SC/ST एक्ट तब तक नहीं लगेगा जब तक कोई ……हाईकोर्ट

बिलासपुर 1 सितम्बर. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के जस्टिस एन के चंद्रवंशी की एकल पीठ ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम का अपराध सिर्फ इस आधार पर दर्ज नहीं किया जा सकता कि पीड़ित पक्ष और जाति से संबंधित है. जब तक विवाद के दौरान जाति सूचक गालियां देने और अपमानित करने की पुष्टि न हो तब तक एक तो सिटी एक्ट की धाराएं जोड़कर प्रकरण दर्ज नहीं किया जा सकता. इस फैसले को अप्रूवल फॉर ऑर्डर माना गया है. हाईकोर्ट का यह अहम फैसला एट्रोसिटी एक्ट के प्रकरणों में नजीर के रूप में काम आएगा.

दरअसल राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ थाना क्षेत्र के ग्राम रूद्र गांव में मालिकराम गोड़ की निजी जमीन है, जो उन्होंने सामुदायिक भवन बनाने के लिए दान दे दी है. इस जमीन पर कब्जा हुआ मालिकाना हक को लेकर मोहल्ले के ही गौतर बाई गोड़ व परिवार से अब से विवाद चल रहा था इसे लेकर गांव में बैठक भी हुए थे बैठक में गौतर बाई व उसके परिवार से कोई नहीं पहुंचा. इस बीच घटना दिनांक 9 अक्टूबर 2020 को मालिकराम गोड़ अपनी जमीन पर सामुदायिक भवन बनाने के लिए मजदूरों को लेकर गए थे इस दौरान उनके बीच आपस में विवाद हो गया. तब गांव के ही हुकुमचंद साहू सहित सात अन्य ने बीच-बचाव कर विभाग को शांत कराया. इस दौरान गौतर बाई व परिवार के सदस्यों ने बीच-बचाव करने वालों के साथ ही मारपीट कर दी. फिर दोनों पक्षों में बवाल हो गया. इस पर गौतर बाई गोड़ ने हुकुमचंद सहित सात अन्य के खिलाफ जान से मारने की धमकी देते हुए मारपीट व बलवा का अपराध दर्ज कराया जांच के बाद पुलिस ने इस मामले में एट्रोसिटी एक्ट की धारा 3 (1-10) के तहत कार्रवाई करते हुए कोर्ट में चालान पेश कर दिया. राजनादगांव की विशेष कोर्ट ने एट्रोसिटी सहित बलवा व मारपीट के मामले में आरोप तय कर दिया. इस पर हुकुमचंद व अन्य ने हाईकोर्ट में अधिवक्ता के माध्यम से उन्हें पुनरीक्षण याचिका दायर कर दी. इसमें अपराधिक प्रकरण के साथ एट्रोसिटी एक्ट के तहत दर्ज मामले को भी चुनौती दी गई.. जस्टिस एनके चंद्रवंशी की एकल पीठ में इस मामले की सुनवाई हुई. हाई कोर्ट नए पुनरीक्षण को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए आरोपी पक्ष को एट्रोसिटी के आरोप से मुक्त करने का आदेश दिया है. इसके साथ ही मारपीट बलवा सहित अन्य मामलों में आरोप तय करने का आदेश दिया है.

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