मिर्ची @ गेंदलाल शुक्ल
क्या नगर निगम में भी झाडू लगायेंगे आयुक्त?
नगर पालिक निगम कोरबा इन दिनों स्वच्छता अभियान चला रहा है। मकसद है-देश और प्रदेश में स्वच्छता रैंकिंग में अव्वल आना। अभियान को सफल बनाने के लिए नव- पदस्थ निगम आयुक्त प्रभाकर पाण्डेय गली-गली घूम रहे हैं। यहीं नहीं, स्वच्छता दूतों और निगम अमले को जागरूक करने के लिए पिछले दिनों स्वयं भी सड़क पर झाडू लगाते नजर आये। निगम आयुक्त के इस जज्बे को सलाम। लेकिन यहीं एक और प्रश्न उठ खड़ा होता है। वह यह कि क्या निगम आयुक्त साकेत में व्याप्त अव्यवस्था, भ्रष्टाचार, पक्षपात, कामकाज में लेट-लतीफी पर भी झाडू लगायेंगे? आयुक्त को मालूम हो कि नगर निगम के अमले के क्रिया-कलापों से हर वह व्यक्ति पीडित- प्रताड़ित और व्यथित है, जिसका नगर निगम में कोई भी काम होता है।
रिपोर्ट में 10 साल तो कार्रवाई में?
सृष्टि मेडिकल इंस्टीट्यूट कोरबा में, कम खर्च में पथरी का आपरेशन कराने गये तुलसी नगर के संतोष गुप्ता की किडनी निकाल दी गयी। अस्पताल के जिस डॉक्टर ने आपरेशन किया, पता चल रहा है उसकी डिग्री ही फर्जी है। जिला पुलिस ने दस साल पहले की इस घटना को लेकर एफ. आई. आर. दर्ज की है। संतोष गुप्ता की मानें तो दस साल पहले उसने मामले की शिकायत तत्कालीन कलेक्टर से की थी। कलेक्टर ने सी. एम. एच. ओ. को जांच कर कार्रवाई का निर्देश दिया था। तब डॉ. पी आर कुम्भकार सी. एम. एच. ओ. थे। दस साल से मामला दबा हुआ था। अब संतोष गुप्ता ने फिर शिकायत की है। कलेक्टर रानू साहू ने मामला पुलिस को सौंप दिया है। उम्मीद की जा रही है, कि मामले में पुलिस विभाग तेजी से कार्रवाई करेगा? लेकिन जिले में अब तक की प्रशासनिक कार्य-प्रणाली इस उम्मीद पर संशम पैदा करता है। लोग तो पूछेंगे ही कि- शिकायत की सुनवाई में दस साल लग गये, तो कार्रवाई में कितने वर्ष लगेंगे?
अवैध नर्सिंग होम, जिम्मेदार कौन?
राष्ट्रपति की दत्तक पुत्री सोनी कोरवा की मौत ने कोरबा जिले में प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की पोल खोलकर रख दी। जिस अस्पताल में उपचार में लापरवाही के चलते सोनी की मौत हुई, उसका पंजीयन ही नहीं था। कलेक्टर रानू साहू ने अस्पताल को सील करा दिया है। इससे कुछ ही दिन पहले इसी गीतादेवी मेमोरियल अस्पताल में आयुष्मान कार्ड हेरा-फेरी का मामला सामने आया था। तब इस पर कोई ढाई लाख रूपये का जुर्माना और तीन माह तक आयुष्मान से उपचार पर रोक लगाई गयी थी। आश्चर्य की बात है कि इस घपले पर कार्रवाई के दौरान प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग को अस्पताल का पंजीयन नहीं होने की जानकारी कैसे नहीं हुई? कलेक्टर ने अस्पताल को तो सील कर दिया है, लेकिन क्या वे यह जिम्मेदारी भी तय करेंगी कि अवैध रूप से अस्पताल के संचालन के लिए कौन-कौन जिम्मेदार हैं? क्या उन अफसरों पर भी कार्रवाई करेंगी, जिनकी कर्तव्यहीनता अथवा सांठ-गांठ से बिना लायसेंस गीतादेवी मेमोरियल अस्पताल का संचालन हो रहा था?
बेजा-कब्जा कराओ- बेजाकब्जा हटाओ
कोरबा में एक पार्षद बेजा-कब्जा हटाने की मांग को लेकर अनशन करने जा रहा हैं। यह निगम बनने के बाद 24 वर्षों में पहला मामला है, जब कोई पार्षद बेजा-कब्जा हटाने की मांग कर रहा है। जबकि दूसरी ओर आमतौर पर पार्षद बेजा कब्जा कराने, अवैध निर्माण कराने और अपनी जेब गर्म करने के
लिए चर्चा में रहते हैं। अभी भी अनेक वार्ड ऐसे हैं जहां बड़ी तादाद में बेजा कब्जा हो रहे हैं। न तो राजस्व विभाग इन पर लगाम लगाता और न ही नगर निगम। हर वार्ड में खुलेआम, डंके की चोट पर बेजा-कब्जा और अवैध निर्माण हो रहे हैं। कई पार्षदों की लाटरी लग गयी है। ऐसे में किसी पार्षद का
बेजा-कब्जा हटाने के लिए अनशन पर बैठने की घोषणा किसी अजूबा से कम नहीं हैं। पार्षद की मांग पर एक बार कब्जा हटाया भी गया। लेकिन निगम अमला के पीठ फेरते ही फिर कब्जा होने लगा। अब पार्षद की शिकायत को ही अनसुना किया जाने लगा है। ऐसे में पार्षद अनशन भी करते हैं, तो क्या कोई ठोस कार्रवाई हो पायेगी?
मिर्ची @ गेंदलाल शुक्ल, सम्पर्क- 098271 96048