कोरबा : ट्रांसफर के बाद भी कुलदीप शर्मा बने हुए है नगर निगम आयुक्त.. फिर प्रभाकर पाण्डेय कौन ?
नवनीत राहुल शुक्ला, कोरबा
कोरबा 21 सितंबर। दिया तले अंधेरा यह मुहावरा शायद नगर पालिक निगम कोरबा के लिए ही बनाया गया है क्योंकि इस मुहावरे को चरितार्थ करने में नगर पालिक निगम कोरबा और उसके अधिकारी कभी कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। फिर चाहे मामला शहर के गली मोहल्लों में पसरी गंदगी का हो, जाम नालियों का हो या शहर भर में करोड़ों की लागत से बनी डामर की सड़कों का जो पहली ही बरसात में उखड़ कर धूल बन गई, नगर पालिक निगम कोरबा ने अपने “दिया तले अंधेरा” के ध्येय को हमेशा कायम रखा है।
इसी प्रकार, अपने द्वारा स्थापित उच्चतम मानकों के परिपालन में नगर पालिक निगम कोरबा द्वारा अपने अर्जित कीर्तिमानों की सूची में एक नया कीर्तिमान जोड़ लिया गया है जहां उनके द्वारा अपनी अधिकारिक वेबसाइट में 8 माह पूर्व स्थानांतरित हो चुके आईएएस कुलदीप शर्मा को अभी तक निगम आयुक्त बताया जा रहा है। आपको बता दें की आईएएस कुलदीप शर्मा का स्थानांतरण जनवरी माह में ही हो गया था जिसके पश्चात प्रभाकर पाण्डेय नगर निगम आयुक्त का पद संभाल रहे हैं।
हैरानी की बात तो यह है कि नगर निगम के जनसंपर्क विभाग के द्वारा नियमित तौर पर वर्तमान आयुक्त प्रभाकर पाण्डेय के नाम और चित्र के साथ प्रेस विज्ञप्तियाँ जारी की जा रही है परंतु आज दिनांक तक नगर निगम कोरबा की आधिकारिक वेबसाइट में कुलदीप शर्मा को ही वर्तमान निगम आयुक्त बताया जा रहा है, जो कि निगम प्रशासन की कर्तव्यनिष्ठ कार्यशैली व सतत जागरूकता का एक स्वर्णिम उदाहरण है।
यहां यह भी बताना जरूरी होगा कि नगर पालिक निगम कोरबा की अधिकारिक वेबसाइट का रखरखाव किसी सरकारी एजेंसी के द्वारा नहीं अपितु कोरबा की ही एक प्राइवेट कंपनी सर्वांग ( sarvang ) के द्वारा किया जाता है जिसे इस कार्य के लिए सालाना लाखों रुपए का भुगतान प्राप्त होता है। लाखों रुपए का भुगतान लेने के पश्चात भी यदि इस प्रकार की लापरवाही बरती जाए तो आप समझ ही सकते हैं कि नगर निगम कोरबा में किस प्रकार जनकोष का दुरुपयोग हो रहा है। शायद यही कारण है कि प्रदेश के सबसे संपन्न नगर निगम में से एक कोरबा निगम को फण्ड की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
आपको बता दें कि नगर निगम कोरबा प्रदेश के सबसे बड़े व धनी नगर निगमों में से एक है। जनता से अर्जित विभिन्न प्रकार के टैक्स के अलावा यहाँ खनिज संपदा से मिलने वाली रॉयल्टी राशि का कुछ भाग भी निगम के हिस्से आता है। परंतु हर वर्ष करोड़ों रुपए खर्च करने के पश्चात भी कोरबा की जनता मौलिक व सामान्य प्रशासनिक व्यवस्थाओं तथा सुविधाओं से वंचित है और उनके हिस्से केवल धूल, प्रदूषण और उखड़ी हुई सड़कें ही आती है। अब इसे दिया तले अंधेरा ना कहें तो क्या कहें।