मुस्लिम महिला को है अपने पति को एक- तरफा तलाक देने का अधिकार: केरल हाई-कोर्ट
नईदिल्ली 14 अप्रेल: मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में एक बड़ा फैसला सुनाते हुए केरल हाई कोर्ट ने कहा कि एक मुस्लिम महिला को अदालत के बाहर अपने पति को एकतरफा तलाक देने का अधिकार है, जिसे खुला तलाक कहा जाता है। हाईकोर्ट ने इसे कानूनी रूप से वैध माना है।
न्यायमूर्ति ए मुहम्मद मुस्तकीम और न्यायमूर्ति सीएस डायस की खंडपीठ ने मुस्लिम पुरुषों के लिए उपलब्ध तालक के अधिकार के लिए क़ुला की बराबरी की। इसके लिए 1972 के फ़ैसले (केसी मोयिन बनाम नफ़ीसा और अन्य) को गलत ठहराया, जिसमें मुस्लिम महिलाओं को ऐसे अधिकार से वंचित रखा गया।
1972 के फैसले में एक एकल पीठ ने कहा था कि एक मुस्लिम महिला अपने पति को अदालत से बाहर तलाक नहीं दे सकती है। मुस्लिम पुरुषों को इस माध्यम से तलाक देने की अनुमति है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि महिलाओं को मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम 1939 (डीएमएमए) के तहत कोर्ट का रास्ता अपनाना आवश्यक है।
बता दे कि अपील की एक बैच पर विचार करने के बाद, डिवीजन बेंच ने कहा कि डीएमएमए केवल फास्ख को नियंत्रित करता है। अदालत इसमें दिए गए कारणों की वैधता पर अपना फैसला सुनाता है।
अदालत ने कहा किअतिरिक्त न्यायिक तलाक के अन्य तरीके (तल्ख-ए-तफ़विज़, ख़ुला, और मुबारत) मुस्लिम महिला के लिए उपलब्ध हैं, जैसा कि शरीयत अधिनियम की धारा 2 में इसका जिक्र है।