कम लागत में अधिक फसल के लिए होगी कोदो की खेती

कोरबा 15 जून। कम पानी व खाद के अलावा सीमित लागत में किसानों को अधिक फसल के लिए कृषि विभाग से धान के बदले अन्य उपज के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इस कड़ी कोरबा और करतला क्लस्टर के एक हजार हेक्टेयर भूमि में कोदो की खेती की जाएगी। इसके लिए ऐसे किसानों का चयन किया जा रहा है, जहां सिंचाई सुविधा की कमी है। चयनित किसानों को खाद, बीज व दवाएं 50 फीसद छूट के साथ उपलब्ध कराया जाएगा। योजना का उद्देश्य कम रकबा में अधिक लाभ देने वाले फसल की समृद्ध खेती को बढ़ावा देना है।

परंपरागत खेती से किसान अब भी नहीं उबर सके हैं। धान के अलावा दीगर फसल उत्पादन के लिए कृषि विभाग की ओर से किसानों को प्रेरित किया जा रहा है। धान की उपज प्रति हेक्टेयर में औसतन 15 क्विंटल होती है वहीं कोदो चार क्विंटल होता है। प्रति एकड़ धान की खेती में 22 हजार रूपये खर्च आता है। कोदो की खेती मात्र तीन से चार हजार में हो जाती हैं। मिलिंग के बाद धान से चावल की कीमत 45 रूपये है, जबकि कोदो का मूल्य खुले बाजार में 80 से 100 रुपये है। खास बात यह है कि कोदो की फसल तीन माह में ही तैयार हो जाती है और पानी भी कम लगता है। इसके विपरीत धान को तैयार होने में पांच माह का समय लगता है। विभागीय अधिकारी की माने प्रदर्शन खेती से किसानों को फसल उत्पादन के विधि की जानकारी मिलेगी। आने वाले वर्ष में इसका लाभ अधिक से अधिक किसान ले सकेंगे। अधिक से अधिक किसानों को इसकी तकनीकी खेती से जोडऩे के लिए कृषि विभाग की ओर प्रदर्शनी योजना की तैयारी की जा रही है। जिले में अधिकांश किसान रोपा व लेही पद्धति से खेती करते हैं। श्री पद्धति व कतार बोनी से नहीं जुडऩे की वजह से किसानो को फसल का अपेक्षित लाभ नहीं मिल पा रहा है। चयनित किसानों को खाद बीज की खरीदी में छूट दी जाएगी। किसान अधिक से अधिक योजना का लाभ ले सके इसके लिए प्रेरित किया जा रहा है। योजना से जोडऩे के लिए प्रत्येक कृषि विस्तार अधिकारियों को कहा गया है।

जिले में इस वर्ष 81 हजार 760 हेक्टेयर में धान बोआई क्षेत्राच्छादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। बीते वर्ष 98 हजार 741 हेक्टेयर में बोआई की गई है। बीते वर्ष की तुलना में 16 हजार 981 हेक्टेयर रकबा कम किया गया है। इसकी वजह धान के बदले कोदो के अलावा रागी मक्का ज्वार व दलहन तिलहन को बढ़ावा दिया जा रहा है। शासन ने धान और मक्का की तरह कोदो का सरकारी दर तय किया है। वन समितियों की ओर इसे 30 रुपये किलो में खरीदी की जाएगी। कतार व श्री पद्धति से बोनी में शामिल किए जाने वाले किसानों को जैविक खाद की आपूर्ति की जाएगी। ढेंचा अथवा सनई जैसे वनस्पति खाद लगवाया जाएगा। लेही व रोपा की खेती करने वाले किसानों उपचारित बीज का उपयोग करने की सलाह दी जा रही है। विभागीय अधिकारी की माने तो रासायनिक खाद में जितनी लागत लगती है उससे 70 पुीसदी कम जैविक खाद में लगेगी। गोठान समितियों से इसकी आपूर्ति कराई जा रही है। वर्मी कंपोष्ट और केंचुआ खाद की उपयोगिता से रासायनिक खाद की निर्भरता कम होने के साथ खेती उर्वरा क्षमता में बढ़त होगी।

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