भगवान शिव को बिल्व पत्ते (बेल पत्र) क्यों अर्पित किए जाते हैं?
महादेव को बेल पत्र क्यों चढ़ाया जाता है?
स्कंद पुराण के अनुसार, एक बार माता पार्वती के पसीने की बूंद मंदराचल पर्वत पर गिर गई और उससे बेल का पेड़ निकल आया। चुंकि माता पार्वती के पसीने से बेल के पेड़ का उद्भव हुआ।अत: इसमें माता पार्वती के सभी रूप बसते हैं।
वे पेड़ की जड़ में गिरिजा के स्वरूप में,
इसके तनों में माहेश्वरी के स्वरूप में और
शाखाओं में दक्षिणायनी व
पत्तियों में पार्वती के रूप में रहती हैं।
फलों में कात्यायनी स्वरूप
औऱ फूलों में गौरी स्वरूप निवास करता है।
इस सभी रूपों के अलावा, मां लक्ष्मी का रूप समस्त वृक्ष में निवास करता है।
बेलपत्र में माता पार्वती का प्रतिबिंब होने के कारण इसे भगवान शिव पर चढ़ाया जाता है।
भगवान शिव पर बेल पत्र चढाने से वे प्रसन्न होते हैं और भक्त की मनोकामना पूर्ण करते हैं।
जो व्यक्ति किसी तीर्थस्थान पर नहीं जा सकता है अगर वह श्रावण मास में बिल्व के पेड़ के मूल भाग की पूजा करके उसमें जल अर्पित करे तो उसे सभी तीर्थों के दर्शन का पुण्य मिलता है एवं बिल्व वृक्ष को सींचने से पितृगण तृप्त होते है।
बिल्व वृक्ष के आसपास सांप नहीं आते ।
किसी की शव यात्रा बिल्व वृक्ष की छाया से होकर निकले तो उसको मोक्ष प्राप्त हो जाता है।
वायुमंडल में व्याप्त अशुध्दियों को सोखने की क्षमता सबसे ज्यादा बिल्व वृक्ष में होती है।
चार, पांच, छः या सात पत्ते वाले बिल्व पत्र पाने वाला परम भाग्यशाली और उसे शिवजी को अर्पण करने से अनंत गुना फल मिलता है
बिल्व वृक्ष को काटने से वंश का नाश होता है और बिल्व वृक्ष लगाने से वंश की वृद्धि होती है।
प्रातःकाल संध्या समय बिल्व वृक्ष के दर्शन मात्र से पापों का नाश होता है।
बिल्व वृक्ष और सफ़ेद आक् को जोड़े से लगाने पर अटूट लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
जीवन में यदि भूल से भी शिव लिंग पर बिल्व पत्र चढ़ा दिया हो तो भी उस प्राणी के सारे पाप नष्ट हो जाते है
बिल्व वृक्ष का रोपण, पोषण और संवर्धन करने से महादेव से साक्षात्कार करने का अवश्य लाभ मिलता है।
ॐ नमः शिवाय