कोरबा 21 मार्च। समूचा विश्व आज यानी 21 मार्च को विश्व कठपुतली दिवस मना रहा है। जीवन के कई रंगों को मंच पर जीवंत करने के लिए यह कला अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण रही है और अपना प्रभाव छोड़ने में सफल रही है। दर्शकों तक अपनी बात पहुंचाने में कठपुतली कला ने बीते वर्षों में शानदार सफलता अर्जित की है। कोरबा जिले से वास्ता रखने वाले भारत एल्युमिनियम कंपनी के पूर्व कर्मचारी नागेश ठाकुर ने कठपुतली कला को छत्तीसगढ़ के अलावा अन्य प्रदेशों में पहुंचाने का काम किया है। उनके साथ एक पूरी टीम इस क्षेत्र में काम करती रही है। बताया जाता है कि कठपुतली का खेल अत्यंत प्राचीन नाटकीय खेल है, जो समस्त सम्य संसार में प्रशांत महासागर के पश्चिमी तट से पूर्वी तट तक-व्यापक रूप प्रचलित रहा है। यह खेल गुड़ियों अथवा पुतलियों (पुतलिकाओं) द्वारा खेला जाता है। गुड़ियों के नर मादा रूपों द्वारा जीवन के अनेक प्रसंगों की, विभिन्न विधियों से, इसमें अभिव्यक्ति की जाती है और जीवन को नाटकीय विधि से मंच पर प्रस्तुत किया जाता है। कठपुतलियाँ या तो लकड़ी की होती हैं या पेरिस- प्लास्टर की या काग़ज़ की लुगदी की। उसके शरीर के भाग इस प्रकार जोड़े जाते हैं कि उनसे बँधी डोर खींचने पर वे अलग-अलग हिल सकें। आधुनिकता के दौर में भले ही थिएटर से लेकर दूसरे माध्यम मनोरंजन के लिए सामने आ गए हैं लेकिन अभी भी भारत के साथ-साथ बहुत बड़े हिस्से में कठपुतली कला की अपनी अलग पहचान कायम है और लोगों को स्वस्थ मनोरंजन देने का काम इस विधा के जरिए किया जा रहा है।

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