मां लक्ष्मी ने क्यों चुना उल्लू को अपना वाहन? जानिए इसका रहस्य
शुक्रवार, सनातम धर्म में यह दिन धन की देवी मां लक्ष्मी को समर्पित माना जाता है. यह मान्यता है कि मां लक्ष्मी की पूजा करने वाले जातकों के जीवन में धन, धान्य और यश, वैभव हमेशा बना रहता है. शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी की पूजा करने से सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती हैं. कहते हैं कि मां लक्ष्मी की पूजा करने से पैसों की कमी कभी नहीं होती है. धर्मग्रंथों में धन समृद्धि की देवी लक्ष्मी को बताया गया है. इन्हें भगवान विष्णु की पत्नी और आदिशक्ति भी कहा जाता है. हिंदू धर्म में हर देवी-देवता की सवारी अलग-अलग है. मां लक्ष्मी की सवारी उल्लू मानी गई है. आइए पौराणिक कथा से जानें कि आखिर मां लक्ष्मी ने उल्लू को ही अपना वाहन क्यों बनाया
पौराणिक कथा:
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राणी जगत की संरचाना करने के बाद एक रोज सभी देवी-देवता धरती पर विचरण के लिए आए. जब पशु-पक्षियों ने उन्हें पृथ्वी पर घूमते हुए देखा तो उन्हें अच्छा नहीं लगा और वह सभी एकत्रित होकर उनके पास गए और बोले आपके द्वारा उत्पन्न होने पर हम धन्य हुए हैं. हम आपको धरती पर जहां चाहेंगे वहां ले चलेंगे. कृपया आप हमें वाहन के रूप में चुनें और हमें कृतार्थ करें.
देवी-देवताओं ने उनकी बात मानकर उन्हें अपने वाहन के रूप में चुनना आरंभ कर दिया. जब लक्ष्मीजी की बारी आई तब वह असमंजस में पड़ गई किस पशु-पक्षी को अपना वाहन चुनें. इस बीच पशु-पक्षियों में भी होड़ लग गई की वह लक्ष्मीजी के वाहन बनें. इधर लक्ष्मीजी सोच विचार कर ही रही थी तब तक पशु पक्षियों में लड़ाई होने लगी गई.
मां लक्ष्मीजी ने उन्हें चुप कराया और कहा कि प्रत्येक वर्ष कार्तिक अमावस्या के दिन मैं पृथ्वी पर विचरण करने आती हूं. उस दिन मैं आपमें से किसी एक को अपना वाहन बनाऊंगी. कार्तिक अमावस्या के रोज सभी पशु-पक्षी आंखें बिछाए लक्ष्मीजी की राह निहारने लगे.
रात्रि के समय जैसे ही लक्ष्मीजी धरती पर पधारी उल्लू ने अंधेरे में अपनी तेज नजरों से उन्हें देखा और तीव्र गति से उनके समीप पंहुच गया और उनसे प्रार्थना करने लगा की आप मुझे अपना वाहन स्वीकारें. लक्ष्मीजी ने चारों ओर देखा उन्हें कोई भी पशु या पक्षी वहां नजर नहीं आया. तो उन्होंने उल्लू को अपना वाहन स्वीकार कर लिया. तभी से उन्हें उलूक वाहिनी कहा जाता है.