कही-सुनी @ रवि भोई
कही-सुनी (16-JAN-22)
रवि भोई
टारगेट में मंत्री प्रेमसाय सिंह
लगता है छत्तीसगढ़ के स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ प्रेमसाय सिंह टेकाम का विवादों से नाता जुड़ गया है। भूपेश सरकार में मंत्री बनते ही पत्नी को विशेष सहायक बनाने के मामले में अपनी किरकिरी कराने वाले डॉ प्रेमसाय ओएसडी और निज सहायक के मुद्दे पर भी घिरे। स्कूल शिक्षा विभाग में ट्रांसफर -पोस्टिंग में गड़बड़ी को लेकर विधायकों के निशाने पर आए मंत्री जी नई मुसीबत में फंसते दिख रहे हैं। इस बार स्कूल शिक्षा विभाग के एक उपसंचालक के नाम से थाने में एफआईआर दर्ज कराने और एक डायरी उजागर होने से मंत्री जी पर खतरे के बादल मंडराते दिख रहे हैं। राज्य की राजनीति में मंत्री टीएस सिंहदेव के समर्थक डॉ. प्रेमसाय ने पाक-साफ होने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से निष्पक्ष जांच की गुहार लगाईं है। मुख्यमंत्री को पत्र सौंपे जाने के करीब 48 घंटे बाद तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर मामले के पटाक्षेप की कोशिश तो की गई है, लेकिन मंत्री को क्यों टारगेट किया गया, यह बड़ा सवाल है। निशाने पर मंत्री जी के आने के कई मायने भी निकाले जा रहे हैं। शिक्षकों की पोस्टिंग में 366 करोड़ के भ्रष्टाचार की शिकायत में लोगों को राजनीति नजर आ रही है। कुछ लोग शिक्षा विभाग को दलदल मानते हैं और विभाग में माफिया के सक्रिय होने की बात भी कर रहे हैं। विभाग में ट्रांसफर -पोस्टिंग ही नहीं, फर्नीचर-ड्रेस और अन्य सामानों की खरीदी में बड़े खेल की बात कही जा रही है। इस कांड में मंत्री पर उंगुली उठने से फिलहाल राज्य की राजनीति गरमा गई है और भाजपा के हाथ एक मुद्दा लग गया है।
दीपांशु का कद बढ़ा
1997 बैच के आईपीएस अफसर दीपांशु काबरा के नाम अब छत्तीसगढ़ में दो रिकार्ड दर्ज हो गए। दीपांशु जनसंपर्क आयुक्त बनने वाले पहले आईपीएस अफसर हैं, अब परिवहन आयुक्त बनने वाले भी पहले आईपीएस बन गए हैं। छत्तीसगढ़ गठन के दो दशक बाद यह पहला मौका है जब आईएएस की जगह आईपीएस अफसर जनसंपर्क और परिवहन आयुक्त हैं। अब तक परिवहन में अपर आयुक्त आईपीएस रहे हैं। दीपांशु भी अब तक अपर आयुक्त थे , लेकिन उनसे जूनियर आईएएस कमिश्नर रहे। दीपांशु का कद बढ़ने से यह विसंगति तो खत्म हुई, साथ में जनसंपर्क आयुक्त के तौर पर दीपांशु के काम का सम्मान भी हो गया। कहते हैं दीपांशु ने छत्तीसगढ़ के साथ दिल्ली से लेकर लखनऊ तक मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का मीडिया मैनेजमेंट को ठीक कर दिया। कामकाजी व्यक्ति हर किसी को पसंद होता है और काम करने वाले के सिर पर ही सेहरा बांधा जाता है।
अब कमिश्नरी हुई फुल
2008 बैच के आईएएस महादेव कावरे को दुर्ग और श्याम धावड़े को बस्तर कमिश्नर बनाए जाने से राज्य के पांचों संभाग भर गए। श्याम धावड़े को कोरिया जैसे छोटे जिले से बस्तर जैसा बड़ा संभाग मिल गया। इससे साफ है कि सरकार ने धावड़े के काम को सराहा है। कावरे को भी कमिश्नरी के बहाने फिर फील्ड मिल गया। बिलासपुर में डॉ. संजय अलंग, रायपुर में ए के टोप्पो और सरगुजा में गोविंदराम चुरेन्द्र कमिश्नर हैं। 2003 बैच के चुरेन्द्र के प्रमोशन मामला भले अभी अटका है, लेकिन वे कमिश्नरी में ऊंची छलांग लगा रहे हैं। वे रायपुर, दुर्ग,बस्तर के बाद सरगुजा की पारी खेल रहे हैं। मजेदार बात है कि सभी कमिश्नर प्रमोटी आईएएस हैं। अब देखना है कि ये सीधी भर्ती वाले आईएएस पर किस तरह लगाम कस पाते हैं।
2012 के प्रमोटी आईएएस कलेक्टरी के इंतजार में
