स्कूली पाठ्यक्रम से भारतीय इतिहास की विकृतियों को दूर करने केंद्र सरकार की पहल.. जनता से माँगे सुझाव

नई दिल्ली। स्कूली पाठ्य पुस्तकों से भारत के इतिहास की  विकृतियों को दूर करने के लिए भारत सरकार द्वारा जनमानस से ईमेल के माध्यम से सुझाव आमंत्रित किए गए हैं। इसके लिए 15 जुलाई, 2021 को सुझाव प्रस्तुत करने की अंतिम समय सीमा तय की गई है।देश भर के छात्र, शिक्षक और अन्य विशेषज्ञ अपने विशिष्ट सुझाव या तो अंग्रेजी या हिंदी में ईमेल के माध्यम से rsc_hrd@sansad.nic.in पर दे सकते हैं।

राज्य सभा सचिवालय की ओर से एक बयान में कहा गया है कि विभाग से संबंधित शिक्षा, महिला, बच्चे, युवा और खेल संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने ‘स्कूल ग्रंथों की सामग्री और डिजाइन में सुधार’  सभी विषय की जांच और विचार किया है। जिसमें कुछ प्रमुख बिंदु है:-

क) पाठ्य पुस्तकों से हमारे राष्ट्रीय नायकों के बारे में अनैतिहासिक तथ्यों और विकृतियों के संदर्भों को हटाना।

ख) भारतीय इतिहास की सभी अवधियों के लिए समान या आनुपातिक संदर्भ सुनिश्चित करना।

ग) गार्गी, मैत्रेयी या झांसी की रानी, ​​रानी चन्नम्मा, चांद बीबी, जालकरी बाई आदि जैसे महान ऐतिहासिक महिला नायकों की भूमिका पर प्रकाश डाला गया।

सोशल साइट्स पर अक्सर ये बात उठती रही है कि  बच्चों के कोर्सबुक से लेकर एनसीईआरटी की पुस्तकों में देश के बच्चों को इतिहास के नाम पर भ्रामक तथ्य, और कभी कभी तो सफेद झूठ तक पढ़ाया गया है।भारत के जनता में स्कूलों की पुस्तकों में एक तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग द्वारा रचित काल्पनिक इतिहास से दशकों से शिकायत रही हैं कि ये सही नहीं हो रहा है। लगातार एक बात सोशल मीडिया पर उठती रही है कि हमारे इतिहास में हमारे संघर्ष करने वालों को नायकों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है तथा इसके विपरीत और जो इतिहास में एक पन्ने तो क्या एक पैराग्राफ के योग्य भी नहीं, उनकी जमकर तारीफ की गई है।इस संबंध में सुधार करने की दिशा में एक अनुपम प्रयास केंद्र सरकार ने किया है, जिसमें जनता की भी बराबर की सहभागिता रहेगी। जनता के ही मिले सुझावों पर इतिहास के पाठ्यक्रम देश के सही नायकों को उनका उचित स्थान वापिस देने का उचित अवसर आ चुका है।

शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कुछ ही समय पहले जब बताया था कि किस प्रकार से नई शिक्षा नीति के अंतर्गत भारतीय इतिहास के गौरवशाली क्षणों को उनका उचित स्थान दिया जाएगा, तो अधिकतर लोगों ने इसे हंसी में उड़ा दिया था। लेकिन अब जनता के पास एक सुनहरा अवसर है कि देशहित में केंद्र सरकार की रणनीति को मजबूत कर पूर्व में हुई गलतियों को सुधार करें और एक नए एवं सशक्त इतिहास का निर्माण करने में सरकार को अधिक से अधिक सही सुझाव दे।

केंद्र सरकार की शैक्षणिक, महिला, बाल विकास, युवा एवं खेल संबंधित संसदीय स्टैन्डिंग कमेटी ने हाल ही में विज्ञप्ति जारी की है, जिसमें ईमेल के जरिए स्कूली स्तर पर इतिहास के पुस्तकों में बदलाव करने पर ध्यान देने की बात की गई है। इसके लिए अंतिम सीमा 15 जुलाई है। इस नीति के अनुसार इन मुख्य रूप इन बिंदुओ पर केंद्रित किया जाएगा कि कैसे भारत के महान नायकों के बारे में ऐतिहासिक पाठ्यक्रमों में से भ्रामक तथ्यों को हटाकर मूल तथ्यों को रखकर जाए उन्हें उचित सम्मान दिया जाए।  ऐसी बहुत सी बातें हैं जिनपर अब मंथन किया जा सकेगा। इसके साथ ही भारतीय इतिहास के सभी कालों का समानुपातिक संदर्भ सुनिश्चित करने की दिशा में ठोस तथ्यों का समावेश पाठ्यक्रमों में किया जायेगा।भारतीय इतिहास के सभी तथ्यों का समावेश कर सभी कालखंडों के बारे में उचित और सही बातें समाहित करने पर भी जोर दिया जा सकेगा। 

केंद्र सरकार द्वारा किया जा रहा ये प्रयास भारतीय इतिहास के वास्तविक नायकों को उनका उचित मान सम्मान और उनका गौरव देने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है। तथाकथित बुद्धिजीवियों साथ ही साथ जिस प्रकार से वामपंथियों द्वारा देश के इतिहास पर जिस तरह से लगातार किए गए आघात पर मरहम लगाने का यह सधा हुआ प्रयास है।

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