8 माह से नहीं मिली मजदूरी, कलेक्टर जनचौपाल में ग्रामीणों ने बताई पीड़ा
कोरबा 21 सितम्बर। वन विभाग में काम करने के बाद अनेक मजदूर अपना मेहनताना पाने के लिए चप्पलें घिसते हैं। दूसरी तरफ फर्जी मजदूरों के नाम से असली भुगतान बड़ी आसानी से हो जाता है। वन विभाग के उदासीन रवैए से परेशान और आर्थिक तंगी से जूझ रहे मजदूरों ने कलेक्टर के समक्ष पहुंचकर अपनी व्यथा व्यक्त की है।
काम करने के 8 माह बाद भी मजदूरी नहीं मिलने के कारण आर्थिक रूप से परेशान मजदूरों ने कलेक्टर संजीव झा के समक्ष मंगलवार को जनचौपाल में पीड़ा बताई। कोरबा तहसील जे अंतर्गत ग्राम भटगांव के कुछ ग्रामीणों ने वन विभाग की नर्सरी में काम करने के उपरांत परिश्रमिक भुगतान नहीं किये जाने की शिकायत की। 7.8 माह से पारिश्रमिक नही मिलने से श्रमिक परिवार को होने वाले आर्थिक परेशानियों से अवगत कराया। कलेक्टर ने कोरबा वनमण्डलाधिकारी को श्रमिकों के पारिश्रमिक भुगतान के लिए उचित कार्यवाही करने के निर्देश दिये।
जिले के कोरबा ही नहीं बल्कि कटघोरा वन मंडल में भी काम के बाद मजदूरों के भटकने की शिकायत आम रही है। कभी फंड का रोना तो कभी कुछ और कारण बताकर मजदूरों को चक्कर कटवाया जाता रहा है। कुछ मामले तो ऐसे रहे कि मजदूरी निकल गई और मजदूर को पता ही नहीं चला कि उसके नाम से कौन पैसा डकार गया। इसके विपरीत फर्जी मजदूरों को रिकॉर्ड में मजदूर दर्शा कर उनके नाम की मजदूरी उनके खाते में ट्रांसफर करवा कर उन्हें कुछ रुपए देने के बाद शेष रकम हड़प लेने के कई मामले सामने आ चुके हैं। ज्यादातर गड़बडिय़ां जंगल में तालाब निर्माण के मामले में हुई है। जेसीबी से तालाब खोद कर खुदाई के एवज में मजदूर लगाना बता कर फर्जीवाड़ा बड़े पैमाने पर किया गया है।
कटघोरा वन मंडल में तो करतला तहसील के ग्राम सरगबुंदिया से पसान क्षेत्र के ग्राम कुटेश्वरनगोई जाकर फर्जी मजदूरी करने का 13 लाख का घोटाला उजागर हुआ। इस मामले में शिकायत भी हुई, रामपुर विधायक ननकीराम कंवर ने विधानसभा में सवाल भी उठाया लेकिन वन विभाग के स्थानीय अधिकारियों को इस मामले में की गई कार्यवाही बताने की फुर्सत नहीं। हॉस्टल और कॉलेज के बच्चों के नाम मजदूरों की सूची में दर्ज कर घोटाला किया गया है। अपने घर में नौकर-चाकर रखने वाले कुछ सम्पन्न लोगों के नाम भी मजदूरों के रूप में दर्ज करने की सूचनाएं हैं।
कटघोरा वनमंडल में लेंटाना उन्मूलन के नाम पर करोड़ों का घोटाला हुआ। स्टॉप डेम निर्माण में बड़ी गड़बडिय़ां हुई हैं। पुटुवा स्टॉप डेम आज भी कार्यवाही की राह ताक रहा है। छत्तीसगढ़ विधानसभा के सदन में तत्कालीन डीएफओ द्वारा स्टॉप डेम की दी गई झूठी जानकारी पर भी कार्यवाही लंबित है। जब विधानसभा में गलत जानकारी दी जा सकती है तो भला जिला स्तर पर होने वाले कारनामों की क्या बिसात! यहां तो अधिकारियों की कमी बनी हुई है। जो हैं,तो वे अपना विभागीय काम निपटाएं या शिकायतों की जांच करें। शिकायतों की फेहरिस्त लंबी है और इसके साथ-साथ घोटाले की परतें भी काफी गहरी हैं। पूर्व डीएफओ शमा फारुखी के घोटालों की गूंज अभी भी है तो नई डीएफओ भी जांच में कुछ खास नहीं कर पा रही हैं। एक ही थैली के चट्टे-बट्टे की तर्ज पर डिप्टी रेंजर,रेंजर डीएफओ, एसडीओ मिलकर जंगल मे मोर नचा रहे हैं। इनके रवैए से न सिर्फ मजदूर बल्कि ठेकेदार भी परेशान हैं।