राजनीति @ डॉ. सुधीर सक्सेना
प्रदक्षिणा-पथ में खड़गे
डॉ. सुधीर सक्सेना
मापन्ना मल्लिकार्जुन खड़गे अब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष हैं, विधिवत निर्वाचित अध्यक्ष। वे दक्षिणात्य दलित नेता हैं। उम्र के मान से सयाने। कर्नाटक उनका गृहराज्य है। पार्टी के 137 वर्षों के आरोह-अवरोह भरे इतिहास में वह छठवीं शख्सियत हैं, जो मतदान के जरिये चुनी जाकर संगठन के शीर्ष पद पर पहुंची है। दिलचस्प तौर पर इस मतदान की नौबत भी सदी में पहली बार आई। इसके पूर्व संगठन के शीर्ष पद के लिए चुनाव सन् 2000 में हुए थे, जब श्रीमती सोनिया गांधी ने लगभग एकतरफा मुकाबले में जितेंद्र प्रसाद को परास्त किया था। उस प्रतिष्ठित द्वंद्व में श्रीमती गांधी को 7448 और प्रसाद को 94 मत मिले थे। इस हिलाज से खड़गे के मुकाबले शशि थरूर को एक हजार से अधिक मत मिलना गौरतलब है और कई जरूरी संदर्भों की ओर संकेत करता है। यह कांग्रेस में अभी तक शेष पारदर्शिता, लोकतंत्र और असहमति के प्रति सम्मान की ओर इंगित करता है और इसे रेखांकित करता है कि पार्टी की शक्तिशाली धुरी के खिलाफ खड़ा होना अपसारी (सेंट्रीफ्यूगल) बल को न्यौता देना नहीं है।
80 वर्षीय खड़गे आज देश की सबसे पुरानी पार्टी के निर्वाचित अध्यक्ष हैं और राजनीति में आधी सदी बखूबी बिता चुके हैं। दलित समुदाय के खड़गे के खाते में लगातार 10 चुनाव जीतने का चमकीला कीर्तिमान दर्ज है। लेकिन डेक्कन के इस कर्मठ नेता के बारे में हम अधिक नहीं जानते। वे आधा दर्जन से अधिक भाषाएं जानते हैं। सेठ शंकरलाल लाहोटी लॉ कॉलेज से सनद के बाद उन्होंने जस्टिस शिवराज पाटिल के दफ्तर में जूनियर की हैसियत से वकालत शुरू की और सन् 1969 में कांग्रेस से जुड़ गये। आज से ऐन 50 साल पहले वह पहले पहल कर्नाटक विधानसभा के लिए चुने गये। लगातार नौ चुनावों तक यह क्रम जारी रहा। पहले छात्रसंघ और फिर श्रमिक नेता के तौर पर सार्वजनिक जीवन में उतरे खड़गे देवराज अर्स, गुंडूराव, बंगरप्पा, वीरप्पा मोइली और एशएम कृष्णा की सरकारों में मंत्री रहे। दिलचस्प तौर पर वह काहिल या निठल्ले राजनेताओं की जमात में कभी शामिल नहीं रहे। सन् 1974 में उन्हें चर्म विकास निगम का चेयरमैन बनाया गया था। उन्होंने उपेक्षित और फटेहाल मोचियों की दशा सुधारने के लिए भरकस प्रयास किया। सन् 76 में वह प्राथमिक शिक्षा मंत्री बने, तो उन्होंने करीब 16000 अजा-अजजा शिक्षकों की भर्ती का अपूर्व उपक्रम किया। अगले दशक में वह राजस्व मंत्री बने तो उन्होंने भूमि-सुधारों को वरीयता दी। उन्होंने करीब 400 पंचाटों की स्थापना की और हजारों भूमिहीनों को भूमि की ठोस पहल। अलग-अलग समय में उन्होंने सहकारिता, यातायात और गृह विभाग भी संभाला।
