आंखों में पट्टी, हाथ में तराजू और तलवार, कौन है-लेडी जस्टिस?
आपने फिल्मों में देखा होगा कि अदालत का सीन आता है, तो जज के बगल में एक मूर्ति दिखाई देती है। इस मूर्ति के एक हाथ में तराजू होती है और दूसरे हाथ में तलवार। मूर्ति की आंखों पर पट्टी भी बंधी होती है। आइये, जानते हैं इस मूर्ति से जुड़ी रोचक जानकारी।
इस मूर्ति को पूरी दुनिया में न्याय की देवी यानी ‘लेडी जस्टिस’ के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि यह मूर्ति पूरी दुनिया में न्याय व्यवस्था को दर्शाती है। न्याय की देवी का कॉन्सेप्ट भारत से नहीं बल्कि मिस्र और यूनान से आया है। दरअसल, जिसे आज आप दुनिया भर की अदालतों में देखते हैं, वह मिस्र की देवी माट और यूनान की देवी थेमिस और डाइक से प्रेरित है। मिस्र में देवी माट को संतुलन, समरसता, न्याय, कानून और व्यवस्था का प्रतीक माना जाता है, जबकि यूनान की देवी थेमिस सच्चाई, कानून और व्यवस्था की प्रतीक हैं और डाइक असली न्याय व नैतिक व्यवस्था को दर्शाती है। वहीं जब हम आज की ‘लेडी जस्टिस’ की बात करते हैं तो इनकी अवधारणा रोमन मिथकों से आती है। दरअसल, रोमन लोग इन्हीं देवियों की तर्ज पर जस्टीशिया को न्याय की देवी मानते थे और फिर यही देवी धीरे-धीरे लेडी जस्टिस हो गई।
आंखों पर बंधी पट्टी की बात करें तो यह समता का प्रतीक है। यानी आंखें इसलिए बंद हैं, ताकि न्याय करते समय कोई भी भेदभाव ना हो। हालांकि, कुछ इतिहासकारों का मानना है कि न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी की अवधारणा 17 वीं शताब्दी में आई और इसे कानून के अंधेपन के तौर पर देखा गया। हाथों में तराजू की बात करें तो इसकी अवधारणा मिस्र से आई है। मिस्र में तराजू को न्याय का प्रतीक माना जाता है। इसके साथ ही इसे संतुलन का प्रतीक भी माना जाता है, इसलिए ये तराजू दर्शता है कि किसी के साथ न्याय करते समय दोनों पक्ष को बराबर सुना जाए, इसके बाद न्याय किया जाए। वहीं, न्याय की देवी के हाथों में तलवार इस बात का प्रतीक है कि उनके पास न्याय करने की शक्ति है। इस तलवार को अथॉर्टी और पावर माना जाता है। यानी जो न्याय होगा उसे लागू करवाने की शक्ति भी न्याय की देवी के पास है।