छत्तीसगढ़ में 2012 के प्रमोटी आईएएस में तारण प्रकाश सिन्हा को छोड़कर दूसरे कलेक्टर बनने की कतार में हैं। उम्मीद थी कि इस फेरबदल में किसी प्रमोटी आईएएस को कलेक्टरी का मौका मिल जाएगा, लेकिन 2014 बैच के सीधी भर्ती वाले आईएएस बाजी मार गए। पदोन्नत आईएएस श्याम धावड़े, सुनील कुमार जैन और धर्मेश साहू की जगह किसी प्रमोटी को मौका नहीं मिल पाया। 2009 के कुछ प्रमोटी अफसरों को भी अभी तक जिला नहीं मिल पाया है , लेकिन इस बैच के प्रमोटी अफसर डोमनसिंह ने आधे दर्जन जिले की कलेक्टरी का रिकार्ड अपने नाम कर लिया है। कुछ अफसर इसका राज भी तलाश रहे हैं। वैसे सीधी भर्ती वाले 2013 बैच के आईएएस डॉ. जगदीश सोनकर को अब तक कलेक्टरी का मौका नहीं मिल पाया है।
स्वामी प्रसाद मौर्य का छत्तीसगढ़ कनेक्शन
उत्तरप्रदेश के पूर्व मंत्री स्वामीप्रसाद मौर्य के भाजपा से समाजवादी पार्टी में जाने से छत्तीसगढ़ के कुछ भाजपा नेताओं के भी कान खड़े हो गए हैं । मौर्य छत्तीसगढ़ के बसपा प्रभारी रहते 2013 के विधानसभा चुनाव के वक्त करीब ढाई महीने रायपुर में कचहरी चौक के पास के एक होटल में ठहरे थे। कहते हैं तब बसपा से ज्यादा भाजपा के नेताओं ने उनका सेवा-सत्कार किया था। कहा जाता है तब से मौर्य का भाजपा के प्रति मोह जगा। 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सतनाम सेना के जरिये कांग्रेस और बसपा दोनों को डेंट मारकर बाजी अपने पक्ष में की थी। ढाई महीने में मौर्य ने छत्तीसगढ़ में अच्छा कनेक्शन बना लिया था। अब भाजपा के लोगों को डर सत्ता रहा है कि कहीं मौर्य अपने कनेक्शन का इस्तेमाल सपा के लिए न कर लें और भाजपा को डेंट न दे दें।
मजबूत हुए आरिफ
निलंबित एडीजी जीपी सिंह की गिरफ्तारी से ईओडब्ल्यू के प्रमुख आरिफ शेख मजबूत हो गए। 2005 बैच के आईपीएस आरिफ ने अपने सीनियर रहे अफसर पर कार्रवाई करने से कदम पीछे नहीं खींचा और न ही कोई कोर-कसर छोड़ा। अब जीपी सिंह से ईओडब्ल्यू क्या -क्या उगलवा सकती है या दस्तावेज जब्त कर सकती है, यह अलग बात है। जीपी सिंह को कोर्ट से गिरफ्तारी से राहत न मिल पाना भी ईओडब्ल्यू के लिए बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। करीब दो साल पहले तक जीपी सिंह खुद ईओडब्ल्यू और एसीबी के चीफ थे। ऐसे में उन पर शिकंजा कसना आसान नहीं था। एडीजी मुकेश गुप्ता पर भी ईओडब्ल्यू और एसीबी ने जाल डाला था , लेकिन कोर्ट के सहारे वे बच निकले। राज्य के प्रमुख सचिव रहे अमन सिंह को भी कोर्ट ने पाक-साफ़ कर दिया।
आईएएस में उलटफेर की हवा नहीं लगी
इस बार सरकार ने आईएएस अफसरों की पोस्टिंग की लिस्ट बड़े गोपनीय ढंग से निकाली। कहा जा रहा है कि लिस्ट निकलने के बाद ही कई प्रभावित लोगों को जानकारी मिली। 13 जनवरी को जारी लिस्ट कई मायनों में चौकाने वाली रही। जिन अफसरों को बदलने की चर्चा तक नहीं थी , वे बदल गए। इसी तरह जिन जिलों के कलेक्टरों को बदले जाने की बात हो रही थी , वे प्रभावित नहीं हुए , उल्ट छोटे जिले ज्यादा प्रभावित हुए। कई अफसरों की पोस्टिंग तो तीन महीने में ही बदल दी गई। कहते हैं 3 -4 महिला आईएएस कलेक्टर बंनने में लगी थी , लेकिन उनका नंबर लग नहीं पाया। जूनियर महिला आईएएस बाजी मार गईं।
आईएफएस अनिल साहू की छलांग
1990 बैच के आईएफएस अनिल कुमार साहू एक फिर वन विभाग से बाहर निकल आए हैं। अबकी बार उन्हें छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल का प्रबंध संचालक बनाया गया है। 3 -4 तीन महीने पहले सामान्य प्रशासन विभाग ने बीज विकास निगम के एमडी के पद से हटाकर उनकी सेवाएं वन विभाग को सौंप दी थी। वे संचालक संस्कृति भी रह चुके हैं। इसके कई और विभागों में भी प्रतिनियुक्ति पर रह चुके हैं। पहले भी भारतीय वन सेवा के अधिकारी छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल के एमडी रह चुके हैं , लेकिन पिछले कुछ सालों से जिस तरह पर्यटन मंडल के एमडी बदल रहे हैं, उसको देखते हुए कयास लगाया जा रहा है कि अनिल साहू का कार्यकाल कितना होगा ? भूपेश सरकार में इफ़्फ़त आरा के बाद रानू साहू फिर यशवंत कुमार और अब अनिल साहू एमडी बने हैं।
(-लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)