SECL को कोयला खदान के विस्तार के लिए जमीन उपलब्ध कराने की कोशिश का प्रतिरोध करेंगे कोरबा के भू विस्थापित

कोरबा। छत्तीसगढ़ सरकार ने एस ई सी एल को जिले के दीपका, गेवरा और कुसमुंडा कोयला खदान के विस्तार के लिए जमीन उपलब्ध कराने का वादा क्या है, लेकिन इस वादे को निभाना आसान नहीं होगा। एस ई सी एल की वादा खिलाफ, उत्पीड़न और चालबाजियों से खासे परेशान ग्रामीण ऐसी किसी भी कोशिश का पुरजोर विरोध करेंगे।

आपको बता दें कि जमीन की कमी से कोयला खनन में आ रही गिरावट में केंद्र और राज्य सरकार की चिंता बढ़ा दी है। इसे दूर करने के लिए शुक्रवार को राजधानी रायपुर में एक हाइलेवल मीटिंग हुई। इसमें मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, केंद्रीय कोयला एवं खान मंत्री जी. किशन रेड्डी, छत्तीसगढ़ सरकार के मुख्य सचिव अमिताभ जैन, कोयला मंत्रालय के अपर सचिव रूपिंदर वरार, संयुक्त सचिव बीपी पति,कोल इंडिया के अध्यक्ष पीएम प्रसाद, एसईसीएल के सीएमडी हरीश दुहन सहित प्रदेश सरकार के अन्य अधिकारी इसमें शामिल हुए। बैठक में कोयला खदानों के विस्तार पर चर्चा हुई। कोरबा कलेक्टर अजीत वसंत को भी वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए शामिल किया गया।

बैठक में कोरबा जिले में स्थित मेगा प्रोजेक्ट गेवरा, दीपका और कुसमुंडा खदान के सेटेलाइट यूनिट को राज्य सरकार के अधिकारियों को दिखाया गया। उन्हें बताया गया कि कोयला खदान के मुहाने पर वर्तमान में कई गांव आ गए हैं। इन गांवों को मुहाने से हटाया जाना जरूरी हो गया है ताकि कोयला खनन लक्ष्य के अनुसार से किया जा सके। बैठक में मुहाने पर स्थित गांवों पर भी चर्चा हुई। खदान से प्रभावित भावित होने वाले लोगों के लिए रोजगार और पुनर्वास पर भी मंथन किया गया। कोरबा कलेक्टर से मुहाने पर खड़े गांवों के विस्थापन को लेकर मुख्यमंत्री और कोयला मंत्री की उपस्थिति में मुख्य सचिव ने सवाल किए। तब कलेक्टर की ओर से यह बताया गया कि 15-15 दिनों तक राजस्व विभाग की टीम खदान से प्रभावित गांवों में जाती है और लोगों की समस्याओं का निराकरण करती है। बैठक में खदान की जरूरत के अनुसार जमीन उपलब्ध कराने पर प्रदेश सरकार ने कोयला मंत्री की उपस्थिति में सहमति जताई।

प्रदेश सरकार के साथ आयोमेगा प्रोजेक्ट तर्ज पर छोटी खदानों में पुनर्वास के लिए पैसे देने पर कोयला कंपनी ने जताई असमर्थता, कहा- इससे कंपनी को घाटाजित हाइलेवल मीटिंग में बड़े खदानों की तर्ज पर छोटे कोयला खदानों से प्रभावित होने वाले लोगों के पुनर्वास का मामला भी उठाया गया। बैठक में मौजूद प्रदेश सरकार के अधिकारियों ने कोल इंडिया और एसईसीएल के अफसरों से जानना चाहा कि मेगा प्रोजेक्ट गेवरा, दीपका या कुमसुंडा से प्रभावित होने वाले परिवारों के पुनर्वास की तरह छोटी खदान सरायपाली में राशि क्यों नहीं दी जा सकती। तब कोयला कंपनी की ओर से बताया गया कि छोटी खदानों से प्रभावित होने वाले लोगों को अगर यह राशि दी जाए तो इससे वहां कोयला खनन घाटे का सौदा होगा। कंपनी को खदान घाटे में चलाना पड़ेगा जो व्यवहारिक रूप से कठिन है। बैठक में मौजूद एसईसीएल के अधिकारियों ने बड़ी खदानों की तर्ज पर छोटे खदानों से प्रभावित लोगों को बसाहट के लिए दी जाने वाली सहायता राशि को देने में असमर्थता जताई। गौरतलब है कि कोयला कंपनी मेगा प्रोजेक्ट से प्रभावितं परिवारों के पुनर्वास के लिए एक मुश्त 10 लाख रुपए देती है। वहीं पूरे गांव के लोगों द्वारा बसाहट नहीं लिए जाने पर 10 लाख रुपए के अलावा 5 लाख रुपए की प्रोत्साहन राशि भी देती है।

इस तरह मेगा प्रोजेक्ट से प्रभावित होने वाले परिवार को 15 लाख रुपए मिलता है जबकि छोटी खदान जैसे सरायपाली आदि से प्रभावित परिवारों को कंपनी तीन लाख रुपए मुआवजा देती है। कंपनी की इसी नीति से छोटी कोयला खदानों से प्रभावित होने वाले लोगों में नाराजगी है। सरायपाली खदान से प्रभावित होने वाले लोग भी कोयला कंपनी से मेगा प्रोजेक्ट की तरह बसाहट के लिए एकमुश्त 10 लाख रुपए और पूरा गांव खाली करने पर 15 लाख रुपए की मांग कर रहे हैं। इसे लेकर भूविस्थापित आंदोलन भी चला रहे हैं। एस ई सी एल प्रबंधन हमेशा पुलिस और प्रशासन के डंडे के जोर पर अपनी जरूरतों को पूरा करने का प्रयास करता है। अगर फिर ऐसा ही प्रयास होगा तो विस्फोटक स्थिति निर्मित हो सकती है।

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