साहित्य हिन्दी कमलेश भट्ट कमल, दो गज़ल Gendlal Shukla August 12, 2020 गज़ल 01कोई मगरूर है भरपूर ताकत सेकोई मजबूर है अपनी शराफत सेघटाओं ने परों को कर दिया गीलाबहुत डर कर परिंदों के बग़ावत सेमिलेगा न्याय दादा के मुकद्दमे काये है उम्मीद पोते को अदालत सेमुवक्किल हो गए बेघर लड़ाई मेंवकीलों ने बनाए घर वकालत मेंकिसी ने प्यार से क्या क्या नहीं पायाकिसी ने क्या क्या नहीं खोया अदावत सेगज़ल 02 वृक्ष अपने ज़ख्म आखिर किसको दिखलातेपत्तियों के सिर्फ पतझड़ तक रहे नाते।उसके हिस्से में बची केवल प्रतीक्षा हीअब शहर से गाँव को खत भी नहीं आते।जिनकी फितरत ज़ख़्म देना और खुश होनाकिस तरह वे दूसरों के ज़ख़्म सहलाते।अपनी मुश्किल है तो बस खामोश बैठे हैंवरना खुद भी दूसरों को खूब समझाते।खेल का मैदान अब टेलीविज़न पर हैघर से बाहर शाम को बच्चे नहीं जाते। Spread the word Post Navigation Previous DGP डीएम अवस्थी ने जारी किया मोबाइल नंबर, वीडियो कॉल के जरिए संपर्क कर सकेंगे पुलिसकर्मी व उनके परिजनNext फिर हुई गौमाता की मौत..शासकीय स्कूल के कमरे में भूख के कारण तोड़ा दम Related Articles Stories दिवस विशेष साहित्य स्मृति हरीश अड्यालकर : गुनगाहक हिरानो है…@ डॉ. सुधीर सक्सेना Gendlal Shukla December 19, 2024 आयोजन कोरबा छत्तीसगढ़ प्रेरणा साहित्य ग्राम बरपाली महाविद्यालय में हिन्दी संगोष्ठी का हुआ आयोजन Gendlal Shukla December 16, 2024 आयोजन कोरबा छत्तीसगढ़ प्रेरणा समीक्षा संस्कृति साहित्य एनटीपीसी कोरबा में हुआ अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन Gendlal Shukla November 12, 2024