कोरबा DMF में का बा ?? भ्रष्टाचार के लिए चर्चित जिला खनिज न्यास में सूचना का अधिकार अधिनियम की उड़ रही धज्जियां
➡️ भाजपा आर. टी. आई. प्रकोष्ठ जाएगा न्यायालय
कोरबा 4 फरवरी। प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी नहीं देना कोई नई बात नहीं है। प्रशासन के छोटे-मोटे अधिकारियों पर तो ऐसे आरोप आए दिनों लगते ही रहते हैं परंतु मामला तब गंभीर हो जाता है जब जिला प्रशासन के शीर्ष अधिकारियों पर ही अधिनियम के उल्लंघन का आरोप लग जाए। ऐसा ही एक मामला कोरबा जिले में सामने आया है, जिसने जिला प्रशासन की मुखिया कोरबा कलेक्टर, अपर कलेक्टर और एक डिप्टी कलेक्टर, तीनों को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
मामला कोरबा जिले के प्रख्यात जिला खनिज न्यास अर्थात डी.एम.एफ. विभाग से जुड़ा हुआ है। उक्त विभाग ने कोरोना संक्रमण काल से ही सुर्खियां बटोरना शुरू कर दिया था। जिला प्रशासन द्वारा कोरोना संक्रमण की रोकथाम व मरीजों के उपचार के लिए दवा से लेकर उपकरणों की खरीदी में धड़ल्ले से इस मद का प्रयोग किया गया। इन खरीदियों में भ्रष्टाचार व अनियमितताओं के गंभीर आरोप भी लगे जिसकी खबरें जिले के समाचार पत्रों में प्रमुखता से प्रकाशित भी हुई। इसी दौरान तत्कालीन कलेक्टर किरण कौशल का तबादला हो गया और जिले की कमान आई.ए.एस. रानू साहू को सौंप दी गई। कलेक्टर रानू साहू ने पदभार ग्रहण करते ही डीएमएफ मद के कुछ कार्यों को निरस्त कर दिया जिससे विभाग में भ्रष्टाचार की बातों का बाजार और गर्म हो गया। वर्तमान में भी विभाग के कार्यों में जिस प्रकार की गोपनीयता जिला प्रशासन के द्वारा बरती जा रही है उससे भी कई सवाल उत्पन्न हो रहे हैं।
इसी तारतम्य में भाजपा आरटीआई प्रकोष्ठ के प्रदेश कार्य समिति सदस्य नवनीत राहुल शुक्ला के द्वारा कोरोना काल में डीएमएफ मद से जारी की गई राशि तथा स्वीकृत किए गए कार्यों से संबंधित तीन आरटीआई आवेदन लगाए गए थे। इन तीन आवेदनों में से एक में डीएमएफ के जनसूचना अधिकारी डिप्टी कलेक्टर भरोसाराम ठाकुर के द्वारा जानकारी देने से स्पष्ट इंकार कर दिया गया तो अन्य 2 आवेदनों में जानकारी प्रदान करने हेतु ₹1122 व ₹604 शुल्क निर्धारित कर दिया गया। आवेदनकर्ता के शुल्क जमा करने के बाद से ही जनसूचना अधिकारी भरोसाराम ठाकुर जानकारी देने से कन्नी काटने लगे। आवेदनकर्ता द्वारा जानकारी मिलने में हो रही देरी का कारण पूछने पर भरोसाराम ठाकुर के द्वारा जानकारी की फाइल तैयार कर कोरबा कलेक्टर के पास अप्रूवल के लिए भेजे जाने की बात कही जाने लगी तथा आवेदनकर्ता को खुद ही कलेक्टर से मिलकर इस विषय में चर्चा कर लेने के लिए कह दिया गया।
शुल्क जमा करने के 2 माह पश्चात भी जब जानकारी प्रदान नहीं की गई तब आवेदनकर्ता के द्वारा अपर कलेक्टर कोरबा सुनील नायक के समक्ष तीनों आवेदनों के संबंध में प्रथम अपील दायर की गई। परंतु प्रथम अपीलीय अधिकारी तथा अपर कलेक्टर सुनील नायक के द्वारा भी सूचना के अधिकार अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए आवेदनकर्ता को सुनवाई का मौका ही नहीं दिया गया, अपितु जनसूचना अधिकारी भरोसाराम ठाकुर से पत्राचार कर प्रशासन के पक्ष में ही मामले का निराकरण कर दिया गया। इस पर आपत्ति करने पर अपर कलेक्टर सुनील नायक के द्वारा अपने निर्णय पर पुनर्विचार को सिरे से खारिज कर दिया गया व आवेदनकर्ता को आगे किसी भी प्रकार की कार्यवाही करने के लिए स्वतंत्र होने की नसीहत दे दी गई।
