समाज विज्ञान परिषद के तत्वाधान में राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी आयोजित
कोरबा 31 जुलाई। मनुष्य का व्यवहार ही है जो कि मनुष्य को आगे बढऩे और जीवन को सफल बनाने के लिए प्रमुख आधार रूप में है। मनुष्य के व्यवहार पर अध्ययन के द्वारा ही विभिन्न सामाजिक विज्ञान एक स्वतंत्र शैक्षणिक इकाई के रूप में आज स्थापित है। मानव ब्यवहार से संस्थापित सामाजिक विज्ञान के अध्ययन में आज विश्व में वैज्ञानिक पद्धति के अनेक चरणों के द्वारा निष्कर्ष प्राप्त किया जा रहा है।
आधुनिक पाश्चात्य पद्धति से सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में शोध निरंतर हो रहा है और विकास को गति देने का प्रयास किया जा रहा है। किंतु इस संदर्भ में देखें तो भारतीय शोध पद्धति परंपरागत और आधुनिक दोनों प्रकार के शोध पद्धतियों के बीच का रास्ता अपनाकर समाजिक विज्ञान से संबंधित प्रत्येक शोध कार्य को पूर्णता प्रदान कर रहा है। यद्यपि शोध की अधिक प्रमाणिकता वस्तुनिष्ठ अध्ययन में होता है, किंतु इस अध्ययन के उपरांत प्राप्त परिणाम से भी समाज का संपूर्ण हित संभव नहीं हो पाता। अत: भारतीय शोध पद्धति में एक विशिष्टता यह है कि वह वस्तुनिष्ठ अध्ययन करने के साथ ही साथ प्राप्त परिणाम को मानवीय मूल्य से जोड़कर मानव कल्याण और जनहित में लागू करने का प्रयास करता है। सामाजिक विज्ञान की भारतीय शोध पद्धति पर चिंतन करने से यह स्पष्ट है कि प्राचीन समय में ऋषि-मुनियों एवं विद्वानों के द्वारा दिया गया सामाजिक चिंतन शोध पद्धति के रूप में नहीं अपितु सामाजिक समस्याओं एवं प्रमुख घटनाओं के संबंध में निराकरण एवं सुझाव प्रस्तुत करने का एक अनुभवात्मक व प्रयोगात्मक ज्ञान चिंतनधारा है। निसंदेह आज हमें सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में भारतीय विशिष्ट शोध पद्धति को अपनाना होगा ताकि प्रत्येक शोध का मानव समाज को और सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र को जनोपयोगी तथा विकासोन्मुख बनाने में सहायता मिल सके।
उक्त विचार प्रोफेसर प्यारेलाल आदिले अंतर्राष्ट्रीय अवॉर्डी प्राध्यापक प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री प्राचार्य जे बी डी कला एवं विज्ञान महाविद्यालय कटघोरा ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजाति विश्वविद्यालय अमरकंटक एवं राष्ट्रीय समाज विज्ञान परिषद के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में प्रस्तुत किया। समाज विज्ञान की भारतीय शोध पद्धति पर आयोजित इस संगोष्ठी में डॉ आदिले ने समापन समारोह के अवसर पर संगोष्ठी का फीडबैक प्रस्तुत करते हुए कहा कि.जब तक शोध में बोध ना हो, प्रबोध ना हो और भविष्यवाणी करने का योग ना हो तो कोई भी सामाजिक शोध कार्य समाज के लिए उपयोगी नहीं हो सकता। इसलिए हम सभी को वस्तुनिष्ठ अध्ययन करते समय वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग तो करना ही चाहिए किंतु प्राप्त परिणामों को मानवीय मूल्य तथा नैतिक मूल्य को ध्यान में रखते हुए लागू करना चाहिए। इस संगोष्ठी के समापन समारोह में अटल बिहारी वाजपेई विश्वविद्यालय बिलासपुर के कुलपति आचार्य एडीएन बाजपेई मुख्य अतिथि थे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर प्रकाशमणि त्रिपाठी कुलपति इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजाति विश्वविद्यालय अमरकंटक ने किया। इस कार्यक्रम में प्रोण्कृष्ण भट्ट प्रोण्राजकुमार भाटिया दिल्लीविश्वविद्यालय,केरला विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. जया प्रसाद,पूर्व कुलपति प्रो जी सीआर जायसवाल,राष्ट्रीय समाज विज्ञान परिषद के प्रो.वैदेही,प्रो.शीला राय महासचिव उपस्थित थे। कार्यक्रम का सफल संचालन प्रो.अनिल कुमार ने किया। प्रो.अनुपम शर्मा संगोष्ठी संयोजक ने अतिथियों के प्रति स्वागत भाषण और कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत किया। शासकीय ई.व्ही.पी.जी.कॉलेज कोरबा के विद्वान प्राध्यापक डॉ.संजय कुमार यादव एवं शासकीय महाविद्यालय जटगा के सहायक प्राध्यापक फिरत राम ने भी अपना शोध पत्र वाचन करते हुए सहभागिता दर्ज कराया।