जिले में रेमडिशिविर नामक वैक्सीन की हो रही कालाबाजारी

कोरबा 3 मई। कोविड.19 की समस्या से जूझ रहे मरीजों के मामले में ऑक्सीजन लेवल गिरने की दिक्कत पेश आ रही हैं। इसे लेकर कई स्तर पर उपचार दिया जा रहा है रेमडिशिविर नामक वैक्सीन को लेकर काफी हो हल्ला मचा हुआ है विभिन्न क्षेत्रों से आ रही शिकायत के बाद अब इस वैक्सीन की उपलब्धता और उपयोग के लिए प्रशासन ने व्यवस्था तय की है। इसके बावजूद कोरबा जिले में कालाबाजारी का दौर जारी है। खबर है कि मरीजों को लगाने के बजाय यह व्यक्ति पार किए जा रहे हैं और ब्लैक मार्केट में खपाए जा रहे हैं। इसके बदले प्रति वैक्सीन के लिए 14 से 20 हजार रुपए वसूल किया जा रहा है।

कई स्तर पर ऐसे दावे अब तक हो चुके हैं जिनमें कोविड.19 से संक्रमित मरीजों के उपचार के लिए इस वैक्सीन को बहुत ज्यादा कारगर नहीं माना गया है। इन सबके बावजूद बड़े हिस्से में रेमडिशिविर की मांग लगातार बढ़ रही है। अलग-अलग स्तर पर हो रहे प्रचार-प्रसार को इसका एक प्रमुख कारण माना जा रहा है। कोरबा जिले में भी स्थिति कुछ ऐसी ही है। ईएसआईसी सहित ऐसे सभी हॉस्पिटल जहां पर कोविड.19 के मरीज भर्ती हैं वहां ऑक्सीजन लेवल कम होने को लेकर इस वैक्सीन की मांग की जा रही है। शायद यही कारण है कि अब वैक्सीन के लिए ब्लैक मार्केटिंग करने वाला वर्ग मजबूत हो रहा है। खबर है कि इस काम में कई बिचौलिए शामिल हैं। उनके पास तक स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाले निचले कर्मियों के जरिए यह वैक्सीन पहुंच रहा है। जानकार सूत्रों ने हैरान कर देने वाली जानकारी में बताया कि केवल एक व्यक्ति के लिए 1 या दो हजार नहीं बल्कि 14 से लेकर 20 हजार रुपए तक वसूल किए जा रहे हैं। मरता क्या न करता इस तर्ज पर मरीजों के परिजन भी सांसो पर बने हुए खतरे को टालने के लिए मुंह मांगी कीमत देने के लिए मजबूर हैं। अब तक ऐसे प्रकरणों में बिचौलिए और उनके पास तक व्यक्ति को पहुंचाने वाले लोग मालामाल हो रहे हैं। सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि जिला प्रशासन ने रेमडिशिविर वैक्सीन की कालाबाजारी को रोकने के लिए ही निजी मेडिकल दुकानों को व्यवस्था से बाहर कर दिया है। छत्तीसगढ़ स्टेट मेडिसिन सप्लाई कार्पोरेशन के द्वारा मंगवाई जाने वाली खेप के आधार पर औषधि नियंत्रण विभाग के निर्देश के अनुक्रम में अस्पतालों को सीधे वैक्सीन की आपूर्ति कराई जा रही है। हर स्तर पर निगरानी करने के बावजूद अब भी अव्यवस्था का दौर बना हुआ है। इसके चक्कर में वास्तविक जरूरतमंदों को रेमडिशिविर वैक्सीन समय पर और उचित मूल्य पर उपलब्ध नहीं हो पा रही है जबकि मध्यस्थों को इसी बहाने जमकर कमाई करने का अवसर मिला हुआ है। जिनके लिए मौजूदा दौर की आपदा सबसे बड़ा वरदान साबित हो रही है।

कोरोना वायरस का डर ही इतना भयंकर है कि इसकी जद में आने वाले लोग बुरी तरह कांप रहे हैं। घर पर ठीक नहीं होने के कारण उन्हें अस्पताल का रास्ता अख्तियार करना पड़ रहा है। वहां से कब छुट्टी हो इसकी चिंता में ही मरीज परेशान हो रहे हैं। बताया जाता है कि डिप्रेशन की वजह से काफी मरीजों को ऑक्सीजन लेवल की समस्या से दो.चार होना पड़ रहा है। ऐसे में कब और किसने उन्हें रेमडिशिविर के कितने वैक्सीन लगाएं, मरीज इस बारे में अनजान रहते हैं। जानकारों का मानना है कि वहां से ही वैक्सीन बाहर आने के साथ बिचौलियों के हाथ में लग रही हैं और फिर इसके जरिए मुंह मांगी कीमत वसूलने का रास्ता साफ हो रहा है। लगभग एक पखवाड़े से इस तरह के मामले प्रकाश में आ रहे थे कि रेमडिशिविर वैक्सीन के नाम पर जमकर वसूली हो रही है और लोगों की जेब काटी जा रही है। ऐसे मामले प्रशासन की जानकारी में आए थे और उसके बाद प्रशासन सख्त हुआ था। व्यवस्थाओं को बदलने का काम इसी कड़ी में किया गया। निर्देश दिए गए थे कि उपलब्ध कराए जाने वाले वैक्सीन का उपयोग होने के बाद खाली सीसी जमा कराए जाएं और इसका रिकॉर्ड भी रखा जाए। इसके जरिए सत्यापित किया जा सकता था कि इतनी ही मात्रा में वैक्सीन का उपयोग किया गया है और पात्र लोगों को लाभान्वित किया गया। जिस तरह की शिकायतें फिलहाल मिल रही हैं उस पर ध्यान देने की जरूरत है।

खाद्य और औषधि प्रशासन विभाग के उपनियंत्रक भीष्मदेव सिंह ने बताया कि रेमडिशिविर वैक्सीन की सप्लाई सेंट्रलाइज कर दी गई है। डिस्ट्रीब्यूटर सीधे अस्पतालों को सप्लाई कर रहा है। उपयोग की गई वैक्सीन की खाली शीशी जमा करने के साथ रिकार्ड रखा जा रहा है। ऐसे में कालाबाजारी संभव नहीं है। फिर भी अगर किसी तरफ से लोगों को समस्या है तो वे मुझे या जिला नियंत्रण कक्ष में शिकायत कर सकते हैं।

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