पिता की विरासत मिली 20 साल बाद, गोंगपा ने पाली- तानाखार में लहराया परचम
कोरबा 04 दिसम्बर। गोंड़वाना गणतंत्र पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तुलेश्वर सिंह मरकाम को अपने पिता की विरासत 20 वर्ष बाद मिली। वर्ष 1998 में पाली-तानाखार से गोंगपा सुप्रीमो हीरा सिंह मरकाम ने जीत हासिल की थी, इसके बाद पार्टी चुनाव नहीं जीत सकी। अब तुलेश्वर यहां से प्रतिनिधित्व कर क्षेत्र में विकास कार्य कराएंगे।
पाली-तानाखार विधानसभा सीट को गोंगपा का गढ़ माना है और गोंगपा सुप्रीमों हीरा सिंह मरकाम ने यहां से तीन बार विधायक भी चुने गए। राज्य गठन होने के बाद वर्ष 2003 में पहली बार हुए चुनाव हीरा सिंह को पराजय का सामना करना पडा। उन्हें भाजपा से कांग्रेस में आए व मरवाही की सीट तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी के लिए छोड़ने वाले रामदयाल उइके ने परास्त किया।
इसके बाद वर्ष 2008, 2013 व 2018 में कांग्रेस ने ही जीत हासिल की। वर्ष 2018 में राम दयाल उइके पुनरू भाजपा में चले गए और यहां ने कांग्रेस ने मोहितराम केरकेट्टा को मैदान में उतारा। इस पर मोहितराम चुनाव जीत कर विधायक बन गए, पर रामदयाल तीसरे स्थान पर खिसक गए। चारों विधानसभा चुनाव में गोंगपा व कांग्रेस के मध्य ही टक्कर रही और गोंगपा को पराजय का सामना करना पड़ा। इस बीच गोंगपा सुप्रीमों हीरासिंह मरकाम का निधन हो गया। उनके निधन उपरांत वर्ष 2023 में पहली बार विधानसभा चुनाव हुआ और इसमें उनके पुत्र तुलेश्वर सिंह मरकाम ने जीत हासिल की। इसके साथ ही गोंगपा का एक बार फिर क्षेत्र में उदय हो गया है। तुलेश्वर अब क्षेत्र की जनता की सेवा कैसे करते हैं और कब तक मतदाताओं के मध्य कायम रहते हैं, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
रामदयाल उइके के एकाएक भाजपा में शामिल होने पर कांग्रेस के पास पाली-तानाखार विधानसभा सीट में प्रत्याशी की कमी हो गई थी, तब जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ से आए मोहितराम केरकेट्टा को पार्टी ने वर्ष 2018 के चुनाव में टिकट प्रदान किया। इसके साथ ही केरकेट्टा ने इस सीट पर बेहतर मतों के साथ जीत हासिल की। वर्ष 2023 के चुनाव में कार्यकर्ताओं के विरोध की वजह से कांग्रेस ने केरकेट्टा का टिकट काट दिया और जनपद अध्यक्ष दुलेश्वरी सिदार को टिकट प्रदान किया। उम्मीद जताई जा रही थी कि कांग्रेस का गढ़ होने की वजह से दुलेश्वरी जीत हासिल करेगी, पर ऐसा नहीं हुआ। क्षेत्र के मतदाताओं ने इस बार गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोंगपा) के तुलेश्वर सिंह पर विश्वास जताया और विधायक बना दिया। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि कांग्रेस को यहां प्रत्याशी बदलना महंगा पड़ गया।