100 करोड़ का वसूली कांड: परमबीर सिंह, सचिन वाझे को शह देते थे, गृह विभाग को मिली रिपोर्ट में खुलासा
नरेन्द्र मेहता
महाराष्ट्र में वसूली कांड में बढ़ती ही जा रही है सियासत
मुम्बई 7 अप्रैल : महाराष्ट्र में वसूली कांड में भूचाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस कांड के चलते गृहमंत्री अनिल देशमुख को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. इतना ही नहीं महाराष्ट्र की राजनीति में बवाल मच गया. तीन दलों के सहयोग से चल रही उद्वव सरकार की किरकिरीअब तक हो रही हैं लेकिन अब अनिल देशमुख पर आरोप लगाने वाले मुंबई के पूर्व कमिश्नर परमबीर सिंह की मुश्किलें भी बढ़ सकती हैं। दरअसल, इस मामले में मुंबई पुलिस के कमिश्नर हेमंत नगराले ने महाराष्ट्र के गृह विभाग को एक रिपोर्ट भेजी है। 5 पेज की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि परमबीर सिंह सचिन वझे को शह दे रहे थे.
कमिश्नर हेमंत नगराले की रिपोर्ट में कहा गया है कि तत्कालीन पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के कहने पर सचिन वझे की नियुक्ति क्राइम इंटेलिजेंस यूनिट में हुई थी। इतना ही नहीं वझे वरिष्ठ अधिकारियों को दरकिनार कर सीधे परमबीर सिंह को रिपोर्ट करता था। इतना ही नहीं रिपोर्ट में फिर से नियुक्ति से लेकर 9 महीने तक की पूरी जानकारी दी गई है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक, सचिन वझे की नियुक्ति 8 जून 2020 को मुंबई पुलिस के आर्म्ड फोर्स में की गई। वझे की नियुक्ति को लेकर फैसला तत्कालीन मुंबई पुलिस आयुक्त, सह पुलिस आयुक्त ( एडमिन) अतिरिक्त पुलिस आयुक्त और मंत्रालय डीसीपी ने किया।
इसी दिन सचिन वझे को मुंबई क्राइम ब्रांच में लेने का आदेश दिया गया। इसके अगले दिन त्कालीन ज्वाइंट सीपी क्राइम ने वझे की पोस्टिंग क्रिमिनल इंटेलिजेंस यूनिट में कराई। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ज्वाइंट कमिश्नर क्राइम ने सचिन वझे की सीआईयू में नियुक्ति का विरोध किया था। लेकिन उच्च अधिकारियों के दबाव में भी उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसके अलावा जूनियर होने के बावजूद सचिन को सीआईयू इंचार्ज की पोस्ट दी गई।
रिपोर्ट में ये भी साफ किया गया है कि क्राइम ब्रांच में रिपोर्टिंग सिस्टम के तहत जांच अधिकारी यूनिट इंचार्ज को रिपोर्ट करता है. उसके बाद जांच अधिकारी के साथ यूनिट इंचार्ज एसीपी को फिर डीसीपी को, एडिशनल सीपी को और फिर ज्वाइंट सीपी को. लेकिन एपीआई सचिन वाजे इन सबको बाईपास कर सीधे मुंबई पुलिस आयुक्त को रिपोर्ट करता था और उन्ही के निर्देश पर काम करता था. किस पर कार्रवाई करनी है कहां छापा मारना है ? किसे गिरफ्तार करना है और किसे गवाह बनाना है सब निर्देश वो सीधे मुंबई पुलिस आयुक्त से लेता था.
सचिन वाज़े ने अपने मातहत अफसरों को भी सख्त हिदायत दे रखी थी कि वो क्राइम ब्रांच के बड़े अफसरों को कभी रिपोर्ट ना करें. सचिन वाज़े खुद भी कभी क्राइम ब्रांच के अफसरों को रिपोर्ट नहीं करता था. सिर्फ पूछने पर कभी कभार इंफॉर्मली मिलकर जानकारी देता था.एपीआई सचिन वाजे को 9 महीने के कार्यालय में 17 बड़े केस दिये गए थे।