मालगाडिय़ों से कोयला परिवहन के लिए हुआ रेल्वे चेयरमैन का दौरा

कोरबा 11 जुलाई। कोरबा जिले से चलने वाली कई ट्रेनों के बंद होने और यात्रियों की परेशानी के बीच रेलवे बोर्ड चेयरमैन विनय त्रिपाठी आज जिले के प्रवास पर आ रहे हैं। जिला मुख्यालय के लिए उनका कोई शेड्यूल नहीं है। वे गेवरा हाउस पहुंचकर वहां बैठक और साइट विजिट करेंगे। चेयरमैन के दौरे के मद्देनजर कोयलांचल में विशेष तैयारी की गई है।

कोल इंडिया पर देश को अधिकतम कोयला उपलब्ध कराने और रेलवे को इसकी आपूर्ति की जिम्मेदारी मिली हुई है। कोल इंडिया की विभिन्न कंपनियों से उत्पादित होने वाले कोयला को भिन्न-भिन्न स्थानों तक पहुंचाने का काम भारतीय रेलवे के द्वारा किया जा रहा है। कोयला की मांग के अनुरूप होने वाले काम को दो तरफा तरीके से संपन्न किया जा रहा है। कई तरह की चुनौतियों और संकट के बीच कहा जा रहा है कि विदेशों पर निर्भरता खत्म करते हुए देश के सकल कोयला भंडार का दोहन करने के साथ मांग को पूरा किया जाएगा। इसी नाते मालगाडिय़ों के माध्यम से प्रतिदिन बड़ी मात्रा में कोयला ट्रांसपोर्टिंग करने की योजना पर काम हो रहा है। अच्छे ग्रेड का कोयला कोरबा जिले में मिल रहा है और इसकी मांग भी बढ़ रही है। इसलिए एसईसीएल पर हर किसी की नजर है। कोयला लोडिग के माध्यम से रेलवे आमदनी के साथ-साथ नाम कमाने की जुगत में है। माना जा रहा है कि अधिकतम कोल ट्रांसपोर्टिंग को लेकर भारतीय रेलवे नए रिकार्ड बनाने की योजना में है। रेलवे बोर्ड चेयरमैन विनय त्रिपाठी के कोयलांचल गेवरा-दीपका दौरे को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। विशेष सैलून से कोरबा पहुंचने के बाद चेयरमैन सीधे गेवरा के लिए रवाना होंगे। रेलवे और एसईसीएल के अधिकारियों के स्वागत सत्कार के साथ उन्होंने खदान व कोल साइडिंग का अवलोकन किया। अब तक लदान की स्थिति की जानकारी हासिल करने के साथ उन्हें नीतिगत मामलों में चर्चा करनी है। कोरबा से रेल संघर्ष समिति का एक शिष्ट मंडल भी गेवरा पहुंचा। वह कोरबा और गेवरारोड से बंद की गई कई यात्री ट्रेनों के फिर से संचालन और लंबी दूरी की गाडिय़ों को अतिशीघ्र प्रारंभ कराने वाले प्रस्ताव पर कार्रवाई कराने की मांग करेगा। इसके अलावा कोयलांचल के कांग्रेस नेता तनवीर अहमद ने दीपका में रेलवे स्टेशन बनाने के साथ यात्री ट्रेनों का विस्तार यहां तक कराने के लिए ज्ञापन सौंपना तय किया है।

जिले के दौरे पर आए रेलवे बोर्ड चेयरमैन को क्या किसी अधिकारी ने कोरबा स्टेशन के पास बनाई गई 18 करोड़ से ज्यादा की पिटलाइन दिखाई या नहीं, इस बारे में अधिकृत जानकारी नहीं मिली। वर्ष 2011 में पिटलाइन के लिए काम शुरू किया गया और इसे तैयार करने के बाद यूं ही छोड़ दिया गया। ट्रायल के बाद न तो यहां ट्रेनों का रखरखाव शुरू हो सका और न ही वह उद्देश्य पूरा हो सका जिसके अंतर्गत कोरबा से लंबी दूरी की ट्रेन चलाने का रास्ता साफ होना था। लंबा अरसा बीतने पर भी करोड़ों की पिटलाइन का उपयोग शून्य है। हालांकि अलग-अलग माध्यम से रेलवे के उच्चाधिकारियों तक पिटलाईन का मसला पहुंचाया जाता रहा है। आज जब रेलवे बोर्ड के चेयरमैन जिले में मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं तब स्थानीय रेल सुविधाओं और इनसे जुड़े मसले को जानने में उनकी दिलचस्पी होनी चाहिए। इसकी जररूत हर कोई बता रहा है।

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