कोरबा के जिला अस्पताल में नवजात की मौत: स्वजन का आरोप-बिजली सप्लाई रुकने से गई जान
कोरबा 29 जुलाई। जिला मेडिकल कालेज अस्पताल की अव्यवस्था एक बार फिर रुला गई। यहां एसएनसीयू में भर्ती एक नवजात शिशु ने आक्सीजन के अभाव में दम तोड़ दिया। दरअसल उसे वेंटिलेटर में रखा गया था। इस बीच शार्ट सर्किट के कारण रात को बिजली बंद हो गई। स्वजन का आरोप है कि बिजली सप्लाई रुकने पर वेंटिलेटर ने काम करना बंद कर दिया और शिशु को जान चली गई।
जिला अस्पताल में मेडिकल कालेज के अधीनस्थ संचालित एसएनसीयू विशेष नवजात शिशु देखभाल इकाई में बुधवार की देर रात उस समय हड़कंप मच गया जब शार्ट सर्किट के कारण अंधेरा छा गया। नवजात बच्चों के इलाज की इस संवेदनशील इकाई को आपातकालीन बिजली व्यवस्था से नहीं जोड़ा गया है। इसकी वजह से इकाई की भी बिजली बंद हो गई। उस वक्त 17 बच्चे भर्ती थे। इनमें दीपका निवासी अमित कुमार का नवजात शिशु भी शामिल था। गंभीर रूप से अस्वस्थ होने के कारण उसे वेंटिलेटर में रखा गया था। शार्ट सर्किट की घटना के बाद आनन फानन में अस्पताल कर्मी बच्चों को दूसरे कक्ष ले गए। तब तक अमित कुमार के बच्चे की मौत चुकी थी। उसका कहना है कि उसके बच्चे की मौत आक्सीजन की कमी की वजह से हुई है। बिजली बंद होने के साथ ही वेंटिलेटर भी बंद हो गया और बच्चे की सांस उखड़ गई।
इस घटना के बाद अन्य बच्चों के अभिभावकों के हाथ पांव फूल गए। चार बच्चों को उनके अभिभाकों ने गंभीर स्थिति को देखते हुए निजी अस्पताल में भर्ती कराना उचित समझा। अमित ने बिलखते हुए कहा कि मुझे तो बच्चे को निजी अस्पताल ले जाने का भी समय नहीं मिला। करीब दो घंटे बाद बिजली व्यवस्था बहाल हुई। गुरुवार को अस्पताल के एसएनसीयू में 12 बच्चे भर्ती रहे। गंभीर बात यह है कि संस्थागत प्रसव कराने के लिए जिला अस्पताल में प्रतिदिन 10 से 12 गर्भवती महिलाएं आती हैं। आपातकालीन सेवा वार्ड में सबसे अधिक प्रसव कराने का काम होता है। कमजोर नवजात बच्चों को मौसमी बीमारी से बचाने के लिए एसएनसीयू में दाखिल किया जाता है। आपात बिजली व्यवस्था से अस्पाल के अन्य इकाई भी वंचित है। ऐसे में इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति की संभावना बनी है
मेडिकल कालेज के डीन डा.अविनाश मेश्राम का कहना है कि आक्सीजन या वेंटिलेटर बंद होने से बच्चे की मौत नहीं हई। उसकी स्थिति पहले से ही गंभीर बनी हुई थी। यह महज संयोग है कि बिजल बंद हुई और इसी दौरान बच्चे की मौत हो गई। स्वजन ने जो लापरवाही का आरोप लगाया है वह आधारहीन है। उन्होंने बताया कि वेंटिलेटर बंद होने के बाद भी करीब दो घंटे बेकअप रहता है। इसलिए बिजली बंद होने से मौत होने की बात गलत है। सवाल यह उठता कि यदि बच्चे की स्थिति गंभीर थी तो उसे समय रहते बिलासपुर सिम्स स्थित चाइल्ड केयर यूनिट में क्यों रेफर नहीं किया गया। स्वजन का कहना कि चिकित्सकों ने उपचार के दौरान यह जानकारी भी नहीं दी थी कि बच्चे की स्थिति गंभीर है। यदि इसकी जानकारी दी जाती तो वे गहन उपचार के लिए निजी अस्पताल ले जाने पर विचार करते। बहरहाल इस घटना ने सरकारी अस्पताल में पसरी अव्यवस्था की पोल खोल दी है।