अबकी राखी में भैया मुझको देना ये उपहार कल्पना कौशिक

अबकी राखी में भैया मुझको देना ये उपहार
कुछ नई यादें बचपन सी और थोड़ा सा प्यार
जब जी चाहे आ सकूं तेरे घर देना यह अधिकार
मैं ना आ पाऊं तो स्नेह लिए तुम आना मेरे द्वार
गर रुठ जाऊं तो कर लेना तुम थोड़ी सी मनुहार
जीते जी कभी खत्म न हो इस रिश्ते का प्यार
मनाते रहें सदा साथ हम ये पावन त्योहार
अबकी राखी में भैया मुझको देना ये उपहार
~~~~~
चलो लगाएं पीपल बरगद
वो अतीत की यादें, अतीत की बातें
कितनी अच्छी लगती हैं
अपने गांव की, पीपल के छांव की बातें
कितनी अच्छी लगती हैं
पर वर्तमान में रहकर
हम क्यों अतीत पर आहें भरें
क्यों न अपने वर्तमान को
फिर अतीत की तरह करें
चलो लगाएं पीपल बरगद
अमरइया सजाएं
बांध के उनमें झूला झूलें
नीचे बैठ गपियाएं
जंगल नहीं कांक्रीटों के
हरियाली की दीवार उगाएं
फल-फूल पेड़ों से मिलते हैं
यह हम भूल न जाएं
वृक्ष लाएंगे बदली
और बदली बरखा लाएगी
हरी-भरी होगी धरती फिर
खुश होकर मुस्काएगी
फिर कूके कुंजों में कोयल
आंगन में गौरैया गाए
चलो हम अपने गांव-शहर को
पहले सा हरा-भरा बनाएं
~~~
कल्पना कौशिक
द्वारा श्री तुकाराम कौशिक
ग्राम+पो- सरगांव
जिला-मुंगेली (छत्तीसगढ़)
+91 74155 49391
Spread the word