हाईकोर्ट ने की संविदा कर्मचारी की बर्खास्तगी रदद्, कड़ी टिप्पणी की
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के सिंगल बेंच ने संविदा कर्मचारी की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा है कि संविदा कर्मचारियों की नौकरी की कोई गारंटी नहीं होती, इसके बाद भी अगर कोई संविदा कर्मचारी अपनी सेवाएं दे रहा है तो सेवा समाप्ति के लिए निष्पक्ष प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक हो जाता है। आदेश जारी करने से पहले कर्मचारी को उन आरोपों का खुद का बचाव करने का अवसर देना चाहिए जो उस पर लगाए गए हैं। एकपक्षीय कार्रवाई संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है। प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का परिपालन करना आवश्यक है। जरुरी टिप्पणी के साथ ही हाई कोर्ट ने संविदा कर्मचारी रोजगार सहायक की बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर दिया है।
बर्खास्तगी आदेश को चुनौती देते हुए याददास साहू ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। दायर याचिका में उसने बताया कि 2016 में संविदा आधार पर ग्राम रोजगार सहायक (जीआरएस) मनरेगा के पद पर डोंगरगांव क्षेत्र में नियुक्ति हुई थी। कामकाज अच्छा होने के कारण उसे सेवा का मौका मिल रहा था। छह साल की नौकरी के बाद दिसंबर 2022 में स्थानीय अधिकारियों और विधायक दलेश्वर साहू ने उस पर कदाचार का आरोप लगाया। आरोप के मद्देनजर जांच पड़ताल शुरू की गई। इस बीच उसने जांच रिपोर्ट की मांग भी की। अनिवार्य लक्ष्यों और कार्य को पूरा ना कर पाने का आरोप लगाया गया। जारी नोटिस में कदाचरण के अलावा सेवा में लापरवाही बरतने का आरोप लगाया गया। जवाब पेश करने के बाद दूसरी पंचायत में उसका स्थानांतरण कर दिया। एक महीने बाद, 23 जून, 2023 को बिना किसी नोटिस या औपचारिक जांच के उसे बर्खास्त कर दिया। मामले की सुनवाई जस्टिस एके प्रसाद के सिंगल बेंच में हुई। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि संविदा नियुक्ति में नौकरी की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है, फिर भी किसी तरह के कलंकपूर्ण आरोप में सेवा समाप्ति के लिए निष्पक्ष प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है। कर्मचारी को खुद का बचाव करने का अवसर देना चाहिए।
बर्खास्तगी निरस्त
मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि दिसंबर 2022 की जांच रिपोर्ट में याचिकाकर्ता को दोषमुक्त कर दिया गया था। इसके बाद भी बिना किसी ठोस आरोप के उसे सेवा से हटा दिया गया है। कोर्ट ने कहा कि कदाचार के आधार पर बर्खास्तगी एक दंडात्मक कार्रवाई है। इसके लिए प्रक्रियागत सुरक्षा उपायों का पालन करना आवश्यक है। हाई कोर्ट ने अधिकारियों को नए सिरे से जांच की स्वतंत्रता देते हुए याचिकाकर्ता को सभी परिणामी लाभों के साथ बहाल करने का निर्देश दिया।