मतदान समाप्तः चुनाव प्रबंधन और खामियों को लेकर बैठक कर रहे राजनीतिक दल

कोरबा 19 नवम्बर। जिले में दूसरे चरण के लिए 17 नवंबर को विधानसभा का मतदान संपन्न हो गया। जिले में 74 प्रतिशत से ज्यादा मतदाताओं ने मतदान करने में रूची दिखाई। जबकि सवा दो लाख से ज्यादा मतदाता या तो मतदान करने को लेकर उदासीन रहे अथवा तकनीकी कारणों से उन्हें मतदान का अवसर नहीं मिला। इव्हीएम के स्ट्रांग रूम में जमा होने के बाद अब इस बात की चर्चा हो रही है कि नतीजे क्या होंगे? चुनाव प्रबंधन में लगे बैठक का दौर शुरू हो गया है। इसके साथ ही जल्द उन लोगों की छटनी हो सकती है जिन्होंने चुनाव के दौरान पार्टी के विरोध में काम किया।

जिले की 3 विधानसभा सीटों पर मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच रहा। जबकि एक विधानसभा में गोड़वाना गणतंत्र पार्टी को मुख्य मुकाबले में माना गया है। शेष प्रत्याशियों की भूमिका निर्णायक के बजाये वोट काटने वाले के रूप में हो सकती है। ऐसा पहले भी हुआ है। 17 नवंबर को हुए मतदान में 7 लाख से ज्यादा मतदाताओं ने अपना प्रतिनिधि चुनने के लिए वोट डाला। जिले में शहरी और ग्रामीण क्षेत्र मिलाकर 1081 स्थानों पर मतदान की व्यवस्था प्रशासन के द्वारा कराई गई। पिछले चुनावों की तरह इस बार भी प्रत्याशियों ने कुछ स्थानों परन अपनी हैसियत और रणनीति के हिसाब से संसाधन खर्च किये और खुब नगदी का भी इंतजाम किया। अगले पांच चाल के आराम के लिए यह सब करना राजनीति में जायज माना जाता है। इसके अलावा कई तौर तरीकों पर भी अमल किया गया है। इन सबके बावजूद जिले में अब तक किसी के द्वारा दावा नहीं किया जा रहा है कि जीत किसकी होगी। लेकिन अनेक प्रत्याशियों की मतदान के बाद से ही हवा खराब है।

जानकारी के अनुसार मतदान समाप्त होने के बाद यहां-वहां से आई रिपोर्ट और पब्लिक के रूझान में कुछ दलों को खुश होने का मौका मिला है तो कुछ को परेशान भी किया है। जैसे-जैसे सूचनाओं का अनुपात और उनके संबंध में मजबूत आधार बड़ रहा है, उससे अच्छे-अच्छे प्रत्याशियों की नींद गायब हो गई है। सूत्रों ने बताया कि जिले में मतदान का मिलाजूला आकंड़ा भी परेशानी का एक कारण है। इसलिए कांग्रेस-भाजपा और गोड़वाना गणतंत्र पार्टी का चुनाव प्रबंधन देखने वाला वर्ग बैठकों में उलझा हुआ है। चर्चा इस बात की है कि मतदाताओं को किसी तरह से साधा गया और कहां कुछ खामिया रहीं। कई स्थानों पर मतदान के दौरान बड़े गड्डे होने और इससे संभावित नुकसान को लेकर न केवल चिंता जताई गई बल्कि प्रबंधन लेने वालों को खरीखोटी सुननी पड़ी। पिछली रात की बैठक को लेकर इसी प्रकार के दावें किये जा रहे है। सवाल यह भी उठ रहा है कि सब कुछ सैट करने के बाद भी स्लम इलाकों में अचानक परिवर्तन कि स्थिति क्यों पैदा हो गई। जिस तरीके से बैठके हो रही है, उससे वे लोग डरे हुए है जिन्होंने प्रत्याशियों और उनके चुनाव मैनेजर को सपने दिखाकर संसाधन प्राप्त किये थे।

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