बारह महिलाओं के समूह ने मछली पालन में दी पुरूषों को टक्कर

*गांव का तालाब लिया पट्टे पर, इस सीजन किया सवा लाख रूपये का व्यवसाय*

*मछली पालन ने किया बेटी का भविष्य भी सुरक्षित, समूह की गरिमा भी बढ़ाई*

कोरबा 30 नवंबर। आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के लिए छत्तीसगढ़ सरकार की योजनाएं अब वरदान साबित हो रही है। स्थानीय स्तर पर गांवों मंे ही मौजूद संसाधनों से विकास का रास्ता बनाने का छत्तीसगढ़ी मॉंडल अब पूरे देश मंे लोकप्रिय होने लगा है, तो स्थानीय निवासियों की माली हालत भी सुधरने लगी है। कोरबा जिले के पाली विकासखंड के नवापारा कपोट गांव की 12 महिलाओं ने भी इस मॉडल को जीवंत कर दिखाया है। बारह महिलाओं के गरिमा स्वसहायता समूह ने ग्राम पंचायत के डुग्गूमुड़ा तालाब में मछली पालन करके पिछले चार-पांच महिनों मंे ही लगभग सवा लाख रूपये का व्यवसाय कर लिया है और इससे साठ हजार रूपये से अधिक की शुद्ध आय भी कमा ली है। इस आय से कोई अपना घर चला रहा है तो कोई अपने बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठा रहा है। समूह की अध्यक्ष अमृता पावले ने तो इस कमाई से अपनी साढ़े तीन साल की बेटी महिमा का भविष्य भी सुरक्षित कर लिया है। श्रीमती पावले ने अपनी बेटी के नाम से सुकन्या समृद्धि योजना के तहत पांच सौ रूपये प्रति महिने जमा करना भी शुरू किया है। पुरूषों के वर्चस्व वाले मछली पालन जैसे व्यवसाय ने इन महिलाओं को पूरे विकासखंड में अलग पहचान दी है और इन महिलाओं ने अपनी मेहनत से अपने गरिमा महिला स्वसहायता समूह की गरिमा भी बढ़ाई है।


समूह की अध्यक्ष श्रीमती अमृता पावले बतातीं हैं कि पहले मेहनत मजदूरी कर जैसे तैसे परिवार का भरण पोषण चलता था। अच्छी तरह से जीने के लिए परिवार की आमदनी में हाथ बटाने की सोच को मछली पालन विभाग के अधिकारियों ने बल दिया और ऐसी बारह महिलाओं से उन्होंने गरिमा महिला स्वसहायता समूह बनाया। गांव के लगभग ढाई एकड़ के शासकीय डुग्गूमुड़ा तालाब को पिछले साल से आगे 10 साल के लिए लीज पर लिया। श्रीमती अमृता पावले बतातीं हैं कि पहले साल तो मछली पालन से ज्यादा फायदा नहीं हुआ पर मछली पालने का अच्छा अनुभव मिला। मछली पालन विभाग के अधिकारियों ने मछली पालने के तरीके सिखाये, विभागीय योजनाओं के तहत मछली बीज, पूरक आहार, जाल आदि भी दिलाया। इस साल बरसात की शुरूआत में ही डीएमएफ मद से रोहू, कतला, मृगला जैसे मिश्रित मछली बीज, ग्रास कार्प, कामन कार्प मछली बीज और संतुलित परिपूरक आहार मिला। इस मछली बीज को तालाब में डालकर इस बार आधुनिक तरीके से मछली पालन किया है। पिछले चार-पांच महिने में ही मछलियों में अच्छी बढ़ोत्तरी हुई है और इस सीजन में गरिमा स्वसहायता समूह ने लगभग साढ़े आठ सौ किलो मछली निकालकर स्थानीय बाजार में बेची है। श्रीमती पावले बतातीं हैं कि थोक व्यापारी सूचना पर तालाब पर आते हैं और बोली लगाकर मछली खरीद कर ले जाते हैं। पाली और बनबांधा गांव के स्थानीय बाजार में भी मछली बेची जाती है। श्रीमती पावले ने बताया कि इस सीजन में अभी तक लगभग सवा लाख रूपये की मछली बिक चुकी है जिससे समूह को साठ हजार रूपये से अधिक की शुद्ध आय हुई है। इस लाभांश को समूह के बैंक खाते में जमा किया गया है। लाभांश में से कुछ पैसा बचाकर बाकी राशि को सदस्यों में बराबर-बराबर बांटा जाता है। इस वर्ष मछली पालन विभाग की मौसमी तालाबों में स्पॉन संवर्द्धन योजना के तहत समूह को 25 लाख मिश्रित स्पॉन दिया गया है। समूह ने इसमें से 10 हजार स्टे.फ्राई का विक्रय किया है और लगभग 20 हजार स्टे.फ्राई अभी भी तालाब में संचित है। मछली पालन को आगे बढ़ाने और उत्पादन में वृद्धि करने की भी समूह की योजना है।

Spread the word