कही-सुनी @ रवि भोई
छत्तीसगढ़ से सौदान सिंह की विदाई
आखिरकार सौदान सिंह की छत्तीसगढ़ से विदाई हो ही गई। वे पिछले दो साल से अपने ही पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के निशाने पर थे, उनसे नाराज लोगों की सूची में कुछ सांसद और विधायक भी थे। उनको लेकर जिस तरह का माहौल बन गया था, उसके चलते उनके यहां से जाने की संभावना तो थी ही, राष्ट्रीय सहसंगठन मंत्री के पद से छुट्टी का अंदाजा नहीं था। भाजपा में संगठन मंत्रियों की बड़ी अहमियत होती है। संगठन मंत्री संघ ( आरएसएस ) के प्रतिनिधि होने के साथ कार्यकर्त्ता और संगठन की कड़ी भी होते हैं। देश और समाज की सेवा में अपना जीवन खपाने वाले ये चकाचौंध और प्रचार से दूर रहते हैं, पर 2018 के विधानसभा चुनाव में पराजय के बाद सौदान सिंह को लेकर पार्टी के भीतर जिस तरह का गुबार उठा और मध्यप्रदेश के राज्य आर्थिक अपराध ब्यूरो में शिकायत हुई, उसे एक संगठन मंत्री के लिए अच्छा नहीं कहा जा सकता। पार्टी आलाकमान ने उन्हें राष्ट्रीय सहसंगठन मंत्री की जगह राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया है , पर भाजपा में संगठन मंत्री ताकतवर होता है। संघ के प्रचारक को ही संगठन मंत्री बनाया जाता है। राष्ट्रीय सहसंगठन मंत्री न रहने का साफ मतलब है कि अब सौदान सिंह प्रचारक भी नहीं रहे। मध्यप्रदेश के विदिशा जिले के छोटे से गांव कागपुर के रहने वाले सौदान सिंह ने राष्ट्रीय स्वयं संघ में एक प्रचारक के तौर पर यात्रा शुरू कर राष्ट्रीय सहसंगठन मंत्री की ऊंचाई तक पहुंचे। सौदान सिंह ने 2002 में संगठन मंत्री के तौर पर छत्तीसगढ़ में कदम रखा था। 18 वर्षों में छत्तीसगढ़ भाजपा के पूरक बन गए थे, उनके इशारे के बिना यहाँ पार्टी में पत्ता भी नहीं खड़कता था और 15 साल सरकार में भी उनकी तूती बोलती रही। गोविंद सारंग जैसे संगठन मंत्री ने छत्तीसगढ़ में भाजपा की जड़ें फैलाईं , सिंचाई कर फसल लहलहाने का काम सौदान सिंह के आने के बाद हुआ। कांग्रेस के मजबूत जनाधार वाले राज्य छत्तीसगढ़ में तीन बार भाजपा की सरकार बनाने का श्रेय डॉ. रमन सिंह और सौदान सिंह की जोड़ी को जाता है। रमन और सौदान की केमेस्ट्री अच्छी बन गई थी। राष्ट्रीय सहसंगठन मंत्री शिवप्रकाश को छत्तीसगढ़ की जिम्मेदारी दी गई है। शिवप्रकाश ने पश्चिम बंगाल में भाजपा का विस्तार किया है। अब देखते हैं छत्तीसगढ़ में क्या करते हैं , पर छत्तीसगढ़ में बदलाव का दौर है। डी. पुरंदेश्वरी को प्रभारी महासचिव बनाने के बाद 2021 का आगाज छत्तीसगढ़ भाजपा के लिए बड़ा विस्मयकारी रहा। कहा जा रहा है यह परिवर्तन 2023 में राज्य में सत्ता के लिए हो रहा है।
संकट समाधान के लिए हनुमान जरुरी
किसी सरकार के पास हनुमान कैसे हैं ? यह उसके कामकाज और छवि को प्रदर्शित करता है। आजकल छत्तीसगढ़ में बोरा की कमी के चलते धान खरीदी न होने पर बवाल मचा है। विपक्ष को सरकार के खिलाफ बड़ा मुद्दा मिल गया है और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जूझते दिख रहे हैं। पर बारदाने की व्यवस्था और धान खरीदी का सुचारु संचालन का काम तो प्रशासनिक मशीनरी का है। 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने अचानक धान खरीदी का निर्णय लिया और तब के कृषि उत्पादन आयुक्त बीकेएस रे की अध्यक्षता में टीम गठित कर सारी व्यवस्था की जिम्मेदारी छोड़ दी। बीकेएस रे ने खुद कोलकाता में कई दिन डटे रहकर बारदाने की व्यवस्था की। धान खरीदी समय- सीमा पर हो गई और कोई हल्ला नहीं हुआ। किसी काम में संकट तो आएंगे, पर संकटमोचक कैसे हैं, इस पर बहुत कुछ निर्भर करता है। हनुमान जी को संकटमोचक, इसीलिए कहा जाता है , क्योंकि वे श्रीराम जी के हर काम को आसान बना देते थे या उसका हल निकाल देते थे।
