पुण्य के उदय से ही परमार्थ करने की रुचि मिलती है: आचार्य प्रवर

कोरबा 13 मार्च। जैसा बंद किया, वैसा उदय होगा। उदय हमारे जीवन में पुण्य का भी है और पाप का भी। मगर बंद किसका है हमारे जीवन में पुण्य का बंद ज्यादा है या पाप का? पुण्य का उदय है तभी तो साधन मिले, परिस्थितियां अनुकूल मिलीं। ये सब पुण्य के उदय का परिणाम है, लेकिन पुण्य के उदय में हम जो काम कर रहे हैं। उसके परिणाम स्वरूप पुण्य का बंद ज्यादा है या पाप का। वर्तमान में पाप का बंद ज्यादा है, जिससे हमें बचना है। उदय पाप का हो या पुण्य का।

बंद तो पुण्य का ही होगा जब निर्जला होंगे, क्योंकि मुख्य कर्म हमारा केवल निर्जला होना चाहिए। पुण्य को बंद करना हमारा लक्ष्य नहीं है पर जरूरी है, क्योंकि पुण्य बंद अपने आप होता है। निर्जला का हमारा लक्ष्य है। पुण्य जरुरी तब तक है, जब तक परमात्मा नहीं बन जाते, जब तक ज्ञान नहीं हो जाता। वो अंतिम भाव जब तक हमें नहीं मिल जाता, तब तक पुण्य जरूरी है, क्योंकि पुण्य के उदय से ही परमात्मा का शासन मिलता है, परमार्थ करने की रुचि मिलती है। यह बात आशीर्वाद पाइंट टीपीनगर में प्रवचन के दौरान पूज्य गुरुदेव अवंति तीर्थोद्धारक मरुधर मणि आचार्य प्रवर श्री जिन मणिप्रभसूरीश्वर जी महाराज ने रविवार की सुबह प्रवचन के दौरान उपस्थित जनों से कही। उन्होंने आगे कहा कि परमात्मा का शासन मिलता है तो हमें धर्म करने की रुचि मिलती है। हमारे अंदर में जो इस तरह के भाव पैदा होते हैं वे पुण्य के परिणाम हैं। पुण्य के उदय हमें अपनी संस्कृति पर नाज है।

सनातन एक संस्कृति है। जिसका अर्थ होता है प्राचीनता। तो जैन धर्म जो है वह भी अपने आपमें धर्म का ही अंग है। इसे जैन धर्म का विशेषण देने की भी जरूरत नहीं है। धर्म कहा तो शुद्ध कर्म आ गया। शुद्ध धर्म में सभी शामिल हो जाते हैं। तो सनातन संस्कृति का अर्थ यह होता है जितनी भी संस्कृतियों का विकास हुआ मूल सिद्धांत सबके एक हैं। जैन धर्म जिनको पंच महाव्रत कहता है, बौद्ध धर्म उसे पंचशील, सनातन धर्म पंच यम कहता है। तो मूल में सारी बातें एक ही हैं। सारी संस्कृतियों का समावेश एक जगह पर होता है जिस पर हमें नाज है। संस्कृतियों का संगम गंगा जमुना की तरह है।

कर्म निर्जला करना हमारा लक्ष्य है और कर्म निर्जला करके संपूर्ण होंगे तभी तो हम डायमंड बनेंगे। हमारे जीवन में पुण्य का उदय है। इस पुण्य के उदय को वापस पुण्य में परिवर्तित करना है। आपको जो भी मिला है, जो भी साधन, सुविधाएं, संपत्ति मिली वो सब पुण्य का परिणाम है। मतलब पुण्य ने आपको दिया। स्वाभाविक रूप से आपको जो मिला है वह पुण्य का परिणाम है या पाप का। जब आपको सब कुछ पुण्य से मिला है तो वापस भी पुण्य को ही देना होगा। इससे आगे का जीवन भी सार्थक बना रहेगा। ऐसा करने का अवसर सौभाग्यशाली लोगों को ही मिलता है।

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