शहर में फैला वायु प्रदूषण, श्वसन संबंधी बीमारी से लोग परेशान
कोरबा 4 अप्रैल। नगर को स्मोकलेस बनाने के दावे जब-तब होते रहे हैं। बड़ी-बड़ी योजनाएं बनती रही है, हुआ कुछ नहीं। एक बार फिर शिगुफा हवा में आया कि अब इलाके में सिगड़ी दान अभियान चलेगा। यानि जो लोग सिगड़ी जलाते हैं उनसे मुख्य धारा शामिल होने की अपेक्षा की जाएगी। नतीजे क्या हैं यह बताने के लिए शहर के कई इलाके मौजूद हैं, जो धुआं-धुआं हो रहे हैं और लोगों के स्वास्थ्य को बिगाड़ रहे हैं।
बिजली घरों और दूसरे उद्योगों की निरंतर चलने वाली गतिविधियों की वजह से प्रदूषण की समस्या काफी समय से कायम है। इसका विस्तार औद्योगिक इकाईयों से लेकर आसपास के बड़े हिस्से में हो चुका है। प्रदूषण को और मजबूत करने में साउथ ईस्टर्न कोलफिल्ड्स लिमिटेड की खदानें काफी हद तक जिम्मेदारी निभा रही है। कोयला ट्रांसपोर्टिंग इसकी खास वजह है। रेल गाडिय़ों के माध्यम से कोयला की ट्रांसपोर्टिंग छत्तीसगढ़ से लेकर अन्य राज्यों को हो रही है। स्थानीय उद्योगों के लिए कोयला की आपूर्ति का सबसे अच्छा जरिया मालगाड़ियां बनी हुई है। कोरबा जिले और शहर की सीमा में काफी समय तक आवाजाही करने वाले मालगाड़ियों से हर दिन कई टन कोयला पार होता है। स्लम क्षेत्रों में रहने वाली आबादी इस कोयला का उपयोग सिगड़ियों में करने के साथ समस्या को और बढ़ाने का काम कर रही है। लोगों के लिए यह इंधन मुफ्त की वस्तु के साथ आय का जरिया बना हुआ है। इसके साथ ही समस्या का सबसे बड़ा कारक भी। जानकारी के अनुसार अकेले कोरबा जिले में कई लाख गैस कनेक्शन भारत सरकार की उज्जवला योजना के अंतर्गत बांटे गए। शहरी क्षेत्र में अच्छी-खासी संख्या में लोग इससे लाभान्वित हुए। इसके बावजूद कुछ दिनों के बाद उन्होंने गैस की रिफिलिंग कराने बंद कर दी। ऐसे लोगों ने या तो सिलेंडर और चूल्हे को स्टॉक रूम के हवाले कर दिया या फिर औने-पौने दाम में किसी को टिका दिया। ऐसे ही लोगों के कारण कोरबा के संजय नगर रेलवे क्रासिंग, खपराभट्ठा, कुआंभटठा चिमनीभट्ठा, सीतामणी, मुड़ापार, रामपुर, मानिकपुर, कुसमुंडा, सर्वमंगलापारा, फ ोकटपारा सहित अनेक क्षेत्र हर सीजन में प्रदूषण का वातावरण बनाने में सबसे अग्रणी है।
वायु प्रदूषण की समस्या में उद्योगों के बांध से उड़ने वाली राख के साथ बड़े हिस्से से फैलने वाला धुआं सबसे खास बना हुआ है। अरसे से इस तरह के हालात क्षेत्र में बने हुए हैं। विभिन्न क्षेत्रों में निवासरत लोग इसी वातावरण के बीच काम करने को मजबूर हैं। यही वजह है कि उनमें श्वसन संबंधी बीमारी घर कर रही है। समय के साथ ऐसे पीड़ितों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है। स्थानीय स्तर पर चिकित्सा क्षेत्र का अध्ययन है कि बीते वर्षों में प्रदूषण के चक्कर में क्रोनिक डिजिज के पीड़ित बढ़े हैं और यह गंभीर मसला है।
सरकार की योजना यह भी है कि धीरे-धीरे रसोई गैस सहित अन्य योजनाओं में लोगों को दी जा रही सब्सिडी समाप्त की जाए। कोरोना कालखंड और अन्य कारणों से हुए नुकसान की भरपाई करने के साथ अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए सुधार को लेकर सख्त कदम उठाए जा रहे हैं। वर्तमान में 70 रुपए के लगभग गैस सिलेंडर पर सब्सिडी लोगों को मिल रही है। इस स्थिति में आर्थिक रूप से कमजोर लोग सिगड़ियों का उपयोग करने पर उतारू हैं जिन्हें कोयला या तो औने-पौने दाम पर मिल रहा है या फ्री में।