बढ़ रही हाथियों की संख्याः सुरक्षा महज औपचारिक, विभाग में अमलों की कमी
कोरबा 26 दिसम्बर। धान कटाई का काम पूरा हो चुका है। खरीफ वर्ष 2023 में अब तक हाथियों के दल ने कटघोरा व कोरबा वन मंडल 2,958 हेक्टेयर धान की फसल को रौंदकर नुकसान पहुंचाया है। यह आंकड़ा बीते वर्ष की तुलना में 558 हेक्टेयर अधिक है। प्रभावित किसानों को 1.23 करोड़ का मुआवजा वितरित किया जा चुका है। वन विभाग केवल मुआवजा वितरण तक सीमित है। वन मंडल क्षेत्र में पर्याप्त कर्मियों की नियुक्ति नहीं होने से हाथी- मानव द्वंद्व बढ़ता जा रहा है। पांच साल पहले लेमरू को हाथी अभयारण्य घोषित कर बजट स्वीकृत किया गया पर हाथियों के रहवास के लिए काम अब तक शुरू नहीं हो सका है।
कोरबा और कटघोरा वन मंडल के प्रभावित ग्रामीणों व हाथियों की सुरक्षा महज औपचारिक हो रहा है। विभाग में अमलों की कमी होने के कारण अधिकारी अपने दायित्व को पूरा करने में नाकाम हैं। दोनों वन मंडल के रिक्तियों पर गौर करें तो कोरबा छह व कटघोरा में सात वन परिक्षेत्र हैं। हाथी प्रभावित होने के बाद भी 13 वन परिक्षेत्र में जटगा, चौतमा, लेमरू बालकों अभी तक स्थाई रेंज अफसरों की नियुुक्ति नहीं हुई। चारों वन परिक्षेत्र प्रभार पर चल रहे हैं। उससे विकट स्थिति वन रक्षकांे के खाली पदों की है। 112 स्वीकृति पदों में 48 पद खाली हैं। जिले वर्ष भर में सबसे अधिक समय हाथी पसान वन परिक्षेत्र में रहते हैं। सुरक्षा की दृष्टि से इसे 16 वनक्षेत्र में विभाजित किया गया है। सभी वन क्षेत्रो वन रक्षकों की नितांत आवश्यकत है।
यहां सेन्हा, लोकडहा, तिलईडांड़, जलके, कर्री व अड़सरा ऐसे वन क्षेत्र हैं जहां बीते तीन साल से वन रक्षकों के पद खाली हैं।
नियुक्ति के अभाव में हाथियों के दल के आवागमन के बारे में सहीं समय में सूचना नहीं मिलती। बताना होगा कि कटघोरा वन मंडल में 52 हाथियों का दल इन दिनों तीन टुकड़ियों में बंट कर विचरण कर रहे हैं। वहीं 16 हाथी कोरबा वनमंडल के गुरमा में विचरण कर रहे हैं। पूरे जिले में सर्वाधिक प्रभावित रेंज पसान, केंदई, एतमानगर व कुदमुरा हैं। केंदई के वन परिक्षेत्राधिकारी अभिषेक दुबे का कहना है फसल नुकसान में बीते वर्ष की तुलना में खास अंतर नहीं आया है। लोगों हाथी से दूरी बनाए रखने के लिए सतत जागरूक किया जा रहा है। बताना होगा कि किसानों ने धान की फसल को काटकर खलिहानों में रख लिया है। प्रभावित गांव के आसपास हाथियों के विचरण से धान मिसाई का काम बंद हो गया है। पर्याप्त अमलों की कमी से जूझ रहे हर परिक्षेत्र के अधिकारी वन कर्मी यह चाहते हैं कि हाथी पड़ोस के परिक्षेत्र की ओर चला जाए। इस फेर में वन कर्मी भी अपनी सीमा क्षेत्र में खदेड़ते रहते हैं। हाथियों के दल पर वन कर्मियों की नजर दिन के समय तक रहती है। रात को निरीक्षण के अभाव में दल एक गांव से दूसरे गांव पहुंचने की सूचना नहीं मिलती। दल में हाथियों की संख्या बढ़ने से लोग जान जोखिम में डाल खदेड़ने जाने से डर रहे हैं।
लेमरू हाथी अभयारण्य, स्थापित करने की कवायद धरी की धरी रह गई। इसे वर्ष 2005 में प्रस्तावित किया गया था और वर्ष 2007 में केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदन प्रदान किया गया। उल्लेखनीय है कि 27 अगस्त, 2019 को हुई मंत्रीमंडल की बैठक में 1995.48 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में लेमरू हाथी अभयारण्य विकसित किए जाने का निर्णय लिया गया था। इसे वर्ष 2005 में प्रस्तावित किया गया था और वर्ष 2007 में केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदन प्रदान किया गया।1995.48 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में कोरबा, कटघोरा, सरगुजा और धरमजयगढ़ वनमंडल का क्षेत्र समाहित किया गया। यह भी सुझाव आया था कि हसदेव नदी जलग्रहण क्षेत्र में उपलब्ध जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए लेमरू हाथी अभयारण्य का दायरा बढ़ाकर कर 3827.64 वर्ग किलोमीटर कर दिया जाए। सरकार ने यह भी कहा था कि प्रस्तावित रिजर्व के क्षेत्र को कम नहीं किया गया तो, इसमें स्थित कई कोयला खदानें अनुपयोगी हो जाएंगी। रिजर्व के तहत प्रस्तावित क्षेत्र, हसदेव अभयारण्य जंगलों के अंतर्गत आता है, जो कि समृद्ध जैवविविधता के साथ-साथ कोयले के भंडार में भी समृद्ध है। दुर्भाग्य की बात है कि कार्य अब तक शुरू नहीं हो सका है।