आवेदनकर्ता नवनीत राहुल शुक्ला ने बताया कि प्रथम अपील में अपीलार्थी को अपना पक्ष रखने का अवसर नही देना पूरी प्रक्रिया की सार्थकता और औचित्य को ही समाप्त कर देता है। इसके अतिरिक्त उन्होंने जन सूचना अधिकारी भरोसाराम ठाकुर के प्रथम अपीलीय अधिकारी को लिखे गए जवाब पत्र पर भी सवाल उठाए। अपने जवाब पत्र के बिंदु क्रमांक 2 में जन सूचना अधिकारी भरोसाराम ठाकुर के द्वारा यह कहा गया है की “आवेदन के पुनः परीक्षण में पाया गया कि वांछित जानकारी एक से अधिक विषयवस्तु से संबंधित है। चाही गई सूचना स्पष्ट होने पर जानकारी प्रदान की जावेगी”। जबकि जनसूचना अधिकारी द्वारा अपने ही आदेश में शुल्क निर्धारित करते हुए स्वयं यह कहा गया था कि आवेदन में मांगी हुई जानकारी एक से अधिक विषय वस्तु से संबंधित है तथा आरटीआई अधिनियम के अनुसार केवल प्रथम विषयवस्तु से संबंधित जानकारी प्रदान की जा रही है। इससे स्पष्ट है की जन सूचना अधिकारी भरोसाराम ठाकुर का प्रथम अपीलीय अधिकारी को प्रस्तुत जवाब पत्र का बिंदु क्रमांक 2 पूर्णतः असत्य है। यह अपने आप में एक अनोखा प्रकरण है जहाँ जन सूचना अधिकारी को शुल्क निर्धारण करते समय आवेदक को प्रदान की जाने वाली जानकारी स्पष्ट थी, परंतु वही जानकारी कुछ दिनों बाद अस्पष्ट हो गई।
कोरबा कलेक्टर की भूमिका भी संदेह के घेरे में
इसके अतिरिक्त आवेदनकर्ता ने इस प्रकरण में कोरबा कलेक्टर आई.ए.एस रानू साहू की भूमिका पर भी संदेह जताया। उन्होंने बताया कि जनसूचना अधिकारी डिप्टी कलेक्टर भरोसाराम ठाकुर के द्वारा बताए गए कथित अप्रूवल के संबंध में आवेदन कर्ता द्वारा दो से तीन मौकों पर कलेक्टर रानू साहू से मिलकर इस विषय पर चर्चा की गई। कलेक्टर रानू साहू द्वारा हमेशा ही आर टी आई का विषय सुनते ही फाइल को देख लेने का आश्वासन देते हुए बात को टाल दिया जाता था। इस दौरान एक बार भी कलेक्टर रानू साहू के द्वारा इस बात को नकारा नहीं गया की इस प्रकार की कोई फाइल उनके पास नहीं आई है। वहीं जन सूचना अधिकारी भरोसाराम ठाकुर का जानकारी तैयार कर कलेक्टर रानू साहू के पास अप्रूवल हेतु भेजने का व्यक्तव्य देना तथा दो माह पश्चात अपने ही आदेश को धत्ता दिखाते हुए आवेदन में चाही जानकारी को अस्पष्ट कह देना, यही संकेत देता है कि संबंधित अधिकारियों द्वारा प्रशासनिक षड्यंत्र के तहत ही सूचना के अधिकार अधिनियम को शिथिल करते हुए जानकारी प्रदान नहीं की जा रही है।
बहरहाल भारतीय जनता पार्टी सूचना का अधिकार प्रकोष्ठ के द्वारा इस मामले को गंभीरता से लिया जा रहा है। प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष श्री विजय शंकर मिश्र का आरोप है कि भ्रष्टाचार में डूबी प्रदेश की कांग्रेसी सरकार के संरक्षण में प्रशासनिक अधिकारी इतने अहंकारी हो चुके हैं कि वह भारतीय संविधान को ही ताक पर रखकर कार्य कर रहे हैं। भाजपा आरटीआई प्रकोष्ठ के प्रदेश विधिक सलाहकार तथा छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के अधिवक्ता श्री ओम पी. साहू ने बताया कि इस प्रकरण में डिप्टी कलेक्टर, अपर कलेक्टर तथा कोरबा कलेक्टर का व्यवहार सिविल सेवा आचरण के बिल्कुल विरुद्ध है तथा भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने की मंशा से किया जा रहा है। इन तीनों अधिकारियों के खिलाफ सिविल सेवा नियम विरुद्ध आचरण पर भारतीय दण्ड विधान के धाराओ के तहत कार्यवाही हेतु पुलिस और माननीय न्यायालय के समक्ष जांच व न्याय हेतु प्रकरण प्रस्तुत किया जावेगा, ताकि भविष्य में यह समस्त प्रशासनिक अधिकारियों के लिए एक उदाहरण साबित हो।