद से वृक्षारोपण करने जा रही है। कंपनी एसईसीएल के गेवरा क्षेत्र में पायलट प्रोजेक्ट के आधार पर दो हेक्टेयर क्षेत्र में जंगल विकसित करने के लिए जापानी तकनीक मियावाकी का उपयोग करेगी। यह परियोजना लगभग चार करोड़ रुपये की अनुमानित लागत पर राज्य वन विकास निगम के साथ साझेदारी में लागू की जाएगी।