सीजीएमसी के मैनेजर फिर भारी पड़ गए आईएएस पर
कहते हैं छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन ( सीजीएमसी )का एक मैनेजर इतना ताकतवर है कि उसको जो भी छेड़ने की कोशिश करता है, वह निपट जाता है। खाद्य और औषधि प्रशासन विभाग से प्रतिनियुक्ति पर आए मैनेजर के पास कार्पोरेशन का चार चार्ज है। यही अधिकारी टेंडर, तकनीकी, उपकरण की खरीदी और वेयर हाउसों में दवाई की सप्लाई भी देखता है। कहते इस मैनेजर को कार्पोरेशन से हटाने के लिए आईएएस भुवनेश यादव ने सरकार को पत्र लिखा तो उन्हें ही प्रबंध संचालक के पद से हटा दिया गया। चर्चा है कि प्रबंध संचालक डॉ. सीआर प्रसन्ना ने जाँच में गड़बड़ी पाए जाने पर मैनेजर को हटाने की सिफारिश की तो उनकी भी छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन से विदाई हो गई। वे करीब सात महीने ही वहां रह पाए। अब सरकार ने कार्तिकेय गोयल को छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन का प्रबंध संचालक बनाया है। कार्तिकेय गोयल साहब और ताकतवर मैनेजर की पटरी कैसे बैठती है, यह तो आगे ही पता चलेगा , पर कार्तिकेय की वहां पोस्टिंग से दवाई सप्लाई करने वाले भयभीत बताए जाते हैं।
काबरा का परफॉर्मेंस और डांगी की शांति काम आई
आईपीएस अधिकारी दीपांशु काबरा को परिवहन आयुक्त की जिम्मेदारी देने और रतनलाल डांगी को आईजी बिलासपुर बनाने से पुलिस महकमे में सकारात्मक संदेश गया है , वही दीपांशु की पोस्टिंग से लोगों को लग रहा है कि सरकार परिवहन विभाग में सुधार के साथ कसना भी चाहती है। परिवहन विभाग में प्रतिनियुक्ति पर गए पुलिस अधिकारियों और परिवहन के अफसरों में खींचतान की खबरें आ रही थीं। काबरा तेजतर्रार के साथ परिस्थिति के अनुकूल फैसला लेने में भी माहिर माने जाते हैं। यही वजह है कि भूपेश सरकार के शुरूआती दिनों में दीपांशु के पास भले कोई चार्ज नहीं रहा, पर बिलासपुर आईजी रहते सरकार के चहेते अफसर हो गए। वहीं डांगी लोप्रोफाइल रहते दुर्ग से सरगुजा होते बिलासपुर की पोस्टिंग पा गए। पर संजीव शुक्ला से सरकार की नाराजगी लोगों को समझ नहीं आ रही है। उन्हें डीआईजी कांकेर से हटाकर राज्य पुलिस अकादमी चंदखुरी का उप संचालक बना दिया गया है।
यात्रा बनी रक्षक
कहते हैं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अपने एक मंत्री को मंत्रिमंडल से बाहर करने की सोचते हैं , पर मंत्री जी सामाजिक यात्रा निकलकर अपनी ताकत का प्रदर्शन कर जाते हैं। मंत्री जी के विभाग का कामकाज ठप बताया जा रहा है। इस विभाग में कई ठेकेदारों ने बिना टेंडर के काम कर लिया है। अब वे अधर में लटक गए हैं। इस विभाग के टेंडर को लेकर कुछ महीने पहले कोहराम मचा था। अब ऐसा बर्फ जमा कि पिघल ही नहीं रहा है। कहते हैं विभाग का काम रुकने से भारत सरकार से राशि अटकेगी और राज्य की जनता को नुकसान होगा।
डोमन सिंह को तोहफा
चर्चा है कि आईएएस डोमन सिंह को तोहफे के रूप में महासमुंद जिले की कलेक्टरी मिली है। भूपेश सरकार ने 26 मई को डोमन सिंह को कोरिया से ट्रांसफर कर गोरेला-पेंड्रा-मरवाही का कलेक्टर बनाया था। इसके कुछ महीने बाद मरवाही उपचुनाव की घोषणा हो गई। प्रमोटी आईएएस डोमन सिंह ने जिस परफॉर्मेंस के साथ मरवाही चुनाव कराया और वहां से कांग्रेस प्रत्याशी की अच्छे मतों से जीत हुई , ऐसे में बड़े जिले की कलेक्टरी तो बनती ही है। रायगढ़, कोरबा या बलौदाबाजार-भाटापारा जैसा उपजाऊ जिला नहीं है। जिले में कोई बड़ा उद्योग नहीं है और न ही बड़े माइंस हैं। राइस मिलें और कुछ पत्थर खदानें हैं। महासमुंद जरूर गोरेला-पेंड्रा-मरवाही (जीपीएम)से बड़ा जिला है। चार विधानसभा सीटें हैं।
(-लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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