उपरोक्त सन्दर्भों का जिक्र इसलिए कि खड़गे हमेशा पार्टी के अनुशासित और समर्पित सिपाही रहे। खफगी या बगावत से उनका कोई नाता नहीं रहा। सन् 1999 और सन् 2004 में वह मुख्यमंत्री पद के सशक्त दावेदार थे। एक तो दलित, दूसरे अपराजेय, लेकिन बाजी जीती एसएम कृष्णा और धर्म सिंह ने। खड़गे ने चूं न की और दोनों की सरकारों में मंत्री रहे। अपनी क्षमता के चलते वह सन् 2005 में कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष बने और उन्होंने स्थानीय चुनाव में अच्छे नतीजे दिये। यह अकारण नहीं है कि सन् 2018 में वह लोकसभा का चुनाव हारे तो आलाकमान ने उन्हें राज्यसभा के लिए उपयुक्त माना। नाजुक हालात में हुए इस सांगठनिक चुनाव में भी वह गांधई-नेहरू परिवार के घोषित या अधिकृत प्रत्याशी नहीं थे, लेकिन यह धारणा या संदेश चौतरफा फैल चुकी थी कि खड़गे गांधी-नेहरू की ‘च्वाइस’ या पसंद हैं। देखना बस यह था कि शशि थरूर की ‘चुनौती’ के पीछे कितने लोग खड़े होते हैं। यह देखना इस नाते भी मानीखेज था कि उनके मुकाबले शशि थरूर अपेक्षाकृत युवा, बेहतर वक्ता, अधिक चर्चित व सुपरिचित थे।
बहरहाल, खड़गे अब पार्टी के मुखिया हैं। चुनाव ‘सनसनीखेज तमाशा’ न बन सका। उसने पार्टी के लोकतांत्रिक चरित्र को स्थापित किया और अन्य दलों के सामने नजीर भी। वह गांधियों की पसंद के ऐसे ‘गैर-गांधी’ साबित हुए, जिसे कुल जमा कांग्रेसियों के लगभग 88 फीसद वोट मिले। तजुर्बे के मान से खड़गे सौभाग्यशाली हैं, लेकिन उनकी चुनौतियां भी बड़ी हैं। उनका सामना उस विशाल और शक्तिशाली पार्टी से है, जिसके आयुध नये, चमकीले और नुकीले हैं और जो न सिर्फ विरोधी दलों को नेस्तनाबूद करने पर आमादा है, बल्कि जिसकी साधनों की शुचिता में रंच मात्र आस्था नहीं है।
हिमाचल प्रदेश और गुजरात में विधानसभा के चुनाव सन्निकट हैं। ये दोनों निर्वाचन खड़गे के लिए ‘लिटमस टेस्ट’ साबित होंगे। यूं सन् 2024 भी ज्यादा दूर नहीं है, जब ‘महासंग्राम’ होगा।
खड़गे का दुर्भाग्य कि पार्टी के भीतर भी चुनौतियां कम नहीं हैं। समस्याग्रस्त राज्यों में राजस्थान सर्वोपरि है, गेहलोत बनाम पायलट द्वंद्व अभी थमा नहीं है। एक ओर गहलोत किसी कीमत कुर्सी छोड़ना नहीं चाहते, दूसरी ओर सब जानते हैं कि सचिन पायलट किसकी पसंद है? देखना होगा कि खड़गे इस गुत्थी को कैसे सुलझाते हैं? पार्टी की दशा देखते हुए खड़गे को कभी दृढ़ तो कभी लचीला नरम रूख अपनाना होगा। जहां तक पार्टी के भीतर उनकी छवि का प्रश्न है, बिलाशक वह सोनिया-राहुल-प्रियंका की त्रयी की पसन्द हैं। उनके परे जाने की वह सोच भी नहीं सकते। वह स्वय जानते हैं कि उनका अपना कद इस ‘त्रयी’ के सामने कितना बौना है। भीड़ जुटाने के मामले में भी वह कहीं पीछे हैं और उनका प्रभामंडल मद्धिम है। उनकी कामयाबी बहुत कुछ इस पर निर्भर करेगी कि वह कैसी टीम चुनते हैं? टीम में थरूर जैसों को तरजीह से उनका कद बड़ा होगा और छवि उजली। जहां तक इयत्ता का प्रश्न है मल्लिकार्जुन खड़गे धुरी या नाभिक नहीं हैं, बल्कि प्रदक्षिणा-पथ में चक्कर लगा रहे ऐसे उपग्रह हैं, जिसे धुरी पसन्द करती है और उसकी गति की कामयाबी की कामना भी।
( डॉ. सुधीर सक्सेना देश की बहुचर्चित मासिक पत्रिका ” दुनिया इन दिनों” के सम्पादक, देश के विख्यात पत्रकार और हिन्दी के लोकप्रिय कवि- साहित्यकार हैं। )
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