कविता@स्वप्निल श्रीवास्तव
भीगना
मैं तुमसे मिल कर अपनी कमीज
भिगोना चाहता हूँ
बहुत दिनों से ताप में रहते हुए
यह कमीज प्यास से भरी हुई है
जब तक तुम नही मिलोगे यह कमीज
देह की खूंटी पर टँगी रहेगी
मैं इसे उतार कर विवस्त्र नही होना
चाहता
लम्बा है इस कमीज का सफर
कपास के खेतों से लेकर दर्जी के
सिलाई मशीन तक फैली हुई है
इस कमीज की कथा
बटन होल बनाते हुयर कई बार कांपी
होगी बूढ़े दर्जी की उंगलियां
कई बार ग़फ़लत में चुभ गयी होगी
सुई
जैसे मैंने इस कमीज को पहना था
तो लगा था कि मैं उड़ जाऊँगा यही वह क़मीज़ है जो तुम्हारे साथ प्रेमरस में भीगना चाहती है
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