पुरुषोत्तम प्रतीक के तीन गीत

प्रस्तुति- सतीश कुमार सिंह

गीत 01

अब तलक भी जो हलाकू हैं
गीत मेरे _
उन सभी को तेज़ चाकू हैं _

तेज़ चाकू हैं उन्हीं को
सीपियों को चीरकर मोती निगलते जा रहे जो
मोतियों को खा रहे जो
खा रहे जो मोतियों को _
आदमी के भेष में- खूँखार डाकू हैं

वक़्त के साए हुए हैं
जो मुखौटे ओढ़ कर आए हुए छाए हुए हैं
धुन रहे हैं शब्द केवल
शब्द केवल धुन रहे हैं _
आज जितने जीभ के_ लुच्चे लड़ाकू हैं

कुर्सियों के छन्द हैं जो
पोथियों की गन्ध से भरपूर हैं मशहूर हैं जो
आदमी से दूर हैं जो
दूर हैं जो ज़िन्दगी से
जो ग़लत इतिहास के- अन्धे पढ़ाकू हैं
◼️◼️◼️◼️◼️◼️◼️◼️गीत 02

सुनो साथियो तुम्हें बताएँ लाला क्यों है लाला
इसने ही ईजाद किया था
सबसे पहले ताला

सुखा दिया इसने सारा अपने मन का पानी
खरे दाम में बेचा करता अपनी बेईमानी
ताले में जो बन्द पड़ा है
धन है सारा काला

रोटी देकर ख़ून चूसना इसका दया-धरम है
परदेशों को देश बेचने में भी नहीं शरम है
रहा सदा भारी पलड़े में
ये सरकारी साला

कोर्ट-कचहरी अस्पताल या जितने भी दफ़्तर हैं
इसको सब गिरजा, गुरुद्वारे, मस्जिद हैं, मन्दिर हैं
जगह-जगह पर बैठे इसके
ईश्वर अल्ला ताला
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गीत 03

असली नाम पसीने का है हिन्दुस्तान
फिर क्यों माँगे रोटी, कपड़ा और मकान

सोच कि तेरा किया-कराया कहाँ गया
हिस्सा तेरा किसके घर में समा गया
तुझे छीनना और बाँटना आता है
अब तक बाँटा सबको जीने का सामान

छील रही है तुझे ज़िन्दगी छाँट रही
किसकी चालाकी जो तुझको बाँट रही
तुझे छीलना और छाँटना आता है
तेरी गूँज मशीनों में तेरी पहचान

धरती-जैसा सीना ही तूने पाया
बेईमानी ने सारा कुछ कब्ज़ाया
तुझे बीजना और काटना आता है
सागर है तुझमें भी तो होगा तूफ़ान

रेल, नहर, पुल, बाँध, पटरियों पर लेखा
गिरते-गिरते तूने उठतों में देखा
तुझे खोदना और पाटना आता है
जगह-जगह से बोल रहे तेरे निर्माण
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स्वर्गीय- पुरुषोत्तम प्रतीक
बनवारीपुर-घंघरावाली,
ज़िला – बